शोध में नैतिकता क्यों महत्वपूर्ण है? Ethics in research

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  • Post last modified:जुलाई 22, 2023

शोध में नैतिकता :-

शोध में नैतिकता निम्नलिखित मुद्दों को मुख्य रूप से प्रमुख माना जाता है-

सूचित अनुमोदन –

सबसे पहले शोधकर्ता का यह नैतिक कर्तव्य है कि वह सूचना देने वालों को शोध से संबंधित संपूर्ण जानकारी प्रदान करे। उसे सूचना देने वाले को यह बताना होगा कि इस शोध के उद्देश्य क्या हैं, उत्तरदाताओं को क्या लाभ मिल सकते हैं और जानकारी देने में उन्हें किस प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ सकता है।

अधिकांश विद्वान इस सूचित स्वीकृति को एक नैतिक मुद्दा मानते हैं। यदि प्रश्नावली से सामग्री (डेटा) संकलित की जा रही है तो समवर्ती पत्र में इन सभी का उल्लेख करना अत्यंत आवश्यक है। यदि सूचना देने वाले को शोध के बारे में कोई संदेह हो तो वह निश्चित रूप से सूचना देने से कतराएगा अथवा भ्रामक सूचना देगा।

गोपनीयता –

सामाजिक अनुसंधान में एक प्रमुख नैतिक मुद्दा गोपनीयता से संबंधित है। दरअसल, यह मसला विश्वसनीयता से जुड़ा है। सूचनादाताओं द्वारा दी गई जानकारी को गोपनीय रखना शोधकर्ता का नैतिक कर्तव्य है। इन्हें सार्वजनिक करना सूचनादाताओं के लिए नुकसानदेह हो सकता है।

विश्वसनीयता –

यह शोधकर्ता का नैतिक कर्तव्य है कि वह उसके नाम पर किसी भी सूचनादाता द्वारा दी गई व्यक्तिगत जानकारी को सार्वजनिक न करे। शोधकर्ता को इस विश्वसनीयता के प्रति अत्यधिक सचेत रहना चाहिए। सूचना देने वाले को पूरी तरह से आश्वस्त होना चाहिए कि उसके द्वारा दी गई जानकारी का उपयोग केवल अनुसंधान उद्देश्यों के लिए किया जाएगा और सूचना देने वाले के नाम पर किसी अन्य उद्देश्य के लिए उपयोग नहीं किया जाएगा।

प्रायोजित शोध –

यदि शोध प्रायोजित है, तो उसका प्रायोजक अपने हितों की पूर्ति के लिए शोध के निष्कर्षों को विकृत करता है। इसलिए शोधकर्ता को इस संबंध में प्रायोजक के साथ एक अनुबंध करना चाहिए और यदि संभव हो तो सूचना देने वालों को शोध के प्रायोजक के बारे में पता नहीं होना चाहिए।

शारीरिक या मानसिक कष्ट –

शोधकर्ता को सूचना देने वालों को शारीरिक या मानसिक पीड़ा पहुँचाने से बचना चाहिए। यह सुनिश्चित करना उसका नैतिक कर्तव्य है कि उसके द्वारा पूछे गए प्रश्नों से सूचना देने वालों को कोई मानसिक कष्ट न हो। इसीलिए कहा जाता है कि साक्षात्कार या इंटरव्यू शेड्यूल में शामिल प्रश्न पूछते समय शोधकर्ता को बहुत सावधान रहना चाहिए। उनका सदैव यह प्रयास रहना चाहिए कि सूचना देने वाले के मन में किसी भी प्रकार की हीन भावना न आये।

सूचना देने वालों से स्वयं संपर्क करना शोधकर्ता का नैतिक कर्तव्य है। कई बार ऐसा होता है कि कई बार जाने के बाद भी सूचना देने वाला व्यक्ति गंतव्य पर नहीं मिलता है। शोधकर्ता को सदैव यह सोचना चाहिए कि सूचना देने वाले उसके अधीन काम करने वाले कर्मचारी नहीं हैं। इसलिए उनसे समय लेकर मिलने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए।

