स्मृति की अवधारणा :-
स्मृति एक व्यापक शब्द है, प्रयोगात्मक मनोविज्ञान में अधिगम की स्मृति का सबसे अधिक विस्तार से अध्ययन किया गया है। लैकमैन आदि ने स्मृति को किसी व्यक्ति द्वारा जीवन भर अर्जित जानकारी को याद रखने की मानसिक क्रिया कहा है।
किसी जानकारी की स्मृति में रहने की अवधि एक सेकंड से भी कम हो सकती है या जीवन भर बनी रह सकती है। सूचनाओं को स्मृति में बनाये रखने की प्रक्रिया के अंतर्गत क्रमानुसार 3 प्रकार की मानसिक कि कियायें होती हैं। सबसे पहले, संग्राहकों के माध्यम से सूचना निवेश का कूट संकेतन होती है।
कूट सांकेतिक सूचना को स्मृति में रखने का कार्य है। इस क्रिया को भंडारण कहा जाता है, जो स्मृति की दूसरी अवस्था है। कभी-कभी इसे सूचना संचय भी कहा जाता है। स्मृति का तीसरा चरण सूचना की पुनरुद्धार है। प्रायोगिक मनोविज्ञान में स्मृति की प्रकृति पर दो प्रकार से चर्चा की जाती है।
कुछ लोग इसे एक बहुअवस्था प्रक्रम की संरचना के रूप में पहचानते हैं, जबकि कुछ इसे एकत्रीकरण की एक प्रणाली मानते हैं जिसमें सूचना का प्रसंस्करण विभिन्न स्तरों पर होता है, ऐसा माना जाता है कि स्मृति सीखने का परिणाम है। स्मृति के आधार पर, हम पहले से सीखी गई सामग्री या पूर्व अनुभव को वर्तमान में याद करने या दोहराने में सक्षम हैं।
स्मृति का अर्थ (smriti ka arth) :-
स्मृति सीखने का परिणाम है। स्मृति के आधार पर ही हम अतीत में सीखी गई सामग्री या अनुभव को वर्तमान में याद करने या दोहराने में सक्षम होते हैं। स्मृति के अभाव में हम कुछ भी याद नहीं रख पायेंगे।
ऐसा माना जाता है कि कोई प्राणी जो सीखता है उसका निर्माण उसके मस्तिष्क में होता है। इन छापों को स्मृतिचिह्न कहा जाता है। इसे ‘न्यूरोग्राम’ या ‘इनग्राम’ भी कहा जाता है। सीखी गई सामग्री या कार्यों की स्मृति या पुनर्स्मरण स्मृति चिन्हों पर ही निर्भर करता है।
ऐसा माना जाता है कि “स्मृति चिन्ह” को स्मृति, धारणा या पुनर्स्मरण के लिए सक्रिय होना आवश्यक है। यदि वे कमजोर या धुंधले हो जाएं तो सीखा हुआ भूलने लगता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि स्मृति का आधार स्मृति चिन्ह है।
स्पष्ट है कि स्मृति एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा पूर्व अनुभवों, विचारों या सीखी गई सामग्रियों को चेतना में लाया जाता है। हम अनुभवों को फिर से समृद्ध या पुनरुत्पादित करते हैं ताकि हम वर्तमान स्थिति में उनसे लाभ उठा सकें, समायोजन कर सकें और आवश्यकतानुसार उन्हें निष्पादित कर सकें।
स्मृति प्रक्रिया एक अत्यंत लाभकारी प्रक्रिया है। इस कारण हमें अपने पिछले अनुभव याद रहते हैं। स्मृति के अभाव में जीवन निरर्थक और बोझिल हो सकता है। अगर हमें कुछ भी याद न रहे तो वह स्थिति कितनी अजीब हो जाएगी।
स्मृति की परिभाषा (smriti ki paribhasha) :-
स्मृति का स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाओं का उल्लेख कर सकते हैं :-
“स्मृति एक मानसिक प्रणाली है सूचनाओं का संकेतन, भंडारण, संगठन, परिवर्तन और पुनर्स्मरण करती है।”
कून
“स्मृति, व्यक्ति की वह योग्यता है जिसके द्वारा वह पहले की अधिगम प्रक्रिया से सूचना संग्रह करता है और आवश्यकता पड़ने पर उसका पुनरोत्पादन करता है। “
आइजिंक
“अतीत के पूर्व अनुभव और विचारों को पुनर्सृजित या पुनरुत्पादित करने की मस्तिष्क की योग्यता स्मृति है। “
प्राइस
“स्मृति का तात्पर्य अतीत की घटनाओं के अनुभव की कल्पना करना और पहचान लेना है कि वे उनके अपने भूतकालीन अनुभव हैं।”
मैग्डूगल
“एक बार सीखे गए क्रिया को पुनः स्मरण ही स्मृति है।”
वुडवर्थ
“स्मृति एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें सूचना कूट संकेतन, संचयन और पुनरुद्धार सन्निहित होता है।”
