श्रम समस्याओं के उत्पन्न होने के कारण :-
श्रम समस्याओं के उत्पन्न होने के कारण निम्नलिखित मुख्य रूप से उत्तरदायी हैं –
आर्थिक कारण –
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के तहत अक्सर श्रमिक और श्रम के क्रेता यानी मिल मालिक के बीच संघर्ष होता है। इन दोनों वर्गों के बीच रस्साकशी का प्रमुख कारण दोनों के हितों में सामंजस्य की कमी है। श्रमिक और मालिक दोनों किसी उद्योग विशेष या राष्ट्रीय आय द्वारा निर्मित वस्तुओं से अधिक से अधिक हिस्सा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, क्योंकि इसी पर उनकी आय का परिणाम निर्भर करता है और आय पर, उनके जीवन स्तर और अन्य उपयोगी सामग्रियों की उपलब्धता निर्भर करती है।
परिणामस्वरूप ऐसी अर्थव्यवस्था में दोनों वर्ग अपनी आय बढ़ाने का प्रयास करते हैं। जब मजदूर अपनी आय बढ़ाने की कोशिश करते हैं, तो उन्हें पूंजीपतियों, लेनदारों, शेयरधारकों और प्रबंधन आदि द्वारा उठाई गई कई आपत्तियों का सामना करना पड़ता है। ये लोग अपने स्वार्थ के कारण कभी नहीं चाहते कि श्रमिकों को राष्ट्रीय आय में अधिक हिस्सा दिया जाए।
जहां यह स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि जम बाजार में श्रम और पूंजी के बीच श्रम का मूल्य (यानी मजदूरी की दर) तय है, फिर दोनों पक्षों के बीच संघर्ष क्यों है? यदि मांग और आपूर्ति के नियमों के आधार पर निष्पक्ष रूप से मोम की कीमत स्वतंत्र रूप से निर्धारित की जाती है, तो शायद संघर्ष का इतना बड़ा रूप हमारे सामने मौजूद नहीं होगा, जैसा कि आज देखा जा रहा है।
लेकिन वास्तविकता यह है कि आज बाजार एकाधिकार और एकाधिकारवादी वातावरण से भरा हुआ है। इतना ही नहीं, यह भी देखा जाता है कि रेलवे टाइम टेबल की तरह श्रमिकों के वेतन की दर भी बार-बार बदलती रहती है और इस परिवर्तन के बारे में श्रमिकों को कोई पूर्व सूचना नहीं दी जाती है। इसके विपरीत अंशधारियों और प्रबंध अधिकारियों आदि को जो लाभांश दिया जाता है उसका अंश प्राय: होता है। उत्पत्ति के सभी साधनों का निश्चित भाग चुकाने के बाद जो शेष रहता है, उस पर ‘साहसी’ का एकाधिकार होता है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के तहत ये “बड़े लोग” अपना हिस्सा बढ़ाना चाहते हैं! वे अक्सर इस उद्देश्य के लिए श्रमिकों का गला काटते हैं।
मनोवैज्ञानिक कारण –
श्रम और पूंजी के आपसी संघर्ष के लिए कुछ मनोवैज्ञानिक कारण भी जिम्मेदार हैं। काम करने वाला मजदूर भी होता और “इंसान” भी। वह भी समाज में रहता है। इसलिए उसे पेट भरने और तन ढकने के साथ-साथ अपनी इज्जत का भी ख्याल रखना पड़ता है। एक इंसान के तौर पर वह समाज में सम्मान की नजर से देखना चाहता है। उसका कुछ काम। मूल्य होना चाहिए और सभी को इसे औद्योगिक उत्पादन का एक महत्वपूर्ण और उपयोगी हिस्सा मानना चाहिए। इस दृष्टि से कारखाने के भीतर औद्योगिक लोकतंत्र की स्थापना नितांत आवश्यक है।
