प्रस्तावना :-
वर्तमान समय में भी समाज कार्य के मूल्य को लेकर कार्यकर्ताओं में दुविधा है, इसलिए समाज कार्य के प्रत्येक सामाजिक कार्यकर्ता को इसके मूलभूत मूल्यों के प्रति जागरूक होने की आवश्यकता है। इन मूल्यों के मार्गदर्शन के माध्यम से ही एक सामाजिक कार्यकर्ता समाज कार्य के साधनों और विधियों का उपयोग करके आसानी से समाज को अपनी सेवाएं प्रदान कर सकता है। यह भी सच है कि समाज कार्य के मूल्यों के बारे में विचारकों में एकमत नहीं है, लेकिन अधिकांश मूल्य ऐसे हैं जिनसे लगभग सभी सहमत हैं।
- प्रस्तावना :-
- भूमिका :-
- समाज कार्य के मूल्य :-
- संक्षिप्त विवरण :-
- FAQ
भूमिका :-
समाज कार्य के मूल्यों पर चर्चा करने से पहले “मूल्य” के अर्थ को समझना आवश्यक है।
मूल्य का अर्थ :-
जब से समाज का निर्माण हुआ है, सामाजिक मूल्य उस समाज के सदस्यों के व्यवहार को नियंत्रित करते रहे हैं। ये मूल्य समाज के सदस्यों या सामाजिक समूहों के विभिन्न सामाजिक स्थितियों, कार्यों, वस्तुओं, अवधारणाओं आदि से संबंधित निर्णय हैं, जिससे प्रभावित होकर वह सदस्य या समूह एक विशेष तरीके से व्यवहार करता है।
मूल्य की परिभाषा :-
मूल्य को और भी स्पष्ट करने के लिए कुछ प्रमुख विद्वानों की परिभाषाओं का उल्लेख कर सकते हैं –
“मूल्य किसी व्यक्ति, समूह या समाज का किसी वस्तु, अवधारणा, सिद्धान्त, क्रिया या परिस्थिति के विषय में बौद्धिक संवेगात्मक निर्णय है।”
कौस
“मानवीय मूल्य या मूल्यों की एक पद्धति से मेरा अभिप्राय, उस आधार से है जिसके कारण एक व्यक्ति किसी एक मार्ग को किसी दूसरे मार्ग से अच्छा या बुरा, उचित अथवा अनुचित समझते हुये ग्रहण करता है, हम मानवीय मूल्यों के विषय में केवल व्यवहार द्वारा ही जान सकते हैं ।”
डौरोथी ली
समाज कार्य के मूल्य :-
एस० सी० कॉस ने समाज कार्य के निम्नलिखीत दस प्राथमिक मूल्यों का उल्लेख किया है –
- मनुष्य के महत्व और गरिमा को बनाए रखने के लिए,
- मानव प्रकृति में पूर्ण मानव विकास की क्षमता का विकास करना,
- मतभेदों के लिए सहनशील होना,
- मूलभूत मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि को स्वीकार करने के लिए,
- स्वाधीनता में विश्वास करना,
- आत्म निर्देशन,
- अनिर्णायक प्रवृत्ति,
- रचनात्मक सामाजिक सहयोग,
- कार्य का महत्त्व तथा रिक्त समय का रचनात्मक उपयोग, और
- मनुष्य और प्रकृति द्वारा उत्पन्न किए गए खतरों से अपने अस्तित्व की रक्षा।
हर्बर्ट बिस्नो ने समाज कार्य के मूल्यों को चार क्षेत्रों में विभाजित किया है –
व्यक्ति की प्रकृति के संदर्भ में :-
इस क्षेत्र में बिस्नों ने १० मूल्यों की व्याख्या की है –
- प्रत्येक व्यक्ति अपने अस्तित्व के कारण मूल्यवान है। मूल्य समाज कार्य दर्शन की आधारशिला है।
- मानवीय पीड़ा अवांछनीय है और इसको दूर किया जाना चाहिए अन्यथा इन्हें यथा सम्भव कम किया जाना चाहिए |
- सम्पूर्ण मानव व्यवहार जीव और उसके वातावरण की अन्तःक्रिया का परिणाम है।
- मनुष्य स्वभावत: विवेकपूर्ण कार्य नहीं करता |
- जन्म के समय मनुष्य अनैतिक या असामाजिक होता है।
- मनुष्य की आवश्यकताएं व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों होती है।
- मनुष्यों में पारस्परिक महत्वपूर्ण अन्तर होते हैं, जिन्हें स्वीकार कर मान लेना चाहिए।
- मानवीय अभिप्रेरणा जटिल और प्रायः अस्पष्ट होती है।
- व्यक्ति के प्रारंभिक विकास में पारिवारिक संबंधों का बुनियादी महत्व है।
- सीखने की प्रक्रिया में अनुभव एक आवश्यक पहल है।
समूहों व्यक्तियों एवं समूहों और व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों के संदर्भ में :-
दूसरे क्षेत्र में बिस्नो ने १० मूल्यों की व्याख्या की है –
- समाज कार्य हस्तक्षेप न करने की नीति और योग्यतम की उत्तरजीवित के सिद्धान्त को स्वीकार करता है।
- यह आवश्यक नहीं है कि धनी और शक्तिशाली व्यक्ति ही योग्य हो तथा निर्धन एवं दुर्बल व्यक्ति आयोग्य हो।
- समाजीकृत व्यक्तिवाद विषय व्यक्तिवाद की अपेक्षा बेहतर है।
- अपने सदस्यों के कल्याण की मुख्य जिम्मेदारी समुदाय की होती है।
- समाज के सभी वर्गों को सामाजिक सेवाओं और सामाजिक कार्यों के मूल्यों पर समान अधिकार हैं। समुदाय का यह दायित्व है कि वह बिना किसी भेदभाव के अपने सभी सदस्यों की कठिनाइयों को पूरी तरह से हल करे।
- स्वास्थ्य, आवास, पूर्ण रोजगार, शिक्षा एवं अन्य विभिन्न प्रकार की जनकल्याणकारी एवं सामाजिक बीमा योजनाओं से संबंधित कार्यक्