व्यक्तित्व के सिद्धांत बताइए?

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  • Post last modified:फ़रवरी 14, 2023

प्रस्तावना :-

व्यक्तित्व सामान्य रूप से मानसिक या मनोवैज्ञानिक और शारीरिक तत्वों के तंत्र का गठन होता है जो एक दूसरे के साथ अंतःक्रिया करते हैं। इस मनोवैज्ञानिक प्रणाली को समझने के लिए कई मनोवैज्ञानिकों द्वारा व्यक्तित्व के कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांतों को प्रतिपादित किया गया है, व्यक्तियों की विशेषताएँ जो दूसरों को प्रभावित करने में मदद करती हैं, व्यक्तित्व के सिद्धांत के अंतर्गत आती हैं।

व्यक्तित्व के सिद्धांत :-

व्यक्तित्व की प्रकृति की व्याख्या करने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व के संबंध में अनेक सिद्धांत प्रतिपादित किए हैं। इनमें से अधिकांश सिद्धांतों की चर्चा व्यक्तित्व उपागम में की गई है। व्यक्तित्व के कुछ सिद्धांत इस प्रकार हैं: –

शरीर रचना सिद्धांत :-

व्यक्तित्व के शरीर रचना सिद्धांत को तैयार करने वाले मनोवैज्ञानिकों में हिप्पोक्रेट्स, गैलेन, क्रैश्मर और शेल्डन प्रमुख हैं।

क्रैशमर ने शरीर रचना विज्ञान और चित्त प्रकृति के आधार पर चार प्रकार के व्यक्तित्व का निर्धारण किया है –

  • कुशकाया प्रकार
  • पुष्टकाया प्रकार
  • तुदिल प्रकार
  • मिश्रकाय प्रकार

शैल्डन ने शरीर संरचना के तीन तत्वों को प्रधानता दी है –

स्थूलकाय या गोलाकृति –

ऐसे देहधारी व्यक्ति का व्यक्तित्व आत्मीय होता है। ऐसे व्यक्तित्व वाले व्यक्ति सुखप्रिय, भोजनप्रिय, प्रकृति प्रेमी, परम्परागत, सहिष्णु, सामाजिक तथा हँसमुख स्वभाव के होते हैं। उन्हें दूसरों का दुख नहीं दिखता। ये दयालु स्वभाव के होते हैं। इनके मित्रों की संख्या बहुत अधिक होती है। ये लोग राज़ और राज़ छुपा नहीं सकते।

मध्यकाय या आयताकृति –

शेल्डन ने इस शख्सियत के व्यक्तित्व को कायप्रधान कहा है। ऐसे लोग प्राय: रोमांचप्रिय, भावुक, प्रभावशाली, उद्देश्य-केंद्रित और गुस्सैल स्वभाव के होते हैं। ये लोग जोखिम उठाना पसंद करते हैं।

लम्बकाय या लम्बाकृति –

शेल्डन ने ऐसे शरीर वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व को प्रमस्तिष्क प्रधान के प्रमुख के रूप में वर्णित किया। ऐसे लोग प्राय: एकान्तप्रिय, गुस्सैल, एकाकी, जल्दी थक जाने वाले, खोये हुए, विचारशील तथा निष्ठावान स्वभाव के होते हैं।

मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत :-

इस सिद्धांत के प्रवर्तक ‘फ्रायड’ हैं। उन्होंने व्यक्तित्व की संरचना में इदम अहम् और पराहम् या अत्यहम् को प्रमुख स्थान दिया है। इृदम् आनुवंशिकता से संबंधित है। शरीर संरचना से संबंधित सभी व्यक्तित्व दृष्टिकोण इदम से प्रेरित हैं। यह मानव मन का एक अचेतन हिस्सा है।

सामान्य रूप से व्यक्ति कहता है, “मैं? यह फ्रायड की शब्दावली में अहं है। यह इससे विकसित होता है। इदम का जो हिस्सा बाहरी दुनिया के संपर्क में आता है, वह समय के साथ अनुभव प्राप्त करके बनता है।

फ्रायड के अनुसार अत्यहम् या परहम का विकास बचपन से ही होने लगता है। समाजीकरण के द्वारा बच्चा अपने समाज के नैतिक मूल्यों और आदर्शों को अपने व्यक्तित्व का अंग बना लेता है। वे आमतौर पर विवेक का उपयोग उसी तथ्य को व्यक्त करने के लिए करते हैं जिसे फ्रायड ने अत्यहम् या परहम कहा है। इदम अहम और अत्यहम् या परहम का स्वभाव देखा जा सकता है।