वैज्ञानिक समर्थन –

शोधकर्ता को शोध करते समय और प्रतिवेदन तैयार करते समय मूल्य-तटस्थ रहना चाहिए। मैक्स वेबर जैसे समाजशास्त्रियों ने मूल्य-तटस्थता को अपनी कार्यप्रणाली में प्रमुख स्थान दिया है। उन्होंने ज्ञान का निर्माण करने और उसे व्यवहार में न लाने पर जोर दिया। इसी सन्दर्भ में एल्विन गोल्डनर ने रचनात्मक शोध की बात कही है। दरअसल, आधुनिक युग में किसी भी शोध के लिए वैज्ञानिक सहयोग अनिवार्य माना जाता है।

वैज्ञानिक कदाचार और धोखा –

शोधकर्ता का यह नैतिक कर्तव्य है कि वह संकलित सामग्री को किसी भी प्रकार से विकृत न करे। उन्हें इस मामले में किसी भी तरह की लापरवाही नहीं करनी चाहिए और न ही पक्षपातपूर्ण सामग्री पेश करनी चाहिए. इससे बचने के लिए शोध को दोहराना और अध्ययन के निष्कर्षों की जांच के लिए सहकर्मियों की राय लेना जरूरी है।

वैज्ञानिक कदाचार और छल एक अनैतिकता है जिससे शोधकर्ता को सदैव बचना चाहिए। यदि ऐसा नहीं हुआ तो अन्य लोगों द्वारा किये गये शोध के आधार पर कदाचार एवं धोखे से जुड़ी वास्तविकता सामने आ सकती है।

अनुसंधान उद्देश्यों के लिए उपचार स्थगित रखना –

किसी भी उपचार के लिए शोध के निष्कर्षों का उपयोग करने से पहले, यह आश्वस्त होना आवश्यक है कि निष्कर्ष विश्वसनीय हैं। यदि निष्कर्षों के बारे में थोड़ा सा भी संदेह है, तो उन्हें उपचार के लिए रोक दिया जाना चाहिए।

चिकित्सा विज्ञान में शोध के प्रति जरा सा भी संदेह होने पर उपचार को शोध के लिए स्थगित कर देना परम नैतिक कर्तव्य माना जाता है। चिकित्सा विज्ञान में कोई भी अविश्वसनीय काम मरीजों की जान के लिए खतरा पैदा कर सकता है।

अतिसंवेदनशील वर्गों की सुरक्षा –

शोधकर्ता को अतिसंवेदनशील वर्गों का ध्यान रखना चाहिए। शोध से संबंधित किसी भी कार्य में उन पर कोई दबाव या जबरदस्ती नहीं होनी चाहिए। अतिसंवेदनशील वर्गों पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है. शराब और नशीली दवाओं की लत पर किए गए सभी अध्ययनों में शोधकर्ता ने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि अध्ययन में शामिल सूचनादाताओं के हितों को किसी भी तरह से नुकसान न पहुंचे। ऐसे युवाओं को अतिसंवेदनशील माना जाता है। अत: इस वर्ग से संबंधित शोध में सावधानी बरतनी आवश्यक है।

शोध में नैतिक मुद्दों को ध्यान में रखते हुए बरती जाने वाली सावधानियां :-

सामाजिक शोध में नैतिकता बनाए रखना बहुत जरूरी है। इस दृष्टि से प्रत्येक शोध में निम्नलिखित सावधानियाँ बरतना आवश्यक माना जाता है:

ईमानदारी –

वैज्ञानिक अनुसंधान में ईमानदारी बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। सामग्री, परिणाम, विधियाँ, कार्यप्रणाली और प्रकाशन स्थिति का ईमानदारी से उल्लेख किया जाना चाहिए। सामग्री नकली या मिथ्या नहीं होनी चाहिए, न ही इसे गलत अर्थ में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। अपने सहकर्मियों, शोध प्रायोजकों और जनता को धोखा देने से बचें।

अखंडता –

आपको अनुसंधान से संबंधित अपने वादों और अनुबंधों का पालन करना चाहिए। शोध कार्य ईमानदारी से करना चाहिए तथा विचारों एवं कार्यों की स्थिरता के लिए सदैव प्रयासरत रहना चाहिए। यह अनुसंधान की अखंडता सुनिश्चित करता है।

