सामाजिक क्रिया क्या है अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, सिद्धांत

प्रस्तावना :-

सामाजिक क्रिया व्यक्तियों के साथ काम करने के व्यवसायिक समाज कार्य के सहायक प्रणाली में से एक है। प्रारंभिक काल से ही समाज कार्य का आधार मानवता रहा है। सामाजिक क्रिया का उपयोग लक्ष्य/परिणाम को प्राप्त करने के लिए, व्यक्तियों को संगठित करने के लिए, तथा सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन लाने के लिए किया जाता है।

अनुक्रम :-
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सामाजिक क्रिया का अर्थ :-

सामाजिक क्रिया को व्यवसायिक समाज कार्य के एक सहायक प्रणाली के रूप में लिया जाता है । यह सामाजिक एवं आर्थिक संस्थाओं में परिवर्तन या सुधार का एक संगठित प्रयास होता है। सामाजिक क्रिया को सामाजिक कानून और सामाजिक नीति में बदलाव के जरिए सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्थाओं में सरंचनात्मक बदलाव लाने की ओर लक्षित समाज कार्य की अभ्यास का एक पद्धति माना गया है।

सामाजिक क्रिया का उद्देश्य सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश को निश्चित आकार देकर उसका विकास करना होता है जिस से सभी नागरिकों के लिए समृद्ध जीवन सम्भव किया जा सके।

सामाजिक क्रिया की परिभाषा :-

सामाजिक क्रिया को और भी स्पष्ट करने के लिए कुछ प्रमुख विद्वानों की परिभाषाओं का उल्लेख कर सकते हैं –

“सामाजिक क्रिया को व्यापक सामाजिक समस्याओं के समाधान का संगठित प्रयास कहा जा सकता है या मोलिक समाजिक एवं आर्थिक दशा को प्रभावित करके वांछित सामाजिक उद्देश्यो  को पूरा करने के लिए संगठित सामूहिक प्रयास कहा जाता है ।”

हिल जांन

“सामाजिक क्रिया कानून अथवा सामाजिक संरचना में बदलावों अथवा मौजूदा सामाजिक व्यवहारों के सुधारों के लिए नए आंदोलनों की दिशा में निर्दिष्ट प्रयासों को इंगित करती प्रतीत होती है ।”

ली

“सामाजिक क्रिया सामाजिक वातावरण में उन तरीकों से परिवर्तन का प्रयास है, जिनसे जीवन और संतोषप्रद होगा। इसका लक्ष्य व्यक्तियों को नहीं बल्कि सामाजिक संस्थाओं, कानूनों, रिवाजों, समुदायों को प्रभावित करना है ।”

ग्रेस क्वायल

“प्रचार तथा सामाजिक विधान के माध्यम से जनसमुदाय का कल्याण सामाजिक क्रिया है।”

मैरी रिचमण्ड

“सामाजिक क्रिया के कार्यक्षेत्र में सामाजिक विधान बनवाने के अतिरिक्त आगजनी, बाढ़ महामारी, अकाल आदि जैसी आपदा स्थितियों के दौरान किए गए कार्य को रेखांकित किया गया है।”

मूर्थी

“सामाजिक क्रिया समाज कार्य के दर्शन तथा व्यवहार के ढाँचे के भीतर एक वैयक्तिक, सामूहिक अथवा सामुदायिक प्रयास होता है जिसका लक्ष्य सामाजिक प्रगति पाना, सामाजिक नीतियों को संशोधित करना तथा सामाजिक विधान व स्वास्थ्य एवं कल्याण सेवाओं में सुधार करना है।”

फ्रीडलैंडर

सामाजिक क्रिया की विशेषताएं :-

सामाजिक क्रिया के विशेषताएं निम्न है –

  • सामाजिक क्रिया में समाज कार्य के सिद्धांतों मूल्य और कौशल का उपयोग किया जाता है। इसलिए यह समाज कार्य का ही है अंग है।
  • सामाजिक क्रिया का उद्देश्य सामाजिक न्याय और समाज कल्याण की को प्राप्त करना है।
  • सामाजिक क्रिया का प्रयोग आवश्यकता अनुसार सामाजिक परिवर्तन लाने एवं अनावश्यक सामाजिक परिवर्तन हो रोकने की  प्रयास किया जाता है।
  • सामाजिक क्रिया की उद्देश्य की पूरा करने के लिए सामूहिक सहयोग अपेक्षित होता है।