आवश्यकता सिद्धांत :-

इस सिद्धांत के प्रवर्तक हेनरी हैं। उन्होंने व्यक्तित्व के जैविक पक्ष को अत्यधिक महत्व दिया है। जिसे उन्होंने व्यक्ति विज्ञान कहा। उनका प्रसिद्ध कथन है – “मस्तिष्क के बिना कोई व्यक्तित्व नहीं है”? मरे के अनुसार, व्यक्ति का व्यक्तित्व जैविक और मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं से उत्पन्न होने वाले तनावों से प्रभावित होता है।

व्यक्तित्व की संरचना में उन उपायों का भी महत्व है जो विभिन्न आवश्यकताओं और लक्ष्यों में क्रम निर्धारित करते हैं। क्रम निर्धारण के संदर्भ में, मुर्रे क्रमचय का उल्लेख करते हैं, जिसे वे एक उच्च मानसिक प्रक्रिया मानते हैं।

उनके अनुसार व्यक्तित्व परिवर्तनशील है और इसका विकास जीवन भर घटित होने वाली घटनाओं से संबंधित है। उन्होंने अभिप्रेरणा का उल्लेख करते हुए आवश्यकताओं पर अधिक बल दिया है। व्यक्ति की कई प्रकार की जैविक और मनोवैज्ञानिक आवश्यकताएँ होती हैं, जिनका पता हमें तब चलता है जब हम निम्नलिखित बातों पर ध्यान देते हैं –

  • व्यवहार का प्रभाव।
  • किये गये व्यवहार का प्रकार।
  • उद्दीपन वर्ग की वस्तुओं का चुनाव और अनेक प्रति अनुक्रिया।
  • किसी विशेष भाव या भावना की अभिव्यक्ति।
  • मनमर्जी से काम होने पर संतोष और न होने पर निराशा की अभिव्यक्ति।

इस तरह, हेनरी मरे के व्यक्तित्व के सभी निर्धारकों को एक साथ काम करने वाले सिद्धांत की आवश्यकता है। व्यक्तित्व की गतिशीलता के संदर्भ में, विभिन्न आवश्यकताएँ, दबाव, कर्षण शक्तियाँ, मूल्य सभी एक दूसरे से गुंथे हुए हैं।

विशेषक या शील सिद्धान्त :-

इस सिद्धांत के प्रवर्तक गार्डन डब्ल्यू ऑलपोर्ट हैं। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक व्यक्तित्व 1937 में प्रकाशित हुई थी। व्यक्तित्व व्यक्ति की मनोशारीरिक पद्धतियों का एक आंतरिक गतिशील संगठन है जो पर्यावरण के साथ उसके अद्वितीय समायोजन को निर्धारित करता है। आलपोर्ट के अनुसार व्यक्तित्व का वही सिद्धान्त उपयोगी एवं सार्थक है, जो रचना में केन्द्रित हो।

  • मानव व्यक्तित्व शरीर रचना विज्ञान में केंद्रित है।
  • व्यक्तित्व के अध्ययन में स्व चेतना के तथ्य पर समुचित ध्यान देना चाहिए।
  • मानव अंग संस्थान में कई ऐसी वस्तुएं हैं जो व्यक्तित्व को प्रभावित करती हैं।
  • व्यक्तित्व के अध्ययन में विश्लेषण के लिए ऐसी इकाइयों को लिया जाना चाहिए जो उसके सजीव संचार को बनाए रखें।
  • मानव व्यक्तित्व में अभिप्रेरणा का संबंध व्यक्तित्व की वर्तमान संरचना और कार्य से है, न कि पहले से प्राप्त किसी शक्ति के विकसित रूप से।

ऑलपोर्ट ने व्यक्तित्व के स्वस्थ और गत्यात्मक पक्ष पर बल दिया है। उनके अनुसार व्यक्ति के व्यक्तित्व में निहित ” अनन्यता ” अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने व्यक्ति के सिद्धांत में व्यक्ति और समष्टि दोनों के बीच एक प्रकार का समन्वय स्थापित किया है। उन्होंने व्यक्ति की उन विशेषकों को भी महत्वपूर्ण माना है जो व्यवहार और कार्य से संबंधित हैं।

क्षेत्र सिद्धांत :-

इस सिद्धांत के प्रवर्तक कर्ट लेविन हैं। उन्होंने भौतिक और गणित से लेकर क्षेत्र सिद्धांत को साइकोलॉजी में जगह दिया है। इनके द्वारा प्रतिपादित मनोवैज्ञानिक विचारधारा को सांस्थितिक मनोविज्ञान भी कहा जाता है। व्यक्तित्व के क्षेत्र सिद्धांत की व्याख्या करते हुए कर्ट लेविन ने तीन बातों पर बल दिया है:-