वस्तुनिष्ठता –

सामग्री का विश्लेषण, व्याख्या, मूल्यांकन, वैयक्तिक निर्णयों में पूर्वाग्रह से बचना चाहिए। आत्म-प्रतिरूपण से बचना चाहिए या इसे न्यूनतम रखने का प्रयास करना चाहिए। अनुसंधान को प्रभावित करने वाले व्यक्तिगत और वित्तीय हितों को स्पष्ट रूप से घोषित किया जाना चाहिए। ऐसा करने से शोध में निष्पक्षता आती है।

खुलापन –

सामग्री, परिणाम, विचार, उपकरण, संसाधनों को दूसरों के साथ साझा करके अनुसंधान में खुलापन बनाए रखा जाना चाहिए। साथ ही शोधकर्ता को अपनी आलोचना और नए विचारों के लिए तैयार रहना चाहिए।

सतर्कता –

शोध में लापरवाह त्रुटियों और असावधानी से बचें, अपने और अपने सहकर्मियों के काम की आलोचनात्मक जांच करें, संपूर्ण शोध प्रक्रिया यानी सामग्री संकलन, शोध डिजाइन और एजेंसियों या पत्रिकाओं के साथ पत्राचार का उचित रिकॉर्ड रखें। इससे अनुसंधान में सतर्कता बनी रहती है.

बौद्धिक संपदा का सम्मान –

शोधकर्ता को लाइसेंस (पेटेंट) और कॉपीराइट का सम्मान करना चाहिए। अप्रकाशित सामग्री पद्धतियों या परिणामों का उपयोग बिना अनुमति के नहीं किया जाना चाहिए। दूसरे विद्वानों की शोध में प्रयुक्त सामग्री को सदैव सम्मानपूर्वक स्वीकार करना चाहिए तथा दूसरों की पुस्तकों से सामग्री चुरानी नहीं चाहिए।

गोपनीयता-

शोधकर्ता को प्रकाशन या अनुदान के लिए भेजे गए शोध पत्रों, व्यक्तिगत रिकॉर्ड, व्यापार और सैन्य रहस्यों और मुखबिरों के रिकॉर्ड की गोपनीयता बनाए रखनी चाहिए।

सामाजिक जिम्मेदारी –

अनुसंधान को सामाजिक अच्छाई का प्रचार करने और सामाजिक बुराइयों को खत्म करने का प्रयास करना चाहिए। शोधकर्ता का अपने विषय और समाज के मानकों के प्रति सामाजिक उत्तरदायित्व होना चाहिए।

अनुभवी परामर्शदाता –

शोध में प्रशिक्षण देने वाले शिक्षकों और विशेषज्ञों को छात्रों को शोध की बारीकियां समझाते समय अनुभवी परामर्शदाता के रूप में कार्य करना चाहिए। उनकी भलाई का ध्यान रखना और उन्हें सही निर्णय लेने के लिए प्रशिक्षित करना आवश्यक है। साथ ही अपने विद्यार्थियों एवं सहकर्मियों के प्रति भेदभाव न करने की भावना रखनी चाहिए।

संक्षिप्त विवरण :-

शोध की पूरी प्रक्रिया ऊपर से जितनी सरल लगती है, वास्तव में उतनी ही जटिल है। हर कदम पर वस्तुनिष्ठता-व्यक्तिपरकता, नैतिकता-अनैतिकता, वैज्ञानिकता-अवैज्ञानिकता, समाज के स्वार्थ-हित से जुड़े अनेक मुद्दों का सामना करना पड़ता है। आधुनिक युग में समाजशास्त्र सहित अन्य सामाजिक विज्ञानों में भी इन मुद्दों पर काफी ध्यान दिया जाने लगा है। समाजशास्त्र में, अनुसंधान में नैतिकता का संबंध अनुसंधान के लिए एक आचार संहिता को अपनाने से है।

शोध में गोपनीयता, विश्वसनीयता, सूचित सहमति आदि के संबंध में कुछ निर्णय लेना आवश्यक है ताकि शोध प्रतिभागियों के हितों को किसी भी तरह से नुकसान न पहुंचे। कई देशों में प्रत्येक विषय से संबंधित व्यावसायिक संगठनों द्वारा शोध में नैतिकता बनाए रखने के लिए दिशानिर्देश तैयार किए गए हैं। इससे न केवल शोध की गुणवत्ता बनी रहती है बल्कि अनैतिकता भी कम होती है।

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