ब्रूनो
“स्मृति वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से पुराने विचार पुनः जागृत हो जाते हैं।”
स्टाउट
उपरोक्त परिभाषाओं और चर्चाओं के आधार पर स्मृति के बारे में निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं:-
- स्मृति एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है।
- यह स्मृति चिन्ह पर निर्भर करती है।
- मेमोरी में कूट संकेतन, संचयन पुनरुद्धार की प्रक्रियाएँ शामिल होती हैं।
- स्मृति अतीत में अनुभव की गई या सीखी गई बातों को चेतना में लाती है।
- स्मृति किसी पूर्व अनुभव को दोबारा बनाने या पुनरुत्पादित करने की क्षमता है।
- स्मृति के लिए अतीत के अनुभवों या अतीत के ज्ञान का वर्तमान स्थिति में उपयोग करना संभव है।
- सीखने या अनुभव के परिणामस्वरूप तंत्रिका तंत्र में होने वाले परिवर्तन स्मृति का आधार बनते हैं।
स्मृति के तत्व :-
अधिगम –
स्मृति प्रक्रिया में सीखना सबसे पहले होता है। हम हर दिन नई चीजें सीखते हैं। सीखने की प्रक्रिया जीवन भर चलती रहती है। सीखने के बाद हमें सीखा हुआ अनुभव याद रहता है। अर्थात् सीखने का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से स्मृति पर प्रभाव पड़ता है। सीखना जितना प्रभावी होगा, स्मृति उतनी ही तेज़ होगी।
धारण –
धारण स्मृति की चार प्रक्रियाओं में से एक है। प्राप्त अनुभव मस्तिष्क पर कुछ चिन्ह छोड़ जाते हैं। ये चिन्ह नष्ट नहीं होते। कुछ समय तक ये चिन्ह चेतन मस्तिष्क में रहते हैं, फिर अचेतन मस्तिष्क में चले जाते हैं।
पुनर्स्मरण –
पुनर्स्मरण प्रक्रिया का तीसरा महत्वपूर्ण खंड है। यह एक मानसिक प्रक्रिया है जिसमें बिना किसी मौलिक उद्दीपक के अतीत के अनुभवों को वर्तमान चेतना में वापस लाने का प्रयास किया जाता है। इसे कहते हैं पुनर्स्मरण जिन तथ्यों को ठीक से समझा नहीं गया है उन्हें पुनर्स्मरण कठिन है।
पहचान –
स्मृति का चौथा भाग है पहचान। पहचान का तात्पर्य उस वस्तु को जानना है जो अतीत में धारण की गई है। अतः पहचान का अर्थ है पुनः स्मरण करने में कोई त्रुटि न करना। आम तौर पर, पुनर्स्मरण और पहचानने की प्रक्रियाएँ साथ-साथ चलती हैं।
स्मृति के प्रकार (smriti ke prakar) :-
स्मृति सामान्यतः तीन प्रकार की मानी जाती है। इन्हें संवेदी स्मृति, अल्पकालिक स्मृति और दीर्घकालिक स्मृति कहा जाता है। इन तीन प्रकार की स्मृतियों में भी भिन्न-भिन्न प्रकार की स्मृतियाँ पाई जाती हैं।
संवेदी स्मृति –
संवेदी स्मृति यह है कि उद्दीपक हटा दिए जाने के बाद भी संवेदी सूचना का कुछ क्षणों तक विलंबित होती है।
अल्पकालिक स्मृति –
अल्पकालिक स्मृति वह स्मृति प्रणाली है जो सामग्रियों को एक मिनट तक संग्रहीत करती है, जिसकी भंडारण क्षमता कम होती है और इस प्रकार दीर्घकालिक स्मृति की तुलना में सामग्रियों का प्रक्रमण अपेक्षाकृत कम होता है।
दीर्घकालिक स्मृति –
वह स्मृति जो लंबे अंतराल पर प्रदर्शित होती है, दीर्घकालिक स्मृति कहलाती है। यह लंबे समय तक सूचनाओं को संग्रहीत करता है।
संक्षिप्त विवरण :-
कून ने बताया है कि मस्तिष्क में सूचनाओं के भंडारण के परिणामस्वरूप होने वाले परिकल्पनात्मक परिवर्तनों को स्मृति चिन्ह कहा जाता है, स्मृति इन स्मृति चिन्ह पर निर्भर करती है। स्मृति के अभाव में हम कुछ भी याद नहीं रख पाते। स्मृतियाँ कई तरह की होती हैं इनमें से मुख्य हैं संवेदी स्मृति, अल्पकालिक स्मृति और दीर्घकालिक स्मृति।
FAQ
स्मृति क्या है?
स्मृति एक मानसिक प्रणाली है जो सूचना को संकेत देती है, संग्रहीत करती है, व्यवस्थित करती है और पुनर्स्मरण करती है।
स्मृति कितने प्रकार की होती है?
स्मृति को आमतौर पर तीन प्रकार का माना जाता है। इन्हें संवेदी स्मृति, अल्पकालिक स्मृति और दीर्घकालिक स्मृति कहा जाता है।