  • व्यवहार उस क्षेत्र का कार्य है जो व्यवहार के समय स्थित होता है।
  • सम्पूर्ण स्थिति को ध्यान में रखते हुए विश्लेषण शुरू किया जाता है। क्योंकि उस स्थिति के अलग-अलग अंग होते हैं और उसी से मिलकर पूर्ण बनता हैं।
  • वास्तविक स्थिति में वास्तविक व्यक्ति की व्याख्या गणितीय आधार पर की जा सकती है।

द्वन्द की अवधारणा व्यक्तित्व की गत्यात्मकता और समायोजन की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। लेविन के अनुसार द्वन्द तीन प्रकार के होते हैं-

  • उपगम-उपगम द्वंद
  • परिहार-परिहार द्वंद
  • उपगम-परिहार द्वंद

गणितीय या कारक सिद्धांत :-

इस सिद्धांत के प्रवर्तक कैटल और आइजेनक हैं। उन्होंने आँकड़ों के आधार पर तथा गणितीय एवं कारक विश्लेषण की प्रक्रिया को अपनाते हुए व्यक्तित्व के स्वरूप एवं विशेषताओं पर समुचित प्रकाश डाला है। व्यक्तित्व मापन द्वारा इसके विविध पक्षों को उजागर करने का श्रेय कैटाल को ही जाता है।

कैटल के अनुसार, “व्यक्ति का व्यक्तित्व वह है जिसके आधार पर हम कह सकते हैं कि वह व्यक्ति किसी परिस्थिति में क्या करेगा।” कैटाल ने व्यक्तित्व के स्वरूप को एक गणितीय सूत्र द्वारा प्रस्तुत किया है- R=f (S,P ).

व्यवहार = बारम्बार (व्यक्तित्व, परिस्थिति)

इस सूत्र के आधार पर, कैटेल ने जोर देकर कहा कि व्यक्तित्व की स्वरूप प्रकृति का उचित ज्ञान तभी हो सकता है जब हम किसी स्थिति में किसी व्यक्ति की अंतःक्रियात्मक बारम्बारता को व्यवहार के रूप में स्वीकार करते हैं जिसकी भविष्यवाणी की जा सकती है।

कैटाल के अनुसार विशेष व्यवहारों का एक सतत प्रतिमान होता है जिसके आधार पर व्यक्तित्व का अनुमान लगाया जा सकता है, विशेष अभिप्रेरित व्यवहार में एक प्रकार की निरंतरता होती है, अतः उनका निरीक्षण एवं परीक्षण संभव है। सांख्यिकीय विधियों के आधार पर स्रोत विरोधियों की प्रकृति का निर्धारण करके, केटल ने व्यक्तित्व के अध्ययन में स्रोत विरोधियों के महत्वपूर्ण स्थान का वर्णन किया है। इन पर पूरा ध्यान दिये बिना व्यक्ति के व्यक्तित्व का उचित ज्ञान नहीं हो सकता।

स्रोत विशेषकों के बारे में, कैटेल का कहना है कि व्यवहार और व्यवहार संबंधी घटनाएँ जो किसी विशेष स्थिति से संबंधित हैं और उनमें स्थिरता की कमी है, उन्हें बाहरी विशेषज्ञ माना जाना चाहिए। कैटेल ने अपने सिद्धांत में मनोविश्लेषण और अधिगम सम्बन्धी सिद्धांतों को शामिल किया है।

उनके अनुसार व्यक्तित्व के विकास में व्यक्ति के अंग-अंगों का समूह जिसे मैटाअर्ग कहा जाता है, निरंतर संशोधन होता रहता है और समय के साथ-साथ व्यक्ति के ‘स्व’ की एक संरचना बन जाती है। व्यक्तित्व का संबंध संस्कृति से होता है और सांस्कृतिक नियम, रीति-रिवाज, मूल्य और आदर्श व्यक्ति के व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाते हैं।

अधिगम सिद्धांत व्यक्तित्व के परिप्रेक्ष्य में :-

इस सिद्धांत के प्रवर्तक ‘डोलॉर्ड एंड यूनियन’ हैं। उनके अनुसार व्यक्ति की आदतों का विकास सीखने का परिणाम है। दूसरे शब्दों में, किसी व्यक्ति की सभी आदतें सामाजिक शिक्षा से प्रभावित होती हैं और व्यक्ति के व्यक्तित्व से निकटता से जुड़ी होती हैं। डोलोर्ड और मिलर ने सामाजिक अधिगम के संदर्भ में अन्तर्नोद का उल्लेख किया है। उनके अनुसार व्यक्ति का व्यवहार अन्तःप्रेरणा से प्रेरित होता है। ये अन्तर्नोद दो प्रकार के होते हैं –

