सामाजिक स्तरीकरण क्या है सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार

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  • Post last modified:अक्टूबर 31, 2023

प्रस्तावना :-

सामाजिक स्तरीकरण वह व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत समाज के विभिन्न समूहों को क्रमशः उच्च से निम्न की स्थिति में रखा जाता है। इसे सामाजिक सोपान व्यवस्था या उच्चोधन व्यवस्था भी कहा जाता है। स्तरीकरण एक समाज की विभिन्न प्रस्थितियों का क्रम है। व्यवस्था का आधार वह प्रस्थिति है जो सामाजिक मूल्यों पर निर्भर करती है। सामाजिक स्तरीकरण में उच्चतम से निम्नतम सामाजिक स्थिति वाले सभी समूह शामिल हैं।

अनुक्रम :-
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सामाजिक स्तरीकरण की अवधारणा :-

मानव समाज में ऐसा कोई युग नहीं है जिसमें सभी लोगों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति समान रही हो। सामाजिक स्तरीकरण को सभी समाजों में किसी न किसी रूप में सार्वभौमिक रूप में देखा जा सकता है। ‘स्तरीकरण’ शब्द समाजशास्त्र में भूगर्भशास्त्र से लिया गया है। भूविज्ञान में चट्टानों को विभिन्न स्तरों में बांटा गया है।

इसी प्रकार समाज में अनेक सामाजिक स्तर पाए जाते हैं। प्रत्येक समाज अपने सदस्यों को आय, संपत्ति, व्यवसाय, जाति, पद आदि के आधार पर उच्च और निम्न श्रेणियों में विभाजित करता है। इनमें से प्रत्येक विभाजन एक परत के समान होता है और जब इन सभी परतों को उच्च और निम्न के क्रम में रखा जाता है, तो हम इसे “सामाजिक स्तरीकरण” के रूप में समझें।

इसलिए, सामाजिक स्तरीकरण एक सामाजिक व्यवस्था है जिसमें समाज को विभिन्न ऊपरी और निचले वर्गों में विभाजित किया जाता है और तदनुसार सामाजिक संरचना में उनकी प्रस्थिति और भूमिका निर्धारित करता है। सामाजिक स्तरीकरण न केवल सामाजिक प्रस्थिति या पद बल्कि सामाजिक अधिकारों, शक्ति, सत्ता और निर्योग्यताओं को विभिन्न सामाजिक समूहों में विभाजित करने की एक सामाजिक प्रणाली है।

सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ :-

सामाजिक स्तरीकरण समाजशास्त्र की एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। जैसे मिट्टी की परतें होती हैं। इसी प्रकार समाज भी कई स्तरों में विभाजित है। इस प्रकार समाज के विभिन्न स्तरों के समूहों एवं सदस्यों में अर्थात् प्रत्येक समाज में ऐसी स्थितियाँ पायी जाती हैं जिनमें श्रेष्ठता एवं हीनता की भावना पायी जाती है, जिसे स्तरीकरण कहते हैं।

अतः स्तरीकरण एक सार्वभौमिक वास्तविकता है जो प्राय: प्रत्येक समाज में न्यूनाधिक मात्रा में पाई जाती है। सरल समाज में स्तरीकरण का सरल रूप जटिल समाज में सरल जबकि जटिल सामाजिक स्तरीकरण सामाजिक असमानता है, जो समाज को प्रस्थितियों में विभाजित करता है।

सामाजिक स्तरीकरण की परिभाषा :-

सामाजिक स्तरीकरण को और भी स्पष्ट करने के लिए कुछ प्रमुख विद्वानों की परिभाषाओं का उल्लेख कर सकते हैं –

“सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ सामाजिक व्यवस्था में व्यक्तियों का उच्च और निम्न क्रम विन्यास में विभाजन है।”

टॉलकॉट पारसंस

“सामाजिक स्तरीकरण से तात्पर्य समाज का विभिन्न स्थायी श्रेणियों और समूहों में विभाजन से है जो उच्चतर और अधीनता के संबंधों से परस्पर संबंध होते हैं।”

