मानव व्यवहार के निर्धारण कारक क्या है?

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  • Post last modified:नवम्बर 13, 2023

मानव व्यवहार के निर्धारण कारक :-

मानव व्यवहार विभिन्न तत्वों से प्रभावित होता है जिसके कारण व्यवहार में भिन्नता आती है। संसार में किसी भी व्यक्ति का व्यवहार दूसरे के साथ पूर्णतः मेल या उसके बराबर नहीं हो सकता। व्यवहार आनुवंशिकता के साथ-साथ परिस्थितियों और वातावरण आदि से प्रभावित होता है। मानव व्यवहार के निर्धारण कारक इस प्रकार हैं :-

सृजनात्मकता :-

मनुष्य सक्रिय और सामाजिक प्राणी है जो कुछ जैविक गतिविधियाँ, अन्य सामाजिक क्रियाएँ करता रहता है। मानव मस्तिष्क में सोचने, समझने और कार्य करने की शक्ति तर्क के रूप में होती है। इसी शक्ति के कारण मनुष्य अन्य जीवों से भिन्न है और उसी से एक संस्कृति का निर्माण हुआ है। मानव संस्कृति अपनी रचनात्मक शक्ति और समाज के विभिन्न नियमों के कारण निरंतर आगे बढ़ रही है; वह रीति-रिवाजों, प्रथाओं और अन्य का व्यवस्थित रूप से निर्माण करने में सक्षम है।

इन प्रथाओं, परंपराओं, जनरीतियाँ और नैतिकता आदि का मानव व्यवहार पर एक निश्चित प्रभाव पड़ता है और व्यक्ति का व्यवहार उसी के अनुसार होता है। रचनात्मकता के माध्यम से विभिन्न वैज्ञानिक आविष्कार होते हैं, जो मानव सभ्यता का निर्माण करते हैं। इन्हीं प्रक्रियाओं के माध्यम से मानव जीवन उन्नति के पथ पर आगे बढ़ रहा है।

समकालीन समाज :-

मानव व्यवहार के निर्धारण में समकालीन समाज का बहुत बड़ा योगदान है। व्यक्ति जिस समाज में रहता है वहां की प्रथाएं, परंपराएं, नियम, कानून आदि व्यवहार को प्रभावित करते हैं। आनुवंशिक तत्वों के साथ-साथ व्यक्ति जिस समाज में रहता है उसके विभिन्न घटक मानव व्यवहार को प्रभावित करते हैं। सामाजिक संरचना के निम्नलिखित तत्व व्यवहार को प्रभावित करते हैं:-

परिवार –

परिवार को व्यक्ति की पहली पाठशाला माना जाता है। चेतना आने के बाद व्यक्ति सबसे पहले अपनी माँ से और फिर पिता और परिवार के सदस्यों से सीखता है, इसीलिए परिवार को पहली पाठशाला माना जाता है। पारिवारिक सीख व्यक्ति के व्यवहार में आजीवन बनी रहती है। बच्चे के सीखने के दौरान माँ के भाव और अन्य व्यवहारिक तत्व आत्मसात हो जाते हैं।

उसके व्यवहार का मूल तत्व माता-पिता, भाई-बहन तथा परिवार के अन्य सदस्यों के संपर्क से निर्धारित होता है। माता-पिता से मिलने वाले व्यवहार का प्रभाव बच्चे पर जीवन भर दिखाई देता है, इसीलिए मानव व्यवहार पर परिवार के प्रभाव को सामाजिक वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया है।

खेल समूह और मित्र समूह –

परिवार के बाद किसी व्यक्ति के व्यवहार पर दोस्तों का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है, इसलिए अच्छे दोस्तों के चयन पर जोर दिया जाता है। जब बच्चा खेलने में सक्षम होता है तो वह अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलता है या खेलने के लिए बच्चों की तलाश करता है।

दोस्तों के साथ रहकर वह बहुत सी चीजें आसानी से सीख लेता है। खेल के दौरान वह प्रतिस्पर्धा, प्यार, झगड़ा, डांट-फटकार और अन्य सामाजिक व्यवहार करता है, जो उसके जीवन पर अमिट छाप छोड़ता है। खेल समूह या दोस्तों के साथ बातचीत का मानव व्यवहार को निर्धारित करने में बहुत बुनियादी प्रभाव होता है।

अड़ोस-पड़ोस –

व्यवहार के निर्धारण में पड़ोस महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। परिवार और दोस्तों के अलावा, सी.एच. कूले ने पड़ोस को भी प्राथमिक समूह में शामिल किया है। ग्रामीण क्षेत्रों में गाँवों का आकार छोटा होने के कारण ग्रामीण समुदाय एक मोहल्ले का रूप ले लेता है, लेकिन शहरों के भीतर छोटे-छोटे मोहल्ले होते हैं और मोहल्लों में छोटे-छोटे समूह होते हैं, जिनकी अपनी-अपनी उपसंस्कृति होती है।

