स्थानीयकरण एवं सार्वभौमिकरण में अंतर क्या है?

स्थानीयकरण एवं सार्वभौमिकरण में अंतर :-

स्थानीयकरण एवं सार्वभौमिकरण में अंतर इस प्रकार हैं:-

  • सार्वभौमीकरण में परम्पराओं के प्रभाव क्षेत्र का विकास एवं विस्तार होता है, जबकि स्थानीयकरण में प्रभाव क्षेत्र संकुचित एवं संकीर्ण होता है।
  • सार्वभौमीकरण में स्थानीय मान्यताओं और कर्मकांडों का महत्व कम हो जाता है, जबकि स्थानीयकरण में स्थानीय मान्यताओं और कर्मकांडों की संख्या बढ़ जाती है।
  • सार्वभौमीकरण में, लघु परंपराएँ नई वृहत् परंपराओं में विकसित होती हैं, जबकि स्थानीयकरण में, वृहत् बड़ी परंपराएँ छोटे रूपों में विकसित होती हैं, जो नई नहीं हैं बल्कि एक वृहत् परंपरा का हिस्सा हैं जो पहले से मौजूद हैं।
  • सार्वभौमीकरण की प्रक्रिया व्यवस्थित है क्योंकि इससे संबंधित विश्वासों और कर्मकांडों की प्रकृति सभी क्षेत्रों में लगभग समान दिखाई देती है, जबकि स्थानीयकरण की प्रक्रिया अव्यवस्थित है क्योंकि प्रत्येक क्षेत्र की परंपराओं का रूप अलग है।
  • सार्वभौमीकरण में लघु परम्पराएँ ऊपर की ओर विकसित होती हैं अर्थात् वे वृहत् परम्पराएँ बनाती हैं, जबकि स्थानीयकरण में वृहत् परम्पराओं के तत्व नीचे की ओर बढ़ते हैं और स्थानीयकरण और लघु परम्पराओं का विकास करते हैं।
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इस ब्लॉग का उद्देश्य छात्रों को सरल शब्दों में और आसानी से अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराना है।

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