जिंसबर्ट

 “वह प्रक्रिया जिसके द्वारा व्यक्तियों और समूहों को थोड़े बहुत स्थायी प्रस्थितियों के उच्चतम और निम्नता के क्रम में श्रेणीबद्ध किया जाता है, स्तरीकरण के नाम से जानी जाती है। “

ऑगबर्न एवं निमकॉक

“स्तरीकरण उच्च और निम्न सामाजिक इकाइयों में समाज का समानांतर विभाजन है।”

रेमंड मूरे

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि सामाजिक स्तरीकरण के माध्यम से समाज को विभिन्न उच्च और निम्न समूहों में विभाजित और संगठित किया जाता है और ये समूह एक दूसरे से जुड़े होते हैं और सामाजिक एकता बनाए रखते हुए समाज में स्थिरता बनाए रखते हैं।

सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताएं :-

सामाजिक स्तरीकरण की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया जा सकता है –

  • सामाजिक स्तरीकरण समाज की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जो लगभग हर समाज में पाई जाती है।
  • सामाजिक स्तरीकरण का मूल कारण सामाजिक विभेदीकरण है, जो समाज में लोगों के बीच सामाजिक अंतर पैदा करता है और उन्हें विभिन्न भागों में वर्गीकृत करता है।
  • सामाजिक स्तरीकरण में व्यक्तियों को उनकी योग्यता तथा कार्य के अनुसार विभिन्न स्तरों में वर्गीकृत किया जाता है, ताकि समाज की सामाजिक व्यवस्था बनी रहे।
  • सामाजिक स्तरीकरण से समाज में विभिन्न श्रेणियों का विकास होता है, जिनकी सामाजिक स्वीकृति होती है और जो अपेक्षाकृत स्थिर होती हैं।
  • सामाजिक स्तरीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो समाज में निरंतर गति से चलती रहती है। जैसे-जैसे व्यक्ति के कार्य और क्षमताएँ बदलती और विकसित होती हैं, वे समान रूपों में स्तरीकृत हो जाते हैं।
  • सामाजिक स्तरीकरण के कारण दो भिन्न वर्गों में अन्तर होता है, परन्तु एक वर्ग के लोगों में एक सामूहिक चेतना पायी जाती है, जिसे वर्ग चेतना कहते हैं।
  • सामाजिक स्तरीकरण समाज का विभिन्न इकाइयों में विभाजन है ताकि सभी इकाइयों को उच्च और निम्न स्थान दिया जा सके।
  • सामाजिक स्तरीकरण में कहीं भी कोई खुला या बंद वर्ग नहीं है। जाति और सामाजिक वर्ग को सामाजिक स्तरीकरण के उदाहरण के रूप में माना जा सकता है, लेकिन न तो जाति पूरी तरह से बंद वर्ग है और न ही वर्ग एक प्रकार की खुली श्रेणी है।

सामाजिक स्तरीकरण के आधार :-

  • प्राणीशास्त्रीय आधार
  • सामाजिक सांस्कृतिक आधार

प्राणीशास्त्रीय आधार –

सामाजिक स्तरीकरण को विभिन्न प्राणीशास्त्रीय आधारों जैसे लिंग, आयु, प्रजाति और जन्म के आधार पर निम्न प्रकार से समझा जा सकता है।

लिंग आधारित स्तरीकरण –

प्राणीशास्त्रीय सामाजिक स्तरीकरण के लिए लिंग पहला महत्वपूर्ण आधार है। सामाजिक स्तरीकरण का यह आधार सबसे प्राचीन और सरल है। लिंग स्तरीकरण के दो स्त्री-पुरुष सामान्य स्तर हैं। स्त्री और पुरुष के बीच का अंतर अधिक प्राणीशास्त्रीय और सामाजिक-सांस्कृतिक है। प्रत्येक समाज या संस्कृति अपने पुरुष और महिला सदस्यों को एक निश्चित दर्जा देती है और तदनुसार महिला और पुरुष समूहों में एक उच्च और निम्न स्तर होता है।

