प्रस्तावना :-
परिकल्पना के माध्यम से किसी विषय या समस्या के बारे में पूर्वानुमान लगाया जाता है और अध्ययन की योजना बनाई जाती है। सामाजिक अनुसंधान में परिकल्पना का विशेष महत्व है। परिकल्पना को कभी-कभी प्राक्कल्पना, उपकल्पना, पूर्व कल्पना आदि भी कहा जाता है।
परिकल्पना का अर्थ :-
‘परिकल्पना’ शब्द दो शब्दों परि + कल्पना से मिलकर बना है। ‘परि’ का अर्थ है चारों ओर और ‘कल्पना’ का अर्थ है सामान्य अनुमान।
शोधकर्ता अध्ययन कार्य प्रारंभ करने से पहले विषय के विभिन्न पहलुओं से संबंधित कुछ सामान्य धारणाएँ बनाता है, इस प्रकार परिकल्पना किसी भी अध्ययन को एक निश्चित दिशा देने में सहायक होती है।
किसी भी अनुसंधान या सर्वेक्षण समस्या का चयन करने के बाद, शोधकर्ता समस्या के बारे में कारण संबंध की भविष्यवाणी करता है या शोध से पहले चिंतन कर लेता है। इस पूर्व चिंतन या पूर्वानुमान को प्राक्कल्पना, परिकल्पना या “उपकल्पना’ कहा जाता है।
परिकल्पना किसी विषय से संबंधित प्रारंभिक अनुमान है जिसके संदर्भ में संपूर्ण शोध किया जाता है और शोधकर्ता शोध के दौरान इसकी वैधता की जांच करता है। परिकल्पना शोध के पथ की दिशा बताती है, शोधार्थी को अध्ययन के बीच में भटकने नहीं देती। यह परिकल्पना सत्य और असत्य दोनों हो सकती है और अंततः अध्ययन के निष्कर्षों को प्रस्तुत करने और पिछले निष्कर्षों की जांच करने में मदद करती है।
परिकल्पना की परिभाषा :-
परिकल्पना या उपकल्पना को स्पष्ट करने के लिए कुछ प्रमुख विद्वानों की परिभाषाओं का उल्लेख कर सकते हैं –
“एक अस्थायी लेकिन केंद्रीय महत्व का एक विचार जो उपयोगी शोध का आधार बन जाता है उसे हम कार्यशील परिकल्पना कहते हैं।”
पी. बी. यंग
“एक परिकल्पना दो या दो से अधिक परिवर्त्यों के बीच संबंध प्रदर्शित करने वाला एक अनुमानात्मक कथन है।”
एफ.एन. कलिंगर
“उपकल्पना एक ऐसी मान्यता है जिसकी सत्यता साबित करने के लिए उसकी परीक्षण किया जा सकता है।”
गुडे तथा हाट
“परिकल्पना परीक्षण के लिए प्रस्तुत की गई एक मान्यता है।”
बोगार्डस
“उपकल्पना दो या दो से अधिक चर राशियों अथवा चरों के कार्यक्षम संबंध का कथन है।”
मैकगुईगम
“परिकल्पना एक अस्थायी रूप से माना जाने वाला सत्य कथन है, जिसका आधार उस समय तक विषय या घटना के बारे में ज्ञान होता है और इसे नए सत्य की खोज का आधार बनाया जाता है।”
बार तथा स्टेटस
परिकल्पना के स्रोत :-
सामान्यतः सामाजिक विज्ञानों में परिकल्पनाओं के दो प्रमुख स्रोतों का उल्लेख किया गया है –
- वैयक्तिक स्रोत
- वाह्य स्रोत
वैयक्तिक स्रोत –
वैयक्तिक स्रोत में शोधकर्ता की अपनी प्रतिभा और ज्ञान शामिल होता है। वह आमतौर पर अपनी प्रतिभा और अनुभवों के आधार पर परिकल्पनाएँ बना सकता है।
बाह्य स्त्रोत –
बाह्य स्रोतों में साहित्य, कथा, कहानियाँ, कविता, नाटक, उपन्यास, सिद्धांत, विचार, सुनी हुई बातें, नाटक प्रतिवेदन आदि शामिल हैं। जो परिकल्पना का स्रोत है।
लुंडबर्ग के अनुसार परिकल्पना के स्रोत इस प्रकार हैं:-
- दर्शन
- साहित्य
- मानव जाति शास्त्र
- समाज शास्त्र के विस्तृत वर्णानात्मक साहित्य
- कलाकारों के काल्पनिक सिद्धान्त
गुड और हाट के अनुसार, परिकल्पना के स्रोत इस प्रकार हैं:
- सामान्य संस्कृति
- समरुपता
- वैज्ञानिक सिद्धान्त
- व्यक्तिगत अनुभव
- सूझ
- रचनात्मक दृष्टिकोण
- उपकल्पनाओं की व्याख्याएं
- उस क्षेत्र में हुए अनुसंधान
परिकल्पना की विशेषताएं :-
परिकल्पनाओं में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं:-
- परिकल्पना को मूल विचारों का स्पष्ट रूप से विश्लेषण करना चाहिए, और सामान्य स्वीकृति के आधार पर किया जाना चाहिए ताकि वे प्रभावी संचार के योग्य हों।
- शोधकर्ता को बिना किसी पूर्वाग्रह के अनुभवजन्य अनुभव का उपभोग करते हुए परिकल्पना का चयन करना चाहिए। अनुभवजन्य परिकल्पना का स्पष्ट एवं सीमित अर्थ होता है।
- सामान्य परिकल्पना को वैज्ञानिक आधार पर परखना कठिन है, इसलिए परिकल्पना विशिष्ट होनी चाहिए। इससे शोध में इसकी व्यावहारिकता एवं उपयोगिता स्पष्ट हो जाती है।
- एक अच्छी परिकल्पना का निर्माण इस प्रकार किया जाता है कि वह उपलब्ध विधियों के अनुकूल हो।
- परिकल्पना की एक शक्तिशाली और उपयुक्त सैद्धांतिक पृष्ठभूमि है।
- उपकल्पना में विरोधी विचारधाराएँ नहीं पाई जातीं।
गुडे तथा हाट ने परिकल्पना में निम्न विशेषताओं विवेचना की है –
स्पष्टता –
परिकल्पनाओं का वैचारिक रूप से स्पष्ट होना अनिवार्य है। परिकल्पना की स्पष्टता के लिए दो बिंदुओं का होना आवश्यक है, पहला, परिकल्पना में निहित अवधारणाएँ स्पष्ट होनी चाहिए तथा दूसरा, परिभाषाएँ सरल भाषा में होनी चाहिए।
अनुभवाश्रित सन्दर्भ –
उपकल्पना की अनुभवजन्य प्रामाणिकता होना बहुत जरूरी है। परिकल्पना बनाते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि सत्य की परख परिकल्पना से हो सकती है, आदर्श से नहीं। जिसकी सत्यता को वास्तविक प्रयोगों या वास्तविक तथ्यों के आधार पर परखा जा सकता है।
विशिष्टता –
यदि उपकल्पना अत्यंत सामान्य है तो उससे किसी वास्तविक निष्कर्ष पर पहुंचना संभव नहीं है। परिकल्पना विशिष्ट होनी चाहिए न कि सामान्य अर्थात परिकल्पना हमेशा अध्ययन समस्या के किसी विशिष्ट पहलू से संबंधित होनी चाहिए। इस प्रकार शोधकर्ता विषय पर अपना ध्यान केन्द्रित कर वास्तविक जानकारी प्राप्त कर सकता है।
उपलब्ध प्रविधियों से सम्बन्ध –
उपकल्पना का निर्माण यह ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए कि उसकी सत्यता की जाँच उपलब्ध तरीकों से की जाए। इसका मतलब यह है कि परिकल्पना आवश्यक और उपलब्ध तरीकों के अनुरूप होनी चाहिए, ताकि उपलब्ध तरीकों का परीक्षण किया जा सके।
सिद्धांत समूह से सम्बंधित –
किसी भी उपकल्पना को तैयार करने से पहले उससे संबंधित साहित्य और ज्ञान को समझना जरूरी है। यदि सिद्धांत परिकल्पना से संबंधित नहीं है तो उसकी सत्यता की जाँच नहीं की जा सकती। क्योंकि पूर्व सिद्धांतों के आधार पर बनाई गई परिकल्पना अधिक क्रमबद्ध होती है।
प्रमाणीकरण –
परिकल्पना का उद्देश्य सही निष्कर्ष निकालना है। सही निष्कर्ष तभी प्राप्त होगा जब हम परिकल्पना का परीक्षण, अवलोकन, अवलोकन कर सकेंगे। इन परीक्षणों से ही परिकल्पना सिद्ध होती है।
परिकल्पना के प्रकार :-
कई विद्वानों ने अपनी-अपनी राय के अनुसार परिकल्पनाओं का वर्गीकरण किया है:
हेज़ ने 2 प्रकार की परिकल्पनाएँ दी हैं –
- सरल परिकल्पना
- मिश्रित परिकल्पना
सरल परिकल्पना –
इस प्रकार की परिकल्पना में एक सामान्य परिकल्पना शामिल होती है और किन्हीं दो चरों के बीच सहसंबंध ज्ञात करते है।
मिश्रित परिकल्पना –
मिश्रित परिकल्पना से तात्पर्य उस परिकल्पना से है जिसमें एक से अधिक चर होते हैं और उनके बीच संबंध खोजने के लिए उच्च सांख्यिकीय प्रविधियों का उपयोग किया जाता है।
मैकगुडगन ने २ प्रकार की परिकल्पनाएँ बताई हैं –
- सार्वभौमिक परिकल्पनाएँ