सामाजिक क्रिया की पद्धतियां :-

सामाजिक कार्यकर्ता के लिए आवश्यक निर्दिष्टित पद्धतियों को चिन्हित किया जा सकता है। ये पद्धतियां सामाजिक क्रिया के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है, जो निम्न है –

संबंधगत पद्धतियां –

सामाजिक कार्यकर्ता के पास लोगों तथा समूहों के साथ मेलमिलाप स्थापित करने के लिए और इन संबंधों के अनुरक्षण के पद्धतियां होने चाहिए। सामाजिक कार्यकर्ताओ को सेवार्थियों के साथ पेशेवर संबंध बनाने और कायम रखने में सक्षम होना चाहिए।

सामाजिक कार्यकर्ताओं में सेवार्थी समूह के बीच नेतृत्व के गुणों को पाचन करने की क्षमता होनी चाहिए और इन गुणों को सामाजिक क्रिया के लिए व्यवहारिक प्रयोग करने के लिए कुशल होना चाहिए। उन्हें समुदाय के भीतर तथा समूहों के बीच के मतभेद (झगड़ा,विवाद) से प्रभावी रूप से से निपटने में समर्थ होना चाहिए।

विश्लेषणात्मक तथा शोध संबंधी पद्धतियां –

सामाजिक क्रिया में शामिल सामाजिक कार्यकर्ताओं सामाजिक सांस्कृतिक और आर्थिक विशेषताओं का अध्ययन करने की योग्यता होनी चाहिए। इसके साथ ही सामाजिक कार्यकर्ताओं को इसमें समर्थ होना चाहिए कि वे समुदाय के सदस्यों को अपनी आनुभाविक आवश्यकताओं को मुखर होकर बोल सकें तथा उन्हें प्राथमिकता प्रदान कर सकें।

मध्यस्थता पद्धतियां –

सामाजिक कार्यकर्ताओं को समुदाय के लोगों के बीच आवश्यक परिवर्तन लाने के लिए नाराज़ एवं भावनात्मक उद्देश्य की चेतना, उत्साह और साहस का वांछित स्तर काफी लम्बे समय तक बनाये रखने में सक्षम होना चाहिए. जिससे की  निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने से पहले जन समूह संचालन की विफलता की गुजांइश न्युनतम की जा सके। सामाजिक कार्यकर्ताओं को शान्त व्यवहार बनाए रखने में समर्थ होना चाहिए।

प्रबन्धकीय पद्धतियां –

सामाजिक कार्यकर्ताओं को संगठन को सम्भालने का ज्ञान तथा निपुण होना चाहिए। उन्हें नीतियों तथा कार्यक्रम बनाने, कार्यक्रम नियोजन, समन्वय, रिकार्डिंग बजटिंग एवं तात्विक लेखांकन और विभिन्न रिकार्ड का अनुरक्षण करने के लिए कुशल होना चाहिए।

सम्प्रेषण कौशल –

सामाजिक कार्यकर्ताओं को स्थानीय संगठनों और नेताओं के साथ प्रभावी जन सम्पर्क विकसित करने की क्षमता होनी चाहिए।

सामाजिक क्रिया का महत्व :-

प्रत्येक समाज में कुछ न कुछ परिवर्तन होते रहते है, और विभिन्न प्रकार की समस्याओं का अनुभव किया जाता है। इन के समाधान के लिये आवश्यक परिस्थितियों को उत्पन्न करना सामाजिक क्रिया के कार्य है। सामाजिक क्रिया के महत्व को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है –