सभ्यता काल से ही मानव समाज में पुरुषों और महिलाओं की सामाजिक प्रस्थिति और भूमिका लिंग भेद के आधार पर निर्धारित की जाती रही है। मातृसत्तात्मक समाजों में महिलाओं की प्रस्थिति पुरुषों की तुलना में अधिक थी। पितृसत्तात्मक समाजों में पुरुषों की प्रस्थिति महिलाओं की तुलना में अधिक मानी जाती है।

आयु आधारित स्तरीकरण –

उम्र के आधार पर स्तरीकरण के चार सामान्य स्तर हैं – शिशु, किशोर, युवा और वयस्क या वृद्ध। अतः सभी मानव समाजों में आयु के आधार पर उच्च और निम्न स्तरों में स्तरीकरण स्थापित करने की प्रक्रिया देखी जा सकती है। आयु के बढ़ने के साथ-साथ व्यक्ति अनुभव और ज्ञान को अधिक से अधिक एकीकृत करने में भी सफल होता है, जिससे उसकी स्थिति ऊँची हो जाती है।

भारत में, एक संयुक्त परिवार का मुखिया वह सदस्य होता है जो परिवार में सबसे पुराना होता है। इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि सामाजिक स्तरीकरण में आयु के आधार पर वयस्कों या वृद्धों का सर्वोच्च स्थान है, जिसके बाद क्रमशः युवा, किशोर और शिशु हैं।

प्रजातियों के आधार पर स्तरीकरण –

प्राणीशास्त्रीय सामाजिक स्तरीकरण का तीसरा महत्वपूर्ण आधार है। एक प्रजाति मनुष्यों का एक समूह है जिसमें कुछ जन्मजात शारीरिक लक्षण सामान्य होते हैं। प्रजातियों के अंतर के आधार पर स्तरीकरण मानव भ्रम का एक उदाहरण है हालांकि इसने मानव समाज को नुकसान पहुंचाया है, फिर भी यह भ्रम किसी न किसी रूप में देखा जा सकता है। इस भ्रांति के अनुसार यह माना जाता है कि प्रजातियों में श्रेष्ठ प्रजातियाँ और निम्नतर प्रजातियाँ होती हैं और इसी के आधार पर प्रजाति स्तरीकरण भी प्रस्तुत किया जाता है।

सामाजिक-सांस्कृतिक आधार –

सामाजिक-सांस्कृतिक आधार पर भी हर समाज में ऊँच-नीच का स्तरीकरण किसी न किसी रूप में देखा जा सकता है।

आर्थिक आधार –

आर्थिक आधार के अन्तर्गत सम्पत्ति को प्रमुख स्थान दिया जाता है। आधुनिक पूंजीवादी समाजों में इसका महत्व काफी बढ़ गया है। पूंजीवादी और औद्योगिक समाजों में आयु, लिंग आदि का स्तरीकरण के आधारों से कोई विशेष संबंध नहीं होता। आर्थिक समृद्धि के आधार पर लोगों को उच्च, मध्यम और निम्न वर्गों में बांटा गया है।

कार्ल मार्क्स जैसे विद्वान कहते हैं कि प्राचीन काल से ही आर्थिक आधार पर स्तरीकरण देखा जा सकता है। समाज में शुरू से ही दो वर्ग रहे हैं। एक वह वर्ग है जिसका संपत्ति, पूंजी या उत्पादन के साधनों पर अधिकार है और दूसरा वह वर्ग है जो सर्वहारा वर्ग है, यानी जिसके पास संपत्ति, पूंजी या उत्पादन के साधन नहीं हैं, यानी जो केवल अपना श्रम बेचता है।

संपत्ति पर अधिकार होने के कारण समाज में प्रथम वर्ग की स्थिति ऊँची है जबकि द्वितीय वर्ग की स्थिति नीची है, इसलिए उसे उच्च वर्ग के आर्थिक शोषण का शिकार बनना पड़ता है।

