ग्रामीण समाजशास्त्र की परिभाषा, विशेषताएं, क्षेत्र

ग्रामीण समाजशास्त्र की अवधारणा :-

गाँव मनुष्य के सामूहिक जीवन का पहला पालना है। जब मानव ने सर्वप्रथम सामूहिक रूप से रहना प्रारंभ किया, तो गाँव ही उनका आवास बना रहा। प्रारम्भ से ही विश्व की अधिकांश जनसंख्या गाँवों में बसी है। समाज के अध्ययन की सुविधा के लिए समय-समय पर कई शाखाओं और उप-शाखाओं की स्थापना की गई। इस क्रम में, ग्रामीण समाजों के समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण का एक विशिष्ट, गहन और संक्षिप्त तरीके से अध्ययन करने के लिए ग्रामीण समाजशास्त्र विषय की स्थापना की गई थी।

ग्रामीण समाजशास्त्र का मुख्य उद्देश्य समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से ग्रामीण समाजों का अध्ययन करना और उनमें सामाजिक व्यवस्था, सामाजिक संरचना, कार्यों और परिवर्तनों का अध्ययन करना और उनसे संबंधित सामाजिक सिद्धांतों का निर्माण करना है।

ग्रामीण समाजशास्त्र की उत्पत्ति :-

ग्रामीण समाज से पूर्व की अवस्था वाले समाज आदिम समाजों, जन जातीय समाजों, खेतक समाजों, मछली पालन समाजों, , खानाबदोश, पशुपालकों और कई अन्य प्रकार के समाजों में देखा जा सकता है। इन समाजों का अध्ययन सामाजिक मानवशास्त्र द्वारा किया जाता है।

जब मनुष्य कृषि करने लगे, स्थायी रूप से एक स्थान पर रहने लगे, तब गाँवों का विकास हुआ। विभिन्न मानव समाजों के क्रम में आदिम समाज, ग्रामीण समाज, नगर समाज, नगरीय समाज, औद्योगिक समाज, महानगरीय समाज रहे हैं और इसी क्रम में समाजशास्त्र की अनेक शाखाएँ उत्पन्न एवं विकसित हुई हैं। गांवों का इतिहास प्राचीन है, लेकिन ग्रामीण समाजशास्त्र का इतिहास उन्नीसवीं शताब्दी से स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

19वीं शताब्दी की घटनाओं ने गाँवों में अनेक समस्याएँ पैदा कर दी थीं, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण समाजशास्त्र की स्थापना हुई। ये प्रमुख घटनाएँ हैं मशीनों द्वारा उत्पादन, पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का उदय, औद्योगीकरण और शहरीकरण की प्रक्रिया में तेजी, परिवहन और संचार के साधनों का तेजी से विकास और विस्तार आदि। जिससे अनेक विद्वानों का ध्यान ग्रामों के अध्ययन की ओर गए, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण समाजशास्त्र एक विषय के रूप में उभरा।

ग्रामीण समाजशास्त्र का अर्थ :-

शाब्दिक दृष्टि से “ग्रामीण समाजशास्त्र” दो शब्दों “ग्रामीण”(Rural)  और “समाजशास्त्र” (Sociology) से मिलकर बना है जिसका अर्थ है ग्रामीण समाजशास्त्र, समाज की वह शाखा। जो वैज्ञानिक रूप से ग्रामीण जीवन, ग्रामीण समूहों, ग्रामीण संबंधों और ग्रामीण जगत का अध्ययन करता है।

ग्रामीण समाजशास्त्र की परिभाषा :-

कई समाजशास्त्रियों ने ग्रामीण समाजशास्त्र को परिभाषित करने का प्रयास किया है जिसकी व्याख्या इस प्रकार की गई है:-

“ग्रामीण जीवन का समाज सत्र ग्रामीण आबादी, ग्रामीण सामाजिक संगठन और ग्रामीण समाज में कार्यरत सामाजिक प्रक्रियाओं का अध्ययन है।”

एफ0 स्टुअर्ट चैपिन

“ग्रामीण समाजशास्त्र ग्रामीण परिवेश में पाये जाने वाले जीवन का समाजशास्त्र है। इसकी उत्पत्ति एवं विकास को समझे बिना अधिकांशतः इस विषय पर ग्रामीण जीवन का सामान्य विवरण दिया जाता है।”

डेविड सैण्डरसन

“ग्रामीण सामाजिक संबंधों के व्यवस्थित ज्ञान को ग्रामीण जीवन का समाजशास्त्र कहना अधिक उपयुक्त होगा।”

टी. लिन. स्मिथ

“ग्रामीण समाजशास्त्र की विषय-सामग्री विभिन्न प्रकार के समूह जैसे वे ग्रामीण पर्यावरण में पाये जाते है, का विवेचन और विश्लेषण है।”

लोरी नेलसन

“ग्रामीण समाजशास्त्र ग्रामीण परिवेश में निहित जीवन का समाजशास्त्र है।”

डी0 सेण्डरसन

ग्रामीण समाजशास्त्र की विशेषताएं :-

ग्रामीण समाजशास्त्र की विशेषताएं को निम्न बिंदुओं से समझा जा सकता है –

  • ग्रामीण समाजशास्त्र, समाजशास्त्र की एक शाखा है।
  • ग्रामीण समाजशास्त्र ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोगों का अध्ययन करता है।
  • एक तरह से, ग्रामीण समाजशास्त्र गाँव में रहने वाले लोगों के सामाजिक जीवन के सभी पहलुओं के अध्ययन से संबंधित है।
  • ग्रामीण समाजशास्त्र का मुख्य संबंध ग्रामीण सामाजिक संगठन, इसकी संरचना, कार्यों, सामाजिक मानदंडों और प्रक्रियाओं से है।
  • ग्रामीण समाजशास्त्र, समाजशास्त्र की तुलना में अधिक व्यावहारिक है क्योंकि यह ग्रामीण समुदायों के व्यावहारिक जीवन से संबंधित है, इस प्रकार ग्रामीण समाजशास्त्र मूल रूप से ग्रामीण सामाजिक जीवन, प्रतिमानों, प्रक्रियाओं और व्यवहारों का अध्ययन है।