  1. प्राथमिक अन्तर्नोद,
  2. द्वितीयक अन्तर्नोद

डोलॉर्ड और मिलर के अनुसार व्यक्तित्व की चार प्रमुख संप्रत्यय हैं।

  • अन्तर्नोद
  • संकेत
  • अनुक्रिया
  • पुनर्बलन

व्यक्तित्व का सर्वांगीण सिद्धांत :-

व्यक्तित्व के सर्वांगीण सिद्धांत को प्रतिपादित करने का मुख्य श्रेय श्रेय कुर्ट गोल्उ स्टाइन, अगूंयाल, मैसलो और लेकी को जाता है। व्यक्तित्व का सर्वांगीण दृष्टिकोण पूर्णता, समग्रता और एकता पर बल देता है। इसलिए व्यक्तित्व की सभी अवधारणाएं आपस में संबंधित हैं। मनुष्य अपने आप में पूर्ण है। यह पूर्णता उसके व्यवहार में प्रकट होती है। उसके सभी कार्य और व्यवहार पूर्णता प्राप्त करने की इच्छा से होते हैं, जिसे प्राय: सभी लोग स्वीकार करते हैं। यही कारण है कि इस सिद्धांत के कई मनोवैज्ञानिक संबंध हैं।

गोल्डस्टाइन व्यक्तित्व के लिए ‘अंगी’ या ‘ऑर्गेनिज्म’ शब्द का प्रयोग करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह व्यक्तित्व के अध्ययन में समग्र दृष्टिकोण को महत्वपूर्ण मानता है। उनके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति में आत्मसिद्धि की प्रवृत्ति होती है। अंगी पर्यावरण में रहते हुए ऐसे हालात से गुजरता है जबकि उसकी आम जिंदगी में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं।

इस उतार-चढ़ाव से निपटने के लिए यह अंगी या समीकरण की प्रक्रिया को अपनाता है। उनका मानना है कि एक व्यक्ति आत्मसिद्धि के लिए वरीयता के आधार पर कार्य करता है। उन्होंने मानव व्यवहार की व्याख्या के संदर्भ में आकृति और भूमि की संकल्पना का प्रयोग किया है।

अंग्याल के अनुसार, व्यक्तित्व की स्वरूप एकीकृत गत्यात्मक संगठन के समान है। उनका पूरा जीवन एक प्रक्रिया की तरह है। इस प्रक्रिया में एक विशेष प्रकार की संगठन योजना, कार्य पद्धति और साथ ही सर्वांगपूर्णता भी पायी जाती है। उन्होंने व्यक्तित्व की प्रकृति की दो प्रकार से व्याख्या की है-

  1. वैयक्तिक दृष्टि
  2. सामूहिक दृष्टि

वैयक्तिक दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व में यह गुण होता है कि वह अपने विकास के लिए निरन्तर प्रयास करता है और जब व्यक्ति समाज में अपना स्थान बना लेता है तथा स्वयं को कार्य करने के लिए स्वतंत्र एवं सुरक्षित पाता है तो उसमें एक ऐसी प्रवृत्ति विकसित हो जाती है जिसके कारण वह अपने समूह के प्रति अधिक लगाव अनुभव करता है। इतना ही नहीं, सामूहिक इच्छाओं के लिए वह खुशी-खुशी अपनी इच्छाओं का बलिदान कर देता है।

संक्षिप्त विवरण :-

समाज में विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाएँ समानांतर रूप से चलती हैं। जिसमें व्यक्ति उन प्रक्रियाओं को कर्ता के रूप में सकारात्मक या नकारात्मक रूप में अपनाता है। समाज के एक सदस्य के रूप में व्यक्ति सामाजिक समूहों, समुदायों, संस्थाओं और संगठनों के सदस्यों के साथ सहयोग, एकीकरण, समायोजन, संघर्ष, प्रतिस्पर्धा और प्रतियोगिता की प्रक्रियाओं में शामिल होता है और समाज को एक नया रूप देता है। व्यक्ति प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक प्रक्रियाओं में सहयोग करता है। जिससे सामाजिक प्रतिनिधित्व एवं व्यक्तिगत उद्देश्यों की प्राप्ति हो सके।

FAQ

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