राजनीतिक आधार –

आदिम समाजों की राजनीतिक संरचना और संगठन बहुत सरल थे। इसीलिए राजनीतिक स्तरीकरण भी बहुत ही संक्षिप्त और सरल रूप में देखा जाता था, जैसे कि वंशानुगत राजा और मुखिया। सभ्यता के विकास और समाज के आकार और प्रकार में विस्तार के साथ जैसे-जैसे राजनीतिक संरचना और संगठन में जटिलता बढ़ती गई, वैसे-वैसे राजनीतिक स्तरीकरण भी बढ़ता गया।

वर्तमान प्रकार की सरकार या शासन प्रणाली, जैसे लोकतंत्र, तानाशाही आदि के अनुसार, राजनीतिक क्षेत्र में स्थितियों का स्तरीकरण होता है। यह राजनीतिक स्तरीकरण भी स्थायी नहीं है, परन्तु इस स्तरीकरण का प्रकार और स्वरूप भी राजनीतिक परिस्थितियों के परिवर्तन के साथ बदलता रहता है।

व्यावसायिक आधार –

समाजशास्त्री सोरोकिन ने व्यावसायिक स्तरीकरण को दो मुख्य आधारों में विभाजित किया है:-

  • अंतर्ग्यावसायिक स्तरीकरण,
  • अंतः व्यावसायिक स्तरीकरण।

प्रथम प्रकार के व्यावसायिक स्तरीकरण को विभिन्न व्यवसायों के उच्च या निम्न के आधार पर समझा जा सकता है। उदाहरण के लिए, उनके समाज में एक डॉक्टर के पेशे का स्तर एक क्लर्क के पेशे के स्तर से अधिक माना जाता है। दूसरे प्रकार का व्यावसायिक स्तरीकरण अंतर-व्यावसायिक स्तरीकरण है जिसमें एक ही प्रकार के व्यवसाय में विभिन्न स्तरों के लोग होते हैं। एक ही प्रकार का पेशा करने वाले सभी व्यक्ति एक ही स्थिति में नहीं होते, अपितु उनमें आपस में ऊँच-नीच का संस्तरण   भी होता है।

धार्मिक आधार –

धार्मिक आधार सामाजिक स्तरीकरण का एक महत्वपूर्ण आधार है। धार्मिक संगठनों के भीतर भी स्तरीकरण है। लगभग सभी धर्मों में थोड़ा स्तरीकरण है, हिंदू धर्म में शंकराचार्य है, जैन धर्म में तीर्थंकर हैं, ईसाई धर्म में पोप स्थित है, लेकिन कोई भी धर्म किसी अन्य धर्म से न तो ऊंचा है और न ही नीचा है। धर्म सब समान हैं। इसलिए धर्मों की तुलना नहीं की जाती है।

सामाजिक स्तरीकरण के मूल तत्व :-

सामाजिक स्तरीकरण के मूल तत्व इस प्रकार हैं:-

सामाजिक विभेदीकरण –

सामाजिक स्तरीकरण एक अधिक प्राचीन और स्वाभाविक रूप से होने वाली प्रक्रिया है, यह अल्पकालिक है। इसमें हीनता की भावना नहीं आती, जब समाज में भेद होता है तो सभी सामाजिक स्तरों का विकास होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि सामाजिक विभेदीकरण ही सामाजिक स्तरीकरण का निर्माण करता है। समूहों का स्थायी होना आवश्यक नहीं है। यह लंबवत विभाजन है, यह स्तरीकरण का मूल कारण है।

उच्चता और अधीनता की व्यवस्था –

सामाजिक स्तरीकरण के माध्यम से विकास के विभिन्न स्तर होते हैं, जिनमें कुछ लोग उच्च पदों पर आसीन होते हैं और कुछ निम्न होते हैं, जिससे समाज की सामाजिक व्यवस्था बनी रहती है। श्रेष्ठता और अधीनता की सामाजिक मान्यता समाज में उच्चता और अधीनता द्वारा सामाजिक स्तरीकरण तभी रहता है जब इसे समाज द्वारा स्वीकार किया जाता है।

सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार :-

बॉटमोर ने मानव इतिहास में प्रचलित सामाजिक स्तरीकरण के चार प्रमुख प्रकार का उल्लेख किया है:-