सामाजिक समस्याओं का निराकरण –

समाज में सामाजिक क्रिया के लिए व्यापक क्षेत्र मौजूद है। भारतीय समाज में अनेक प्रकार की मुद्दे है जाति के आधार पर भेदभाव, ऊँच-नीच के आधार पर भेद-भाव महिला और पुरूषों के बीच भेदभाव आदि अनेक समस्यायें है जिनका समाधान लोकतांत्रिक आदर्श के अनुसार बहुत आवश्यक है। इसके आलावा अंधविश्वास, अशिक्षा, न्यूनतम जीवन स्तर का अभाव आदि अनेक समस्याओं के समाधान की जरुरत है।

वैयक्तिक तथा पारिवारिक मूल्यों से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान –

समस्याओं के समाधान की दिशा में हर स्तर पर अनेक प्रयास किये जा रहे है। इन सब के बावजूद समस्याओं का रूप अत्यधिक व्यापक है। साथ ही व्यक्तिगत और पारिवारिक मूल्यों से सम्बन्धित अनेक समस्यायें भी उत्पन्न हो रही है । इसके समाधान हेतु सामाजिक क्रिया पद्धति अत्यन्त उपयोगी है।

लोकतांत्रिक मूल्य और जनचेतना का प्रसार –

समाज कार्य जनतांत्रिक मूल्यों पर ही आधारित है। न्याय समानता तथा स्वतंत्रता जनतंत्र के मूलभूत आधार है | सामाजिक क्रिया जनचेतना के जागरण के लिए लाभप्रद है।

संगठनात्मक प्रक्रियाओं को प्रोत्साहन –

समाज में विभिन्न लोग तथा वर्गों एक साथ रहते है, इनके द्वारा अनेक प्रकार की सामाजिक प्रक्रियाओं का एक साथ प्रयोग किया जाता है। ये प्रक्रियायें संगठनकारी भी होती है और विघटनकारी भी संगठनात्मक प्रक्रियाओं की मदद से विघटनकारी घटना को कम किया जाता है।

सामाजिक क्रिया के उद्देश्य :-

सामाजिक क्रिया के निम्न उद्देश्य है –

  • स्वास्थ्य तथा कल्याण के क्षेत्र में स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर किये जाने वाले कार्यो को पूर्ण करना।
  • समाजिक नीतियों के निर्माण एवं कार्यान्वयन की एक व्यापक सामाजिक पृष्ठभूमि तैयार करना।
  • अविकसित और असंगठित समूहों के लिए उनके विकास के लिए आवश्यक सेवाओं की माँग करना है।
  • समाजिक आँकड़ों को एकत्र करना और सूचनाओं का विष्लेषण करना है।
  •  सामाजिक कार्यकर्ताओं और संस्थान द्वारा एकत्र की गई सूचनाओं को समुदायों उपलब्ध कराना है।
  • सामाजिक समस्याओं के लिए सुगठित सुझाव तथा प्रस्ताव को प्रस्तुत करना है।
  • नये सामाजिक स्रोतों की खोज करना जो समुदाय से परे है।
  • सामाजिक समस्याओं के प्रति लोगो में जागरूकता लाना और समझ विकसित कराना है, एवं जनता का सहयोग प्राप्त करना है।
  • शासन प्रणाली या सरकार को अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में सहयोग देने के लिए तैयार करना है।
  • नीति एवं कार्यक्रमों को सरकार द्वारा प्रस्तावित करने का प्रयास करना है।

सामाजिक क्रिया के मूल तत्व :-

  • समुदाय की सक्रियता नियोजित एवं संगठित होने चाहिए समाजिक तब ही सफल हो सकती है। जब समूह या समुदाय सक्रिय हो।
  • नेतृत्व का विकास करते समय इस बात ध्यान रखना चाहिए कि नेता का चुनाव समाज की सहमती से होना चाहिए ।
  • सामाजिक क्रिया के कार्यप्रणाली और कानून जनतांत्रिक मूल्यों पर आधारित होनी चाहिए।
  • सामाजिक क्रिया को शुरू करने से पहले संबंधित समूह या समुदाय के भौतिक और अभौतिक संसाधनों का पूर्ण विचार कर लेना चाहिए।
  • संसाधनों का सही चुनाव और अनुमान करने के बाद यह समस्या का समाधान करना चाहिए।
  • सामाजिक क्रिया के लिए जनमत होना आवश्यक है।
  • समाजिक क्रिया के लिए समुदाय के लोगों का सहयोग अपेक्षित होता है।

