नगरीय समाज की अवधारणा :-
नगरीय समाज की आधुनिकता ने पूरे सामाजिक परिदृश्य को बदल दिया है। शहर विकास का केंद्र है। यहां के लोगों को शिक्षा, व्यवसाय, तकनीकी, मनोरंजन, चिकित्सा सभी सुविधाएं आसानी से उपलब्ध हैं। नगर नियोजन के माध्यम से नगर के विकास के लिए कई कार्य किये जाते हैं। नगरीय समुदाय शहर की विशेषताओं से जाने जाते हैं। नगरीय जीवन एक पद्धति है। शहरी समुदाय ग्रामीण समुदाय की तुलना में अधिक सघन है।
शहर में सामूहिक जीवन की अपेक्षा व्यक्तिगत जीवन के मूल्यों को अधिक मान्यता दी गयी है। शहरी समाज का व्यक्ति पारंपरिक ढांचे से अलग रहकर अपना जीवन व्यतीत करता है। नगरीय समाज भीड़भाड़ वाला है जहां भावनाओं की कोई कद्र नहीं है। स्वार्थ की पूर्ति के लिए लोग रिश्तों को महत्व देते हैं।
शहरी समाज औपचारिक है। स्वार्थ और औपचारिकता में डूबे शहरी रिश्ते कभी घनिष्ठ और स्थिर नहीं होते। जबकि शहर का पर्यावरण अनेक कठिनाइयों एवं समस्याओं से जुड़ा हुआ है, उन समस्याओं के समाधान हेतु कानूनी एवं संवैधानिक प्रावधान भी उपलब्ध हैं। सुरक्षा के लिए पुलिस, कोर्ट, कचहरियाँ भी उपलब्ध हैं।
नगरीय समाज का अर्थ :-
नगरीय समाज ग्रामीण समुदाय की तरह ही छोटे समुदायों से बना है। नगरीय समाज के अंतर्गत हम विभिन्न शहरी समुदायों का निर्माण करते हैं तथा संगठनों का निर्माण करते हैं जिनके माध्यम से शहरी समाज के विभिन्न कार्यों को पूर्ण रूप दिया जाता है जो शहरी समाज के विकास के लिए आवश्यक है।
शहरी समाज के लोगों में प्राथमिकता कम लेकिन गौण रिश्ते होते हैं जो विभिन्न औपचारिकताओं को पूरा करते हैं। शहरी समाज में मानव व्यक्तित्व का विकास तेजी से आधुनिकता की ओर होता है। यह शहर मुख्यतः विकास एवं प्रगति का केन्द्र है। यहां विभिन्न प्रकार के शोध एवं अनुसंधान द्वारा विकासात्मक कार्य किये जाते हैं, जिसका लाभ समाज एवं व्यक्तित्व दोनों को मिलता है। नगरीय समाज की सुख-सुविधाओं के कारण मानव जीवन भी सुव्यवस्थित एवं प्रगतिशील बनता है।
नगरीय समाज की परिभाषा :-
नगरीय समाज को और भी स्पष्ट करने के लिए कुछ प्रमुख विद्वानों की परिभाषाओं का उल्लेख कर सकते हैं :–
“नगरीय समाज और नगरवाद को एक विशेष प्रकार की जीवन पद्धति कहते है। शहरी समाज का बड़ा रूप शहरीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाकर आधुनिकता को प्रोत्साहित करता है।”
लुईस बथ्
“नगरीय समाज को मात्र नगर तक ही सीमित न रखकर कस्बों को भी शामिल किया है, जहां शहरीकरण की प्रक्रिया को जीवन के तरीके के रूप में विकसित होते देखा जा सकता है। नगरीय समाज समाज में, लोगों के बीच पारस्परिक संबंधों का पैटर्न भी द्वितीयक होता है। नगरीय समाज के लोगों में व्यक्तित्व प्रखरता अधिक पायी जाती है।”
एंडरसन
नगरीय समाज की विशेषता :-
शहरी समाज के भीतर सामाजिक विविधता की भावना है। गाँव में सांस्कृतिक एकता की भावना होती है तो शहरों में कई संस्कृतियों और प्रजातियों के लोग पाए जाते हैं।
यदि गाँव प्राचीन संस्कृति को कायम रखते हैं, तो शहर अनेक संस्कृतियों की संस्थाओं, विचारों, आदर्शों आदि से मिलकर संस्कृति का विकास करते हैं और उनमें परिवर्तन उत्पन्न होता है। शहर के समाज में व्यवसायों, जातियों और विचारधाराओं के सैकड़ों लोग रहते हैं।
- शहरी औद्योगिक समाज की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसकी सामाजिक गतिशीलता है। किसी शहर में किसी व्यक्ति की सामाजिक स्थिति उसके जन्म से नहीं बल्कि उसके कर्मों और आर्थिक स्थिति से निर्धारित होती है। हर व्यक्ति अपनी मेहनत, बुद्धि और ताकत के दम पर समाज में सर्वोच्च स्थान हासिल कर सकता है। वहां कोई जाति बंधन नहीं है। अन्तर्जातीय विवाहों की प्रधानता है। नारी शिक्षा सर्वोपरि है। विकास की सभी स्थल खुली हैं।
- द्वितीयक नियंत्रण की प्रक्रिया शहरी समाज में पाई जाती है। शहरों में अनेक गौण समूह होते हैं। इसलिए, शहरी समाज को सुव्यवस्थित करने में द्वितीयक नियंत्रण प्रबल होता है। परिवार, जाति, बिरादरी का कोई डर नहीं है। कानून, जेल और पुलिस का डर लोगों के व्यवहार को नियंत्रित करता है।
- शहर में गांवों की तरह सांप्रदायिक भावना नहीं है, लोक-निंदा का डर नहीं है और मोहल्ले की परवाह नहीं है, सब अपने-अपने काम में व्यस्त हैं, किसी के पास किसी के लिए समय नहीं है।