जाति व्यवस्था –

जाति व्यवस्था भी सामाजिक स्तरीकरण का एक महत्वपूर्ण रूप है। जाति शब्द का उल्लेख होते ही हमारा ध्यान भारतीय जाति व्यवस्था की ओर जाता है, इसलिए नहीं कि यह केवल भारत में मौजूद है, बल्कि इसलिए कि यह भारत में जाति व्यवस्था की पराकाष्ठा है। जाति भारतीय सामाजिक व्यवस्था में पाई जाने वाली संस्तरण का एक अनूठा रूप है।

इस प्रकार, जाति जन्म पर आधारित सामाजिक स्तरीकरण की एक गतिशील प्रणाली है जो अपने सदस्यों पर विवाह, भोजन, व्यवसाय और सामाजिक सहवास के संबंध में प्रतिबंध लगाती है।

वर्ग व्यवस्था –

वर्ग भी सामाजिक स्तरीकरण का एक सार्वभौमिक रूप है। दुनिया में ऐसा कोई समाज नहीं है जहां वर्ग न हो। वर्ग स्तरीकरण आज के समाज में प्रमुख रूप बन गया है। मार्क्स व्यक्ति को सामाजिक प्राणी की अपेक्षा वर्गीय प्राणी कहना अधिक उचित समझते हैं।

वर्ग भी समाज में अनादि काल से प्रचलित रहा है। आयु, लिंग, शिक्षा, आय आदि के आधार पर वर्गों का निर्माण किया गया है। वर्ग की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसके निर्माण का आधार जन्म नहीं अपितु अन्य आधार है।

दास-प्रथा –

मानव इतिहास में दास-प्रथा भी एक महत्वपूर्ण सामाजिक व्यवस्था रही है। यह असमानता के चरम रूप का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें व्यक्तियों के कुछ समूह अधिकारों से पूरी तरह वंचित हैं।

एल.टी. हॉबहाउस ने कहा है कि “गुलाम वह व्यक्ति होता है जिसे कानून और परंपरा दोनों ही दूसरे की संपत्ति मानते हैं।” कुछ स्थितियों में यह पूरी तरह से शक्तिहीन होता है और कुछ मामलों में इसे बैल या गधे की तरह ही सुरक्षित रखा जाता है।

इस प्रकार दास-प्रथा असमानता की एक अकल्पनीय स्थिति है। हालाँकि इतिहास में समय-समय पर गुलामी के उदाहरण मिलते रहे हैं, लेकिन यह अधिक प्रचलित था, खासकर ग्रीक और रोमन साम्राज्यों में। आधुनिक युग में मानवाधिकार एवं लोकतान्त्रिक विचारधारा के कारण संस्तरण का यह रूप देखने को नहीं मिलता है। यह समूह भेद का आदिम स्तर है।

जागीर व्यवस्था –

मध्य युग में जागीरों की प्रथा थी। ये जागीर प्रथा और कानून द्वारा मान्य थे। तीन वर्ग थे – पादरी, सरदार और आम जनता। हर वर्ग की जीवनशैली और संस्कृति अलग थी। सामाजिक एकरूपता में पादरी वर्ग का सर्वोच्च स्थान था, क्योंकि उस समय राज्य भी चर्च के अधीन था।

सामाजिक स्तरीकरण का महत्व :-

सामाजिक स्तरीकरण के कार्यों और महत्व का उल्लेख निम्नलिखित शीर्षकों में किया जा सकता है: –

सामाजिक स्तरीकरण का वैयक्तिक महत्व –

सामाजिक महत्व –

  • सामजिक एकीकरण
  • सामाजिक संकलन
  • सामाजिक संगठन
  • सामाजिक संघर्ष से सुरक्षा
  • श्रम विभाजन

मनोवैज्ञानिक महत्व –

FAQ

सामाजिक स्तरीकरण की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए?

सामाजिक स्तरीकरण के कितने प्रकार है?

सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधार बताइए?

सामाजिक स्तरीकरण किसे कहते हैं?

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Hi, I Am Social Worker इस ब्लॉग का उद्देश्य छात्रों को सरल शब्दों में और आसानी से अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराना है।

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