प्रस्तावना :-
जब किसी कारण से किसी व्यक्ति की आवश्यकताओं और उन्हें पूरा करने के साधन यानी लक्ष्य के बीच कोई बाधा आ जाती है इसके कारण यदि वह अपने इच्छित लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाता तो कुंठा हो जाता है।
कुंठा का अर्थ :-
व्यक्ति अक्सर दिन के हर पल छोटी-छोटी कठिनाइयों और बाधाओं को सहन करता रहता है। उनमें से अधिकांश को आसानी से हल किया जा सकता है, लेकिन कभी-कभी अवरोध या बाधाएं उत्पन्न होती हैं जो किसी व्यक्ति की आवश्यकताओं और प्रेरकों की पूर्ति में बाधा उत्पन्न करती हैं।
यानी लक्ष्य तक पहुंचने में बाधा डालते हैं. इन बाधाओं या बाधाओं को दूर करने के लिए व्यक्ति हर संभव प्रयास करता है। जब वह बाधाओं को दूर करके अपने लक्ष्य तक पहुंचने में सफल हो जाता है तो उसे एक प्रकार की खुशी और संतुष्टि का अनुभव होता है।
परंतु जब अनेक प्रयासों के बावजूद भी वह अवरोधो या बाधाओं को पार करके लक्ष्य तक पहुंचने में असमर्थ हो जाता है, तो उसे दुख होता है और असफलता या निराशा की भावना उत्पन्न होती है, जिसे मनोवैज्ञानिक भाषा में कुंठा कहा जाता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति कुसमायोजन का शिकार हो जाता है और उसे समाज में स्वयं को समायोजित करने में काफी कठिनाई होती है।
कुंठा की परिभाषा :-
कुंठा को और भी स्पष्ट करने के लिए कुछ प्रमुख विद्वानों की परिभाषाओं का उल्लेख कर सकते हैं –
“जब कोई आवश्यकता उत्पन्न होती है और फिर उसकी पूर्ति किसी बाधा या रुकावट के कारण वह पूरी नहीं हो पाती तो इसका परिणाम कुंठा होती है।”
साइमन्डस
“कुंठा किसी आवश्यकता या इच्छा की पूर्ति का न होना है।”
जेम्स जी कालमेन
कुंठा के कारण :-
कुंठा के कई कारण और स्रोत हो सकते हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:-
आर्थिक कारणों से –
आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण व्यक्ति अपनी कई इच्छाओं और आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाता है और अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाता है।
सामाजिक कारण –
समाज के कठोर नियम, रीति-रिवाज, परंपराएँ, जातियाँ, प्रजाति, पंथ, धर्म और कानून भी व्यक्ति की स्वतंत्रता की इच्छाओं और आवश्यकताओं की पूर्ति में बाधा डालते हैं, जिससे व्यक्ति में निराशा और असंतोष पैदा होता है, जिससे कुसमायोजन की भावना पैदा होती है।
व्यक्तिगत कारण –
कुछ लोग या बच्चे अपने मानसिक, संवेगात्मक या शारीरिक दोषों जैसे बुद्धि की कमी, भय हीनता की भावना, अक्षमता आदि के कारण अपनी इच्छाओं और जरूरतों को पूरा करने में असफल होते हैं। इससे भी असंतोष और कुंठा की भावना पैदा होती है।
भौतिक कारण –
पर्यावरण में पाए जाने वाले अनेक भौतिक या प्राकृतिक तत्व जहाँ एक ओर व्यक्ति की आवश्यकताओं और प्रेरणाओं को पूरा करने में सहायक होते हैं, वहीं दूसरी ओर अनेक भौतिक तत्व जैसे अकाल, बाढ़, सूखा, भूकंप आदि बाधक भी सिद्ध होते हैं। जिससे व्यक्ति के मन में घोर निराशा एवं असन्तोष उत्पन्न होता है।
असंगत परिस्थितियाँ एवं दशाएँ –
महँगाई, निर्धनता, बेरोजगारी, रहने के लिए अनुचित स्थान, घर का अशांत वातावरण आदि के कारण बच्चे की कई आवश्यकताएँ और इच्छाएँ अधूरी रह जाती हैं। इससे उसमें कुंठा पैदा हो जाती है और वह असामाजिक व्यवहार करने लगता है।