- व्यवसाय, वर्ग, धर्म, संस्कृति आदि की इतनी विविधता के कारण, शहर में अधिक स्वैच्छिक समितियाँ हैं। स्वैच्छिक प्रवृत्तियाँ परिवार जैसे प्राथमिक समूहों में भी पाई जाती हैं।
- पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के कारण सामुदायिक भावना एवं पारिवारिक एकता का अभाव तथा विलासिता का वातावरण शहरी समाज में चरित्र एवं नैतिकता में शिथिलता दर्शाता है। शहर की भागदौड़ में समाज या परिवार का कोई नियंत्रण नहीं रह गया है।
- शहरी समाज में अपराधों की बहुलता है। वहां के समाज में चोरी, खून, व्यभिचार, भ्रूणहत्या, भ्रष्टाचार, बाल अपराध, वेश्यावृत्ति, जालसाजी, डकैती, हत्या आदि विभिन्न प्रकार के अपराध पनपते हैं।
नगरीय समाज की समस्याएं :-
- शहरी समाज में पड़ोस के पारस्परिक महत्व का अभाव है।
- प्राथमिक समूह विघटित हो रहे हैं और द्वितीयक संबंध बढ़ रहे हैं।
- शहरी समाज में विशेषीकरण के दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं।
- शहरीकरण शहरी समाज में एक विषम आर्थिक व्यवस्था को जन्म दे रहा है।
- शहरी जनसंख्या में वृद्धि के परिणामस्वरूप गरीबी, बेकारी आदि समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।
- शहरी समाज की भौतिकवादी प्रवृत्ति उत्साहवर्धक है तथा अभौतिक संस्कृति विलुप्त होती जा रही है।
- पारिवारिक स्वरूपों बदल रहे हैं। अखंड पारिवारिक प्रचलन एवं पारिवारिक विघटन की समस्या उत्पन्न हो रही है।
- व्यक्तिवाद की भावना को बढ़ावा दिया जा रहा है। अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए दूसरे को नुकसान पहुंचाया जा रहा है।
- शहरी समाज के परिदृश्य को देखकर कहा जा सकता है कि धर्म का प्रभाव कम हो रहा है और नास्तिकता का प्रचलन बढ़ रहा है।
- नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है और अनुशासनहीनता बढ़ रही है। शहरी समाज प्रतिस्पर्धी प्रथाओं को बढ़ावा दे रहा है।
- कृषि के मशीनीकरण के कारण वे किसान, मजदूर बेरोजगारी का शिकार हो रहे हैं जो यंत्रीकृत खेती के तौर-तरीके नहीं जानते।
- शहरी समाज में आवास की समस्या उत्पन्न हो रही है, जिससे मलिन बस्तियों, गंदी बस्तियों आदि की संख्या बढ़ रही है।
- शहरी समाज में व्यावसायिक विविधता के संदर्भ में कई समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं, जिससे रोजगार के अवसर तो बढ़ रहे हैं लेकिन बेरोजगारी भी बढ़ रही है।
- शहरी समाज में औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप विभिन्न भाषाओं, धर्मों, संप्रदायों आदि के लोगों के एक ही स्थान पर एकत्रित होने से लोकतंत्र का महत्व कम होता जा रहा है।
- नगरीय समाज में औद्योगीकरण एवं तकनीकी विकास का सामाजिक एवं व्यक्तिगत जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, जिससे समाज में अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।
- शहरी समाज में मशीनीकरण के प्रचलन से बेरोजगारी, बेकारी, एकाधिकार में वृद्धि, औद्योगिक अशांति तथा दुर्घटनाओं की संख्या में वृद्धि तथा असंतुलित विकास हो रहा है।
संक्षिप्त विवरण :-
नगरीय समाज आधुनिकता का जीवंत रूप है जो व्यक्ति और समाज में नवीनीकरण और आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को उजागर करता है। शहरी समाज सामान्यतः कृत्रिम होता है, जहाँ कृत्रिमता अधिकतर देखने को मिलती है। शहरी समाज में व्यक्तियों के बीच अधिक औपचारिक रिश्ते होते हैं जो स्वार्थी होते हैं।
शहरी समाज में हर कोई व्यक्तिगत विकास और स्वार्थी लाभ के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता है। शहरी समाज की व्यवस्था तकनीकी, समृद्ध, आधुनिक, संचार एवं परिवहन सुविधाओं के साथ-साथ गौण संबंधों पर आधारित देखी जाती है। नगरीय समाज में गाँवों की तुलना में अधिक जनसंख्या देखने को मिलती है। सामाजिक संरचना कृत्रिम है और इसमें स्थिरता नहीं है। औद्योगीकरण एक विकासशील एवं सभी सुविधाओं से परिपूर्ण शहरी समाज है।
शहरी समाज की कई समस्याएँ देखने को मिलती हैं, जैसे बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, यौन अपराध, वेश्यावृत्ति, गरीबी, पर्यावरण प्रदूषण, मिलावट, अलगाववाद, लैंगिक असमानता, जनसंख्या वृद्धि, अनैतिकता, परिवार विघटन, सामाजिक जीवन की शिथिलता आदि।