प्राथमिक समूह किसे कहते हैं? अर्थ, विशेषताएँ, महत्त्व

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  • Post last modified:सितम्बर 14, 2022

प्रस्तावना :-

समाजशास्त्र में प्राथमिक समूह की अवधारणा को पहली बार 1909 में चार्ल्स कूले ने अपनी पुस्तक ‘Social Organization’ में पेश किया था। प्राथमिक समूह से उनका तात्पर्य एक ऐसे समूह से था जिसके सदस्य एक-दूसरे के आमने-सामने के सम्पर्क में आते हैं और जिसमें हमारे मित्र, साथी, परिवार और वे लोग शामिल होते हैं जो हर दिन मिलते हैं। ये वे लोग हैं जिनके साथ हमारा घनिष्ठ संबंध है।

प्राथमिक समूह का अर्थ :-

स्नेह, प्रेम, सहानुभूति आदि मानव जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इन भावों के विकास में प्राथमिक समूह की मुख्य भूमिका होती है। ऐसे गुणों के कारण ही समाज के संगठन को स्थिरता मिलती है। मनुष्य जब जन्म लेता है तो उसका रूप पूर्णतः जैविक होता है। सबसे पहले वह परिवार के संपर्क में आता है और परिवार उसे एक सामाजिक प्राणी बनाता है। चूँकि परिवार मनुष्य के जीवन में प्रथम या प्राथमिक है, इसलिए इसे प्राथमिक समूह कहा जाता है। प्राथमिक समूह से तात्पर्य उन समूहों से है जिनमें प्रत्यक्ष, अनौपचारिक, घनिष्ठ और प्राथमिक संबंध पाए जाते हैं।

कूले ने प्राथमिक समूह को एक ऐसा समूह माना है जिसके सदस्यों का आमने-सामने संबंध होता है। आमने-सामने के संबंधों के कारण सदस्य घनिष्ठ संबंधों से बंधे होते हैं। ये समूह मनुष्य के सामाजिक स्वभाव के निर्माण और उसके जीवन में आदर्शों के निर्माण में भी प्राथमिक हैं। उदाहरण के लिए, उस परिवार को लें, जिसे कूले ने पहला प्राथमिक समूह माना था। परिवार के सदस्यों में आमने-सामने के रिश्ते देखने को मिलते हैं। इससे सभी सदस्य आपस में घनिष्ठ संबंधों में बंधे होते हैं। वे एक दूसरे की मदद या सहयोग भी करते हैं। परिवार समाजीकरण करने वाला पहला समूह है। इससे व्यक्ति भाषा, खान-पान, व्यवहार, आचरण सीखता है।

प्राथमिक समूह की परिभाषा :-

“प्राथमिक समूह का तात्पर्य दो या दो से अधिक ऐसे व्यक्तियों से है जो घनिष्ठ, सहभागी ओर वैयक्तिक ढंग से आपस में व्यवहार करते हों।”

लुण्डबर्ग

“प्राथमिक समूहों से हमारा तात्पर्य उन समूहों से है, जिनमें सदस्यों के बीच आमने-सामने के घनिष्ठ सम्बन्ध और पारस्परिक सहयोग की विशेषता होती है। ऐसे समूह अनेक अर्थो में प्राथमिक होते हैं, लेकिन विशेष रूप से इस अर्थ में कि ये व्यक्ति के सामाजिक स्वभाव और विचार के निर्माण में बुनियादी योगदान देते हैं।’”

कूले

प्राथमिक समूह के उदाहरण :-

विभिन्न समाजशास्त्रियों ने प्राथमिक समूहों के कई उदाहरण प्रस्तुत किए हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:-

डेविस के अनुसार-

  • परिवार
  • खेल समूह
  • पड़ोस या गाँव

कूले के अनुसार-

  • परिवार
  • पड़ोस या समुदाय
  • क्रीड़ा समूह

मैकाइवर एवं पेज के अनुसार-

  • परिवार
  • मित्र समूह
  • खेल समूह
  • साझेदारी
  • अध्ययन समूह
  • गपसप समूह
  • गिरोह
  • जनजातीय परिषद
  • स्थानीय भाई-चारा

प्राथमिक समूह की विशेषताएँ :-

प्राथमिक समूह की प्रकृति को इसकी कुछ प्रमुख विशेषताओं से अधिक स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है। इनमें से कुछ विशेषताएं बाहरी हैं और कुछ आंतरिक हैं।

