प्रथा क्या है?
प्रथाएँ भी अनौपचारिक सामाजिक प्रतिमान हैं। प्रथा शब्द का प्रयोग ऐसी जनरीतियों के लिए किया जाता है जो समाज में लम्बे समय से प्रचलित हैं।
प्रथा की अवधारणा :-
प्रथा शब्द का प्रयोग ऐसी जनरीतियों के लिए किया जाता है जो समाज में लम्बे समय से प्रचलित हैं। प्रथा में समूह कल्याण की भावना भी शामिल है। यही कारण है कि प्रथा और लोकाचार को कभी-कभी पर्यायवाची के रूप में उपयोग किया जाता है। इस प्रथा को अलिखित कानून कहा जाता है।
जब जनरीतियों एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होते हैं तो उन्हें प्रथाओं के रूप में जाना जाता है। प्रथाएं नवीनता के विपरीत हैं और काम करने के पारंपरिक तरीके पर जोर देती हैं।
इसलिए, यह स्पष्ट है कि प्रथाएँ हमारे सामाजिक व्यवहार को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे हमारी संस्कृति का निर्धारण करते हैं। वे इसे संरक्षित करते हैं और इसे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाते हैं।
उन्हें समाज के अस्तित्व के लिए बिल्कुल आवश्यक माना जाता है और इतना पवित्र माना जाता है कि उनका कोई भी उल्लंघन न केवल एक चुनौती या अपराध माना जाता है, बल्कि भगवान के क्रोध को आमंत्रित करने वाला एक अधर्मी कार्य भी माना जाता है।
प्रथा का अर्थ :-
समाज द्वारा मान्यता प्राप्त सुव्यवस्थित, दृढ़ जनरीतियाँ हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होती हैं, प्रथा कहलाती हैं। प्रथा, वास्तव में, सामाजिक क्रिया करने का एक स्थापित और स्वीकृत पद्धति है; और लोग इस पर विश्वास इसलिए करते हैं क्योंकि समाज के अधिकांश लोग बहुत दिनों से एक ही पद्धति के अनुसार कार्य या व्यवहार करते आ रहे हैं। इस प्रकार प्रथा का संबंध लंबे समय से प्रचलित लोक रीति-रिवाजों से है।
प्रथा की परिभाषा :-
विभिन्न समाजशास्त्रियों ने प्रथाओं को इस प्रकार परिभाषित किया है:-
“जनरीतियाँ जो कई पीढ़ियों तक चलते रहते हैं, वे औपचारिक मान्यता की एक मात्रा प्राप्त कर लेते हैं, प्रथाएँ कहलाते हैं।”
लुण्डबर्ग
“समाज द्वारा मान्यता प्राप्त कार्य करने की विधियाँ ही समाज की प्रथाएं हैं।”
मैकाइवर और पेज
“प्रथा शब्द का प्रयोग आचरण के उन सभी प्रतिमानों के लिए किया जाता है जो परंपराओं द्वारा अस्तित्व में आते हैं तथा समूह में स्थायित्व पाते हैं।”
ऐपीर
“प्रथाएँ और परंपराएँ समूह द्वारा स्वीकृत नियंत्रण की वह प्रविधियाँ हैं, जो जो कि खूब सुप्रतिष्ठित हों, जिन्हें स्वीकार कर लिया गया हों, और जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित हो रही हों।”
प्रो. बोगार्डस
“प्रथा शब्द का प्रयोग आचरण के उन प्रतिमानों की उस सम्पूर्णता के लिए किया जाता है जो परंपरा से अस्तित्व में आते हैं, और एक समूह में स्थायित्व पाते हैं।”
सेपीर
प्रथा की विशेषताएं :-
- प्रथाएँ का स्वभाव बंधनकारी है।
- प्रथाएँ अलिखित और अनियोजित हैं।
- प्रथाएँ समाज में व्यवहार करने की पद्धति हैं।
- प्रथाएँ वे जनरीतियाँ हैं जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होते रहते हैं।
- प्रथाएँ रूढ़िबद्धता का पक्ष लेती हैं और नवीनता का विरोध करती हैं।
- प्रथाओं को समाज की स्वीकृति मिलती है, इसलिए उनमें स्थिरता पाई जाती है।
- कठोर और अपरिवर्तनीय होने के बावजूद, समय के साथ प्रथाएँ बदलती रहती हैं।
- प्रथाएँ बनाई नहीं जाती बल्कि वे समाज के साथ धीरे-धीरे विकसित होती हैं। इस प्रकार यह इतिहास की देन है।
- प्रथाएँ व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित करती हैं, यह सामाजिक नियंत्रण का एक अनौपचारिक साधन है।
- प्रथाओं के उल्लंघन पर समाज द्वारा प्रतिक्रिया व्यक्त की जाती है, जो ऐसा करते हैं उनकी निंदा की जाती है और उनका उपहास उड़ाया जाता है।
- प्रथाओं का पालन न करने पर व्यक्ति की समाज द्वारा आलोचना और निंदा की जाती है और उसे समाज से बहिष्कृत भी किया जा सकता है।
- प्रथाओं का पालन करने के लिए कोई औपचारिक संस्था या संगठन नहीं है, न ही उन्हें समझाने और देखभाल करने वाला कोई अधिकारी है, समाज प्रथाओं का न्यायालय है।
प्रथा का महत्व :-
- प्रथाएं सार्वभौमिक हैं।
- प्रथाएं व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं।
- प्रथाएँ सामाजिक विरासत का भण्डार हैं।
- प्रथाएँ लोकतांत्रिक और समग्रवादी दोनों हैं।
- प्रथाएँ सामाजिक जीवन को नियंत्रित करती हैं।
संक्षिप्त विवरण :-
प्रथा सामाजिक जीवन का अभिन्न अंग है। समाज में कार्य करने की मान्यता प्राप्त पद्धतियों को प्रथा कहा जाता है। लोक रीति-रिवाज तब प्रथा बन जाते हैं जब वे लंबे समय तक प्रचलन में रहने के बाद सामाजिक मान्यता प्राप्त कर लेते हैं और उन्हें अगली पीढ़ी तक हस्तांतरित कर देते हैं। समाज में रहते हुए मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नये-नये विधि खोजता है। धीरे-धीरे इन विधियों को जनता का समर्थन मिलने लगता है। जब विधियों को लगातार दोहराया जाता है तो वे एक प्रथा का रूप ले लेते हैं।
समाज में रहते हुए मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नये-नये विधि खोजता है। धीरे-धीरे इन विधियों को जनता का समर्थन मिलने लगता है। जब विधियों को लगातार दोहराया जाता है तो वे एक प्रथा का रूप ले लेते हैं।