यही कारण है कि आज मानवीय संबंधों की समस्या सबसे महत्वपूर्ण होती जा रही है। आधुनिक युग में मनोविज्ञान से संबंधित श्रमिक समस्याएं बहुत प्रबल होती जा रही हैं। इसका प्रमुख कारण स्वचालन एवं उपकरणों का अत्यधिक प्रयोग है, जिसके फलस्वरूप एक ओर तो कार्य नीरस होता जा रहा है तथा दूसरी ओर श्रमिकों के व्यक्तिगत उत्तरदायित्व, सम्मान, प्रतिष्ठा, महत्व एवं वैयक्तिकता में कमी आती जा रही है। श्रम विभाजन तथा विशेषज्ञता के कारण आज श्रमिक कई वर्गों में विभाजित हो गए हैं।
जो लोग उच्च श्रेणी के तकनीकी कार्य में संलग्न हैं। उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है, लेकिन निम्न श्रेणी का काम करने वाले कार्यकर्ताओं का समाज में रत्ती भर भी सम्मान नहीं है। ऐसी भावना श्रमिक द्वारा बहुत महसूस की जाती है। वह चाहता है कि समाज में उसे उतना ही सम्मान दिया जाए, जितना किसी उच्च कोटि के तकनीकी कलाकार को दिया जाता है। इस अधिकार को पाने के लिए कभी-कभी श्रमिक हड़ताल करते हैं।
सामाजिक कारण –
आपातकाल और श्रम समस्याओं के विकास में कुछ सामाजिक तत्वों को भी जोड़ा गया है। आधुनिक औद्योगिक युग में अनेक उद्योगों की तुलना में कुटीर एवं लघु उद्योगों का महत्व बहुत कम होता जा रहा है। नतीजतन, औद्योगिक पूंजी का केंद्रीकरण चंद लोगों के हाथों में पहुंच रहा है। दूसरे, पूंजीपतियों की संख्या घट रही है और श्रमिकों की संख्या बढ़ रही है। श्रम और पूंजी के बीच गहरी खाई के कारण दोनों पक्ष एक-दूसरे के विचारों से अनभिज्ञ हैं।
सरकार मजदूरी की दर पर काफी प्रभाव डाल सकती है। इसके अलावा, व्यापार लेनदारों, श्रमिक संघों, वाणिज्य मंडलों और अन्य ऐसे संस्थानों और व्यक्तियों पर भी प्रभाव पड़ता है। अतः यह स्पष्ट है कि श्रम समस्याओं का अध्ययन करते समय उन पर उस अधिकार को रखना चाहिए। शक्ति, दबाव और अन्य समान सामाजिक कारणों का प्रभाव पड़ता है।
राजनीतिक कारण –
जिस प्रकार एक देश अपनी सरकार द्वारा शासित होता है, उसी प्रकार एक उद्योग का प्रबंधन उसके मालिक और अन्य प्रबंधकों द्वारा किया जाता है। जिस देश में निरंकुश शासन होता है, वहां प्रजा को कठपुतली की तरह तानाशाह के आदेश के अनुसार काम करना पड़ता है। तानाशाही व्यवस्था के तहत देश की शासन व्यवस्था में जनता का कोई हाथ नहीं होता। यही बात उद्योगों के प्रबंधन के संबंध में भी होती है। उद्योगों में मिल मालिक और प्रबंधक श्रमिकों की भर्ती करते हैं और अब उन्हें काम से निकाल दिया जाता है।
ऐसे में वही मजदूर सुखी हो सकते हैं जो हमेशा अपने मालिकों की हुजूरी करते हैं. मिल मालिक श्रमिकों को औद्योगिक प्रबंधन में लेशमात्र भी हिस्सा नहीं देना चाहते हैं। लेकिन वर्तमान लोकतांत्रिक युग में श्रमिक अपने अधिकारों के प्रति काफी जागरूक हो गया है। वह उद्योगों के प्रबंधन में भी हाथ रखना चाहता है और उसे अपने जीवन से संबंधित समस्याओं पर विचार करने और सलाह देने का अधिकार होना चाहिए।
FAQ
- आर्थिक कारण
- मनोवैज्ञानिक कारण
- सामाजिक कारण
- राजनीतिक कारण