बाह्य

  • शारीरिक समीपता
  • छोटा आकार
  • स्थायित्व
  • प्राथमिक नियन्त्रण
  • स्वाभाविक सम्बन्ध
  • स्वंय साध्य सम्बन्ध

आन्तरिक

  • उद्देश्यों की समानता
  • वैयक्तिक सम्बन्ध
  • सम्बन्धों में पूर्णता

शारीरिक समीपता –

प्राथमिक समूहों से शारीरिक निकटता होना आवश्यक है। किंग्सले डेविस ‘शारीरिक समीपता’ शब्द का प्रयोग करते हैं, जिसे कूले ने आमने-सामने के संबंध के रूप में किया है। आपसी आत्मीयता के लिए। यह आवश्यक है कि सदस्य एक-दूसरे को प्रत्यक्ष रूप से जानते हों। आपसी ज्ञान एक दूसरे के विचारों से परिचित होने का अवसर देता है। इससे एक-दूसरे की भावनाओं को समझा जा सकता है और “‘हम की भावना ” विकसित होती है।

छोटा आकार –

प्राथमिक समूहों के सदस्यों का आकार या संख्या बहुत सीमित है। जैसा कि हमने पहले कहा है, प्राथमिक समूह के सदस्यों को एक-दूसरे को व्यक्तिगत रूप से जानना चाहिए और उनके करीब होना चाहिए। इसका असर यह होता है कि समूह के सदस्यों की संख्या इतनी ही रहती है कि सभी लोगों का आपस में सीधा संबंध हो सके। डेविस छोटे आकार को प्राथमिक समूह की सबसे प्रमुख विशेषता मानते हैं।

तुलनात्मक स्थायित्व –

प्राथमिक समूह अन्य समूहों की तुलना में अधिक स्थायी होते हैं। वास्तव में, प्राथमिक समूह के सदस्यों के बीच संबंध इतने घनिष्ठ और व्यक्तिगत होते हैं कि किसी भी सदस्य के लिए इन समूहों की सदस्यता छोड़ना बहुत कठिन होता है। इस विशेषता के कारण ही ये समूह अपने स्वभाव से अधिक स्थायी होते हैं।

उद्देश्यों की समानता –

चूंकि प्राथमिक समूह के सदस्य आपस में चर्चा करते रहते हैं, उनका दृष्टिकोण वही रहता है और इस प्रकार वे समान उद्देश्यों के साथ अपने कार्यों को पूरा करते हैं। प्रत्येक सदस्य अपने लक्ष्यों या हितों को प्राप्त करने के लिए किसी और के हितों का उल्लंघन या अवहेलना नहीं करने का प्रयास करता है। यही कारण है कि प्राथमिक समूहों में पारस्परिक मतभेद और संघर्ष की घटनाएं बहुत कम देखी जाती हैं।

सम्बन्ध वैयक्तिक होते हैं –

प्राथमिक समूह में, एक सदस्य एक व्यक्ति के रूप में दूसरे से संबंधित होता है, न कि उसकी स्थिति या धन के कारण। इसी वजह से रिश्तों में कोई दिखावा या ढोंग नहीं होता और न ही उनका हस्तान्तरण किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, परिवार में, हम एक व्यक्ति का सम्मान करते हैं क्योंकि वह उम्र, रिश्ते या अनुभव में हमसे बड़ा है, इसलिए नहीं कि वह अमीर है या उच्च स्थान रखता है।

सम्बन्ध सम्पूर्ण होते हैं –

प्राथमिक समूहों के साथ हमारे संबंध किसी विशेष उद्देश्य के लिए स्थापित नहीं हैं। संबंध स्थापित करना ही किसी व्यक्ति का लक्ष्य नहीं है। इसका मतलब यह है कि व्यक्ति प्राथमिक समूह में जो संबंध स्थापित करता है, उसका उद्देश्य किसी एक या दो हितों को पूरा करना नहीं है, बल्कि यह संतुष्ट करना है कि व्यक्ति उनके माध्यम से क्या हासिल करता है।

