सामाजिक संरचना क्या है? Social Structure

सामाजिक संरचना की अवधारणा :-

सामाजिक संरचना की अवधारणा को समाजशास्त्र और मानवशास्त्र दोनों में एक महत्वपूर्ण अवधारणा माना जाता है। समाज निरन्तर गतिमान है। बदलते सामाजिक परिवेश में सामाजिक संरचना और सामाजिक व्यवस्था समाज की दो ऐसी इकाइयाँ हैं जो मानव समाज को आकार देती हैं और उसकी नींव को मजबूत करती हैं।

सामाजिक संरचना और व्यवस्था को समझे बिना सामाजिक संबंधों की अन्योन्याश्रितता, निकटता, अलगाव, विघटन आदि का अध्ययन नहीं किया जा सकता है। इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम हर्बर्ट स्पेंसर ने समाजशास्त्रीय साहित्य में किया था।

अनुक्रम :-
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सामाजिक संरचना का अर्थ :-

सामाजिक संरचना किसी भी समग्र का वह भाग है जिसकी विभिन्न इकाइयाँ व्यवस्थित और व्यवस्थित होकर उस समग्र को एक आकार देती हैं। उदाहरण के लिए, एक घर की संरचना में ईंट, मोर्टार, चूना, पत्थर आदि इकाइयों की एक परस्पर, समावेशी और व्यवस्थित व्यवस्था होती है।

सामाजिक संरचना का रूप क्रमबद्धता है, और क्रमबद्धता संरचना के अस्तित्व को बनाए रखता है क्योंकि गतिशीलता इसकी मुख्य विशेषता है।

सामाजिक संरचना की परिभाषा :-

विभिन्न सामाजिक वैज्ञानिकों ने सामाजिक संरचना को परिभाषित करने का प्रयास किया है।

“सामाजिक संरचना परस्पर क्रिया करती हुई सामाजिक शक्तियों का एक जाल है जिससे अवलोकन और चिंतन की विभिन्न प्रणालियों का जन्म होता है।’’

कार्ल मानहीम

“सामाजिक संरचना का अध्ययन सामाजिक संगठन के प्रमुख स्वरूपों अर्थात् समूहों, समितियों और संस्थाओं के प्रकार एवं इन सब के संकुल जिनसे कि समाज का निर्माण होता है, से संबंधित है।’’

गिंसबर्ग

“सामाजिक संरचना परस्पर संबंधित संस्थाओं, एजेंसियों और सामाजिक प्रतिमानों तथा साथ ही समूह में प्रत्येक सदस्य द्वारा ग्रहण किए गए पदों और कार्यों को विशिष्ट क्रमबद्धता को कहते हैं।’’

पारसंस

“सामाजिक संरचना संस्था द्वारा परिभाषित और नियमित संबंधों में लगे हुए व्यक्तियों की एक क्रमबद्धता है।’’

रैडक्लिफ ब्राउन

सामाजिक संरचना की विशेषताएं :-

किसी भी सामाजिक संरचना का एक विशिष्ट आकार होता है, जिसके आधार पर उस संरचना की पहचान की जाती है या उस विशेष इकाई को संरचना का नाम दिया जाता है। लेकिन यह रूप मानवीय व्यवहार और संबंधों की दृष्टि से मूर्त नहीं अपितु अमूर्त है, जिसे व्यवहार की दृष्टि से जाना जाता है। सामाजिक संरचना की कुछ प्रमुख विशेषताओं को गुप्त और शर्मा ने इंगित किया है। जो निम्नलिखित है –

सामाजिक संरचना समाज की बाहरी प्रकृति का बोध कराती है –

समाज सामाजिक सम्बन्धों से निर्मित व्यवस्था है, परन्तु इस व्यवस्था की संरचना समाज की विभिन्न इकाइयों के पारस्परिक एवं व्यवस्थित एकीकरण से ही संभव है। परिवार की सामाजिक संरचना को सदस्यों में पाये जाने वाले सामाजिक सम्बन्धों, व्यवहारों तथा विवाह एवं नातेदारी के आधार पर ही समझा जाता है। सामाजिक संरचना का सामाजिक इकाइयों के कार्य – विधि से नहीं है।

सामाजिक संरचना की इकाइयों में एक क्रमबद्धता पाया जाता है –

व्यवस्थित आकार एक संरचना की वास्तविक पहचान है। संरचना की विभिन्न इकाइयाँ एक विशिष्ट संरचना बनाने के लिए क्रमिक रूप से जुड़ी हुई हैं। इकाइयों के विशिष्ट क्रम के आधार पर प्रत्येक संरचना का आकार और बनावट निर्धारित की जाती है।

सामाजिक संरचना एक अखंड व्यवस्था नहीं है –

प्रत्येक सामाजिक संरचना कई इकाइयों से बनी होती है। ये इकाइयाँ व्यक्ति, समूह, संस्थाएँ, समाज आदि हैं। इस प्रकार एक विशेष संरचना कई खंडों या इकाइयों से बनी होती है, इसलिए यह अखंड नहीं होती है। स्वरूप की स्पष्टता संरचना के प्रतिमान को उजागर करती है।