घर से बाहर निकलने पर व्यक्ति को यहां अपनेपन का एहसास होता है। किसी बुरे पड़ोसी के संपर्क में आने से व्यक्ति का व्यवहार खराब होने की संभावना रहती है। व्यक्ति का व्यवहार उसके आसपास की परिस्थितियों से भी निर्धारित होता है। इसीलिए लोग अच्छे पड़ोसी पसंद करते हैं।

शैक्षिक संस्था –

शिक्षा को व्यवहार परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है। शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति को देश, काल, परिस्थिति का ज्ञान प्राप्त होता है जिससे उसके व्यवहार में वांछित परिवर्तन आता है। विद्यालय के माध्यम से बच्चे का समाजीकरण होता है तथा समाज की संस्कृति की जानकारी भी मिलती है। आधुनिक युग में औपचारिक शिक्षा का महत्व बढ़ता जा रहा है, इसलिए व्यवहार की दृष्टि से भी शिक्षा का महत्व बढ़ता जा रहा है।

संस्कृति –

संस्कृति मानव एवं पशु समाज में अंतर करने का काम करती है। संस्कृति सर्वोत्तम विरासत है जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है। मानव व्यवहार पूर्णतः संस्कृति से प्रभावित होता है। संस्कृति वह अमूर्त चीज़ है जिसे मनुष्य समाजीकरण के माध्यम से अपने भीतर धारण करता है। मानव व्यवहार समय-समय पर बदलता रहता है, व्यक्तियों के संबंध भी वहां की संस्कृति के अनुरूप होने की अपेक्षा की जाती है।

परिस्थितियाँ :-

परिस्थितियाँ भी मानव व्यवहार के निर्धारक तत्वों में से एक हैं। मानव जीवन में विभिन्न प्रकार के अनुभव, वातावरण एवं परिस्थितियाँ भी मानव व्यवहार को प्रभावित करती हैं। व्यक्ति परिस्थितियों के अनुसार अपना व्यवहार बदलते रहते हैं और वातावरण के अनुरूप ढल जाते हैं। मनुष्य का व्यवहार परिवर्तनशील होता है, किसी व्यक्ति विशेष के साथ दीर्घकालिक संपर्क से भी व्यक्ति का व्यवहार बदल जाता है।

प्रभावी वर्ष या समय :-

जीवन में कुछ समय ऐसे होते हैं जिनमें घटित घटनाएँ जीवन भर प्रभाव डालती हैं। प्रभावी समय में बचपन से लेकर किशोरावस्था तक यानी 4-5 वर्ष से लेकर 18-9 वर्ष तक का समय शामिल है, इस दौरान बच्चा विभिन्न संस्थाओं और परिस्थितियों के माध्यम से सीखता है और इस समय सीखा गया व्यवहार उसके मस्तिष्क पर जीवन भर प्रभाव डालता है।

मनुष्य जीवनभर सीखता रहता है, लेकिन जीवन के शुरुआती समय की सीख उसके जीवन व्यवहार में अधिक झलकती है। व्यक्ति के जीवन में कुछ विशिष्ट प्रकार की घटनाएँ भी होती हैं, जिनका व्यवहार पर अमिट प्रभाव पड़ता है।

आनुवंशिक विरासत :-

व्यक्ति का व्यवहार आनुवंशिकता से भी प्रभावित होता है। आनुवंशिकता के द्वारा व्यक्ति का व्यवहार एक निर्धारित दिशा में विकसित होता है जो माता-पिता के आंतरिक गुणों से प्रभावित होता है। मानव शरीर का निर्माण कोशिकाओं से होता है। कोशिका के केन्द्रक में एक छड़ी के आकार की संरचना पाई जाती है, जिसे गुणसूत्र कहते हैं। गर्भधारण की प्रक्रिया तब होती है जब पुरुष के अंडग्रंथि से निकलने वाली शुक्राणु कोशिकाएं महिला के डिम्बग्रंथि से निकलने वाली अंडाणु कोशिकाओं से मिलती हैं।

व्यवहार आनुवंशिकी की शाखा मनोवैज्ञानिक की एक शाखा के रूप में उभरी, इस विषय के अंतर्गत आनुवंशिकता का व्यवहार पर प्रभाव, ये प्रयोग मनुष्यों और जानवरों पर भी किए गए।

संक्षिप्त विवरण :-

संक्षेप में, मानव व्यवहार को निर्धारित करने में व्यक्ति की आनुवंशिक विरासत अर्थात माता-पिता के गुण और शारीरिक बनावट तथा अन्य आंतरिक तत्वों के साथ-साथ व्यक्ति में पाई जाने वाली सृजनात्मक शक्ति, समाज के विभिन्न तत्व जैसे परिवार, मित्र मंडल, पड़ोस, शैक्षिक और परिस्थितियाँ आदि जिम्मेदार हैं।

FAQ

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