प्राथमिक नियन्त्रण –

ऐसे समूहों में सभी सदस्यों का एक दूसरे पर प्राथमिक और प्रभावी नियंत्रण होता है। अनुभव से पता चलता है कि मनुष्य के व्यवहार, जिसे कानून बिल्कुल भी नियंत्रित नहीं कर सकता है, परिवार और खेल समूह के सदस्यों द्वारा पूरी तरह से नियंत्रित किया जाता है। इसका कारण यह है कि प्राथमिक समूह के सदस्यों में परस्पर प्रेम, सहानुभूति और त्याग के गुण होते हैं। व्यक्ति अचेतन रूप से प्राथमिक समूह के सदस्यों के आदेशों का पालन करना जारी रखता है।

सम्बन्ध स्वाभाविक होते हैं –

प्राथमिक समूहों में संबंध स्वतः विकसित होते हैं। प्राथमिक समूह किसी भी प्रलोभन या दबाव के कारण नियोजित तरीके से स्थापित नहीं होता है, लेकिन ये समूह स्वाभाविक रूप से विकसित होते हैं। उदाहरण के लिए, परिवार एक प्राथमिक समूह है जो हजारों वर्षों की त्रुटि और सुधार प्रक्रिया के बाद ही अपने वर्तमान स्वरूप में आ सकता है।

सम्बन्ध स्वयं साध्य होते हैं –

प्राथमिक समूह के सदस्यों के संबंध अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए नहीं होते हैं। ये संबंध स्वयं व्यवहार्य हैं। इससे दोनों पक्षों को मानसिक संतुष्टि और खुशी मिलती है। पारिवारिक रिश्ते ऐसे ही होते हैं। इसी तरह एक साथ खेलने और पढ़ने वाले लोगों की दोस्ती किसी स्वार्थ के कारण नहीं बल्कि स्वयं एक साध्य है।

प्राथमिक समूह का महत्त्व :-

संक्षेप में, प्राथमिक समूह के महत्व को इस प्रकार समझाया जा सकता है:

१. प्राथमिक समूह मनुष्य के संपूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं। जन्म के बाद ही इन समूहों का प्रभाव शुरू होता है। जीवन भर व्यक्ति का व्यवहार इन समूहों से प्रभावित होता रहता है।

२. प्राथमिक समूह सामाजिक नियंत्रण के मुख्य साधन हैं। सहानुभूति और त्याग की भावना के कारण व्यक्ति प्राथमिक समूह के नियमों को नहीं तोड़ता है। ये समूह उसके समाजीकरण के माध्यम से उसकी पाशविक प्रवृत्तियों को समाप्त कर उसके व्यवहार को नियंत्रित करते हैं।

३. प्राथमिक समूह समाजीकरण की प्रमुख अभिकरण हैं। एच. ई. बार्नोन का कहना है कि प्राथमिक समूह समाजीकरण की प्रक्रिया के विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे व्यक्ति के समाजीकरण, एकीकरण और स्थापित संस्थाओं से सुरक्षा में भी स्वाभाविक रूप से महत्वपूर्ण हैं।

४. प्राथमिक समूह इस प्रकार के वातावरण का निर्माण करते हैं जिसमें व्यक्ति को प्रभावशाली सुरक्षा प्राप्त होती है। ब्रूम कहते हैं कि “प्राथमिक समूह व्यक्ति और समाज के बीच सबसे महत्वपूर्ण कड़ी हैं।” प्राथमिक समूहों की सहायता से व्यक्ति को भावनात्मक सुरक्षा प्राप्त होती है और इनके माध्यम से व्यक्ति अपने उच्च लक्ष्यों को प्राप्त करता है।

५. प्राथमिक समूह हमें सही और गलत का ज्ञान देते हैं। वे सामूहिक मान्यताओं के अनुसार व्यक्तित्व के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। उदाहरण के लिए, परिवार आमतौर पर अपने सदस्यों को समाज में ठीक से व्यवहार करना सिखाता है।

प्राथमिक समूह का सामाजिक महत्व  :-

व्यक्ति और समूह के लिए प्राथमिक समूहों के सामाजिक महत्व को निम्नानुसार समझाया जा सकता है:-

संस्कृति शिक्षा –

प्राथमिक समूहों का एक प्रमुख कार्य व्यक्ति को उसकी संस्कृति और आदर्श-नियमों से परिचित कराना है। उदाहरण के लिए, प्राथमिक समूह किसी व्यक्ति को बताते हैं कि उनका धर्म, नैतिकता, लोकाचार, लोकतांत्रिक परंपराएं और रीति-रिवाज क्या हैं और वे व्यक्ति से किस तरह के व्यवहार की मांग करते हैं। इन सांस्कृतिक नियमों से परिचित होने पर ही व्यक्ति सामाजिक प्राणी बनता है।

व्यक्ति का समाजीकरण –

प्रत्येक मनुष्य में घृणा, लोभ, भय, क्रूरता और अनुशासनहीनता की प्रवृत्तियाँ पाई जाती हैं। प्राथमिक समूह व्यक्ति के असामाजिक व्यवहार को नियंत्रित करते हैं और उन्हें व्यक्ति के सामाजिक नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित करते हैं। नतीजतन, एक व्यक्ति आसानी से अपनी सामाजिक परिस्थितियों के अनुकूल हो जाता है।

भावनात्मक सुरक्षा –

केवल प्राथमिक समूह ही ऐसा वातावरण बनाते हैं जिसमें व्यक्ति मानसिक रूप से सुरक्षित महसूस करता है। व्यक्ति चाहे बच्चा हो या बूढ़ा, शक्तिशाली हो या धैर्यवान, अमीर हो या गरीब, प्राथमिक समूह उसे हर तरह की सुविधा प्रदान करके मानसिक रूप से सुरक्षित बनाते हैं।

मानवीय गुणों का विकास –

मेरिल का कहना है कि प्राथमिक समूहों का सबसे महत्वपूर्ण कार्य व्यक्तित्व का विकास करना है। प्राथमिक समूह व्यक्ति में सहानुभूति, दया, प्रेम, सहिष्णुता और सहयोग के गुण उत्पन्न करते हैं। इन गुणों की सहायता से व्यक्ति का समाजीकरण होता है।

क्षमता और रुचि का विकास –

प्राथमिक समूहों के अलावा, सभी समूह अपने-अपने हितों से बंधे होते हैं, जिसके कारण उनके सदस्यों में कुंठा, वैमनस्य और कभी-कभी हीनता की भावना विकसित होती है। इसके विपरीत, प्राथमिक समूह अपने सदस्यों से उनकी क्षमता और रुचि के अनुसार कार्य लेते हैं। परिणामस्वरूप प्राथमिक समूह के सदस्यों को न केवल अपने कौशल और रुचि को बढ़ाने का अवसर मिलता है, बल्कि उनमें आत्मविश्वास की भावना भी विकसित होती है।

विचारों को व्यक्त करने की क्षमता का विकास –

एक व्यक्ति अपने जीवन में तभी सफल हो सकता है जब उसके पास शुरू से ही अपने विचारों को व्यक्त करने की क्षमता और कौशल हो। यह काम प्राथमिक समूहों द्वारा सबसे खूबसूरती से किया जाता है। उदाहरण के लिए, परिवार ही बच्चे को भाषा से अवगत कराता है। भाषा के माध्यम से ही व्यक्ति के विचारों का निर्माण होता है और इन्हीं विचारों से उसके व्यक्तित्व का निर्माण होता है।

मनोरंजन सुविधाएं –

प्राथमिक समूहों ने भी व्यक्ति के लिए स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्राथमिक समूहों के कार्य अपने आप में सुखद होते हैं। सभी सदस्य इन कार्यों में हिस्सा लेना चाहते हैं और साथ ही ये कार्य शिक्षाप्रद भी हैं। प्राथमिक समूह द्वारा दिया जाने वाला यह मनोरंजन अक्सर प्रेरणा, उत्साह, हास्य, व्यंग्य, लोकगीत, उपहास और सांस्कृतिक उत्सवों के रूप में देखा जाता है।

संक्षिप्त विवरण :-

प्राथमिक समूहों के कारण ही मनुष्य समाज के योग्य बनता है। यदि मानव जीवन में प्राथमिक समूह मौजूद नहीं है, तो वह समाज में उपयुक्त नहीं होगा। मनुष्य को अपने जीवनकाल में किसी न किसी प्राथमिक समूह का सदस्य होना चाहिए। प्राथमिक समूह मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।

FAQ

प्राथमिक समूह क्या है?

प्राथमिक समूह के उदाहरण क्या है?

प्राथमिक समूह की विशेषताएँ क्या है?

प्राथमिक समूह का महत्त्व क्या है?

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Hi, I Am Social Worker इस ब्लॉग का उद्देश्य छात्रों को सरल शब्दों में और आसानी से अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराना है।

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