सामाजिक संरचना अंतर्संबंधित इकाइयों का एक व्यवस्थित स्वरूप है –

सामाजिक संरचना में एकरूपता का महत्वपूर्ण स्थान है, अर्थात् समग्र की इकाइयों में परस्पर सम्बन्धों और सुव्यवस्था का पाया जाना आवश्यक है। उदाहरण के लिए, घड़ी की संरचना तभी बनती है, जब घड़ी को बनाने वाली सभी इकाइयां आपस में जुड़ जाती हैं।

सामाजिक संरचना एक अपेक्षाकृत स्थायी अवधारणा है –

स्थिरता प्रत्येक सामाजिक संरचना की एक महत्वपूर्ण विशेषता है जिसके आधार पर सार्थक व्यवस्थाओं का निर्माण किया जाता है। उदाहरण के लिए, समाज को बनाने वाले विभिन्न समूह, समाज और संस्थाएँ जैसे परिवार, धर्म, आर्थिक और शैक्षिक संगठन और विवाह आदि समाज में अपेक्षाकृत स्थायी होते हैं।

कोई भी ज्ञात मानव समूह, परिस्थितिजन्य और समयबद्ध परिवर्तनों के बावजूद, किसी न किसी प्रकार की पारिवारिक संरचना का हिस्सा बना रहता है, जो सामाजिक व्यवस्था को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे ले जाने के लिए महत्वपूर्ण है। रीति-रिवाजों, परंपराओं, वैवाहिक संबंधों, रिश्तेदारी, रीति-रिवाजों का परस्पर जुड़ाव पारिवारिक संरचना को स्थिरता प्रदान करता है।

सामाजिक संरचना स्थानीय विशेषताओं से प्रभावित होती है –

प्रत्येक समाज की एक संरचना होती है और वह दूसरे समाज से भिन्न होता है। किसी स्थान विशेष की सांस्कृतिक व्यवस्था सामाजिक संरचना को प्रभावित करती है। विभिन्न स्थानों की संस्कृति, राजनीतिक स्थिति और भौगोलिक परिस्थितियों में अंतर है। अतः इनके प्रभाव के कारण सामाजिक संरचनाएँ भी भिन्न-भिन्न होती हैं।

सामाजिक संरचना अमूर्त है –

सामाजिक वैज्ञानिक मैकाइवर और पार्सन्स आदि का स्पष्ट मत है कि सामाजिक संरचना एक अमूर्त धारणा है। सामाजिक संरचना में विभिन्न संस्थान, एजेंसियां, प्रतिमानों, परिस्थितियां और भूमिकाएं शामिल हैं। ये सभी इकाइयाँ अमूर्त हैं, इनका भौतिक वस्तु की तरह कोई ठोस आकार या रूप नहीं है, इन्हें देखा या छुआ नहीं जा सकता है। इन अमूर्त संगठनों के घटक स्वयं मनुष्य हैं। यह लोगों के व्यवहारिक संबंधों के संदर्भ में है कि सामाजिक संबंध बनते या बिगड़ते हैं या नए संबंध बनते हैं।

सामाजिक संरचना में सामाजिक प्रक्रियाएं महत्वपूर्ण हैं –

सामाजिक संरचना के निर्माण में सहयोग, अनुकूलन, प्रबंधन, एकीकरण, सत्यापन, प्रतिस्पर्धा और असहयोग आदि जैसी सहयोगी और असहयोगी प्रक्रियाओं की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। ये सामाजिक प्रक्रियाएँ सामाजिक संरचना की प्रकृति को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। सामाजिक प्रक्रियाओं का बाहरी रूप सामाजिक संरचना का निर्धारण करता है।

सामाजिक संरचना में प्रत्येक इकाई का एक निश्चित स्थान और पद होती है –

सामाजिक व्यवस्था के सुचारु संचालन के लिए विभिन्न संरचनाओं का एक निश्चित स्थान और स्थिति होती है, क्योंकि संरचना के बेमेल जोड़ संरचना को विषम आकार देकर व्यवस्था को अवरुद्ध करते रहते हैं।

जिस प्रकार शरीर की संरचना में उसकी विभिन्न इकाइयों अर्थात् हाथ, पैर, नाक-कान, आँख आदि अंगों का एक निश्चित स्थान होता है। यदि ये अंग एक दूसरे का स्थान ले लें तो शरीर एक विकृत संरचना का प्रतीक है। इसी प्रकार सामाजिक संरचना में राज्य, परिवार, विवाह, धर्म, न्यायपालिका, शिक्षा संस्था आदि का स्थान पूर्व निर्धारित होता है।

सामाजिक संरचना में भी विघटन के तत्व पाये जाते हैं –

सामाजिक संरचना निर्माण का महत्वपूर्ण पहलू मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करना है, परन्तु यह भी सत्य है कि कोई भी संरचना अपने आप में श्रेष्ठ नहीं होती और न ही पूर्ण होती है। कभी-कभी परिस्थितिजन्य दृष्टिकोण से यह समाज में विघटन भी उत्पन्न करता है।

मर्टन और दुर्खीम का मानना है कि कभी-कभी सामाजिक संरचना ही समाज में नियम हीनता पैदा करती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि सामाजिक संरचना में संगठन और विघटन दोनों का निर्माण करने वाले तत्व पाए जाते हैं।

FAQ

सामाजिक संरचना से आप क्या समझते हैं?

सामाजिक संरचना की विशेषताएं लिखिए?

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Hi, I Am Social Worker इस ब्लॉग का उद्देश्य छात्रों को सरल शब्दों में और आसानी से अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराना है।

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