सामाजिक क्रिया के सिद्धांत :-

समाजिक क्रिया के प्रमुख सिद्धांत निम्न है –

विश्वसनीयता का सिद्धान्त –

समुदाय में इस बात से जागरुक करना की जो भी कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं वह सब जनकल्याण के लिए हैं। नेतृत्व के प्रति जनता में विश्वास उत्पन्न करना अत्यंत आवश्यक होता है।

स्वीकृति का सिद्धान्त –

समुदाय को उसकी वर्तमान स्थिति में स्वीकार करते हुए न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक स्वस्थ जनमत तैयार किया जाना इस सिद्धान्त की विशिष्टता है।

वैधता का सिद्धान्त –

समुदायो की जनता जिसके लिए आन्दोलन चलाया जा रहा है, अथवा कार्य किया जा रहा है, उनको  को विष्वास हो कि आन्दोलन नैतिक और सामाजिक रूप से उचित है। इसी के आधार पर ही सहयोग प्राप्त होता है।

नाटकीकरण का सिद्धान्त –

नेतृत्व को सामान्य जनता के समक्ष ऐसे कार्यक्रमों को प्रस्तुत करना चाहिए जिससे जनता स्वयं संवेगात्मक रूप से उस कार्यक्रम से जुड़ जाये और अति आवश्यक मानकर उसके सक्रिय रूप से जुड़ जाये।

बहुआयामी रणनीति का सिद्धान्त –

गाँधी जी के अनुसार चार प्रकार की रणनीतियों को सामाजिक क्रिया के प्रयोग में होता है –

  1. शिक्षा सम्बन्धी रणनीति
    • प्रौढ़ शिक्षा के द्वारा
    • प्रदर्शन द्वारा
  2. समझाने की रणनीति
  3. सुगमता की रणनीति
  4. शक्ति की रणनीति
  5. बहुआयामी कार्यक्रम का सिद्धान्त – यह कार्यक्रम तीन प्रकार के होते है |
    • सामाजिक कार्यक्रम
    • आर्थिक कार्यक्रम
    • राजनीतिक कार्यक्रम

मूल्यांकन का सिद्वान्त –

नेतृत्व के लिए अत्यन्त आवश्यक हे कि वह कार्यक्रमों का निरन्तर मूल्यांकन करे, क्योंकि मूल्यांकन एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। इससे इस बात की जानकारी प्राप्त होती है कि कार्यप्रणाली में कहाँ-कहाँ कमियाँ रह गई, फिर इन कमियों को दूर किया जा सकता है।

संक्षिप्त विवरण :-

सामाजिक क्रिया में समाज कार्य के सिद्धांतों मूल्य और कौशल का उपयोग किया जाता है। इसलिए सामाजिक क्रिया व्यक्तियों के साथ काम करने के व्यवसायिक समाज कार्य के सहायक प्रणाली में से एक है। समाजिक क्रिया समाज कार्य दर्शन और अभ्यास की संरचना के अंतर्गत एक वैयक्तिक, सामूहिक या सामुदायिक प्रयास है, जिसका प्रमुख उद्देश्य सामाजिक प्रगति को प्राप्त करना, सामाजिक नीति में परिवर्तन करना और सामाजिक विधान, स्वास्थ्य एवं कल्याण सेवाओं में सुधार लाना है।

FAQ

सामाजिक क्रिया किसे कहते है ?

सामाजिक क्रिया के सिद्धांत क्या है?

सामाजिक क्रिया का महत्व क्या है ?

सामाजिक क्रिया की पद्धतियां क्या हैं ?

सामाजिक क्रिया के विशेषताएं क्या है?

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