ग्रामीण समाजशास्त्र का क्षेत्र :-

ग्रामीण समाजशास्त्र के क्षेत्र में स्मिथ और नेल्सन ने क्रमानुसार निम्नलिखित विचार व्यक्त किए हैं:

टी0एएल0 स्मिथ विचार-

‘The Sociology of Rural Life’ में स्मिथ ने ग्रामीण समाजशास्त्र के अध्ययन के क्षेत्र को तीन भागों में वर्गीकृत करके समझाया है:-

जनसंख्या –

ग्रामीण जीवन को समझने के लिए ग्रामीण जनसंख्या के अध्ययन को महत्व देना चाहिए क्योंकि ग्रामीण समाज एवं ग्रामीण जीवन ग्रामीण जनसंख्या की विशेषताओं के ज्ञान पर आधारित है। अतः ग्रामीण जनसंख्या के वितरण का अध्ययन घनत्व, वृद्धि, शारीरिक एवं मानसिक अक्षमताओं, जनसंख्या के आगमन एवं समावेश आदि पर किया जाना चाहिए।

ग्रामीण सामाजिक संगठन –

इसके अन्तर्गत स्मिथ ने निम्नलिखित तीन का अध्ययन सम्मिलित किया है:-

भूमि से मानव का संस्थागत संबंध –

इसके अन्तर्गत आपने भूमि का सर्वेक्षण, निवास के स्वरूप, भूमि के अधिकार, भू-स्वामित्व का आकार एवं कृषि व्यवस्था आदि का अध्ययन सम्मिलित किया है।

सामाजिक संरचना –

इसमें आपने सामाजिक विभेदीकरण और सामाजिक एकीकरण को शामिल किया है।

प्रमुख सामाजिक संस्थाएं –

इसमें आपने धर्म, राजनीति और सरकार, वर्ग आदि का अध्ययन किया है।

सामाजिक प्रक्रियाएँ –

स्मिथ ने ग्रामीण समाज की संगठनात्मक और विघटनकारी प्रक्रियाओं, सहयोग, प्रतियोगिता, संघर्ष व्यवस्थापन, एकीकरण, सांस्कृतिककरण, सामाजिक गतिशीलता आदि को रखा है।

लॉरी नेल्सन के विचार –

नेल्सन ने अपने लेख ‘Rural Sociology – Dominance and Horizons’ में ग्रामीण समाजशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र को तीन भागों में विभाजित किया है।

ग्रामीण मानव संबंधों का अध्ययन –

इसके अंतर्गत ग्रामीण समाजशास्त्र ग्रामीण मनुष्यों के सामूहिक जीवन, पारस्परिक सम्बन्धों, विभिन्न प्रकार के समूहों के गठन और उनके कार्यों का अध्ययन करता है। इस दृष्टिकोण से, इसका क्षेत्र सामूहिक जीवन के उन सभी क्षेत्रों से संबंधित है जो दुनिया भर में पाए जाने वाले विभिन्न ग्रामीण समूहों का अध्ययन करते हैं। इस प्रकार, नेल्सन के अनुसार, ग्रामीण समाज का क्षेत्र है:-

  • ग्रामीण क्षेत्रों का सामूहिक जीवन,
  • सामुदायिक जीवन, और
  • मानव जाति के सामाजिक जीवन का तीनों का अध्ययन करना होगा।

समय परिप्रेक्ष्य अध्ययन –

नेल्सन का कहना है कि समय परिप्रेक्ष्य के अनुसार ग्रामीण समाजशास्त्र का क्षेत्र व्यापक होना चाहिए, अर्थात् उसे वर्तमान ग्रामीण समाजों के अध्ययन के साथ-साथ इन समाजों की उत्पत्ति और विकास का ऐतिहासिक अध्ययन भी करना चाहिए। इस विज्ञान को भी विभिन्न कालों में ग्रामीण समाजों की विशेषताओं का अध्ययन करना चाहिए और इस विषय को पूर्णता प्रदान करनी चाहिए।

गहन अध्ययन –

नेल्सन ने लिखा है कि ग्रामीण समाजशास्त्र को उन सभी विषयों का गहराई से अध्ययन करना चाहिए जो ग्रामीण लोगों और ग्रामीण समुदायों के व्यवहार को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार आपके अनुसार ग्रामीण समाजशास्त्र के क्षेत्र में विभिन्न मूल्यों, महत्वाकांक्षाओं, समानुभूति, प्रतिस्पर्धा और असमानताओं से संबंधित सभी प्रकार के व्यवहारों का अध्ययन भी शामिल है।

संक्षिप्त विवरण :-

ग्रामीण जीवन को समझने में ग्रामीण समाजशास्त्र महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

FAQ

ग्रामीण समाजशास्त्र क्या है?

ग्रामीण समाजशास्त्र का क्षेत्र बताइए?

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Hi, I Am Social Worker इस ब्लॉग का उद्देश्य छात्रों को सरल शब्दों में और आसानी से अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराना है।

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