- अस्तित्ववादी परिकल्पनाएँ
सार्वभौमिक परिकल्पनाएँ –
इसमें वे परिकल्पनाएँ शामिल हैं जो हर समय और सभी स्थानों पर अध्ययन किए जाने वाले सभी चर से संबंधित हैं।
अस्तित्ववादी परिकल्पनाएँ –
यह एक परिकल्पना है जो कम से कम एक मामले में चर के अस्तित्व को निर्धारित कर सकती है।
गूड एवं हैट ने तीन प्रकार की परिकल्पनाओं का उल्लेख किया है –
- आनुभविक एकरूपताओं सम्बन्धी परिकल्पना
- आदर्श प्रारूपों सम्बन्धी परिकल्पना
- विश्लेषणात्मक चरों सम्बन्धी परिकल्पना
आनुभविक एकरूपताओं सम्बन्धी परिकल्पना –
इस श्रेणी की परिकल्पनाएँ समाज एवं संस्कृति तथा व्यक्ति के सामान्य जीवन में प्रचलित अनेक विचारों, विश्वासों, मान्यताओं, कहावतों, मुहावरों, लोककथाओं पर आधारित होती हैं, जिन्हें उससे संबंधित सभी लोग सत्य जानते एवं मानते हैं। सामाजिक शोधकर्ता अवलोकनों, अनुभवजन्य तथ्यों और आंकड़ों को एकत्र करके परिकल्पनाएँ बनाते हैं और उनकी जाँच करके उन्हें निष्कर्ष के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
आदर्श प्रारूपों सम्बन्धी परिकल्पना –
इस श्रेणी की कुछ परिकल्पनाएँ जटिल आदर्श प्रारूपों से संबंधित हैं। इन परिकल्पनाओं का उद्देश्य अनुभवजन्य समरूपता के बीच तार्किक संबंधों की जांच करना है। इससे जटिल क्षेत्रों में अनुसंधान करने में मदद मिलती है। आदर्श प्रारूप से संबंधित परिकल्पनाओं की जांच तथ्यों को एकत्रित करके की जाती है और फिर बाद में निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
विश्लेषणात्मक चर सम्बन्धी परिकल्पना –
चरों के तार्किक विश्लेषण के अलावा, इस प्रकार की परिकल्पनाएँ विभिन्न चरों के गुणों का भी विश्लेषण करती हैं। अनेक चर एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। इन परिकल्पनाओं का उद्देश्य इन प्रभावों का तार्किक आधार खोजना है। इन परिकल्पनाओं का प्रयोग विशेष रूप से प्रायोगिक अनुसंधान में किया जाता है।
संक्षिप्त विवरण :-
किसी भी शोध एवं अध्ययन के लिए परिकल्पना आवश्यक है, परिकल्पना के बिना सामाजिक शोध विषयों की रूपरेखा नहीं बनाई जा सकती। परिकल्पना के माध्यम से किसी भी विषय या समस्या के बारे में पूर्वानुमान लगाया जाता है, परिकल्पना के माध्यम से किसी भी विषय की कार्ययोजना तैयार की जाती है।
उपकल्पनाओं के विवरण के आधार पर निष्कर्ष –
- सफल शोध के लिए परिकल्पना एक आवश्यक शर्त है।
- एक अच्छे शोध में परिकल्पनाओं का निर्माण केंद्रीय कदम है।
- यह एक निश्चित लक्ष्य की ओर निर्देशित करता है।
- यह शोध का प्रारंभिक स्तर है।
- हम अध्ययन की आवश्यकता के अनुसार भावना के विभिन्न स्तरों पर परिकल्पनाएँ बना सकते हैं।
FAQ
परिकल्पना का क्या अर्थ है ?
परिकल्पना किसी विषय से सम्बन्धित प्रारम्भिक अनुमान है जिसके सन्दर्भ में सम्पूर्ण अनुसंधान किया जाता है एवं शोधकर्ता अनुसंधान के दौरान उसकी वैधता की परीक्षा करता है ।
परिकल्पना का स्रोत क्या है ?
सामान्यतः, सामाजिक विज्ञानों में परिकल्पनाओं के दो प्रमुख स्त्रोतों का उल्लेख किया गया है – १ वैयक्तिक स्रोत, २ वाह्य स्रोत
परिकल्पना के प्रकार क्या है ?
हेज ने २ प्रकार की परिकल्पनाएँ बताई है – १ सरल परिकल्पना, २ मिश्रित परिकल्पना
परिकल्पना की विशेषताएं क्या है ?
गुडे तथा हाट ने परिकल्पना में निम्न विशेषताओं विवेचना की है – १ स्पष्टता २ अनुभवश्रित सन्दर्भ ३ विशिष्टता ४ उपलब्ध प्रविधियों से सम्बन्ध ५ सिद्धान्त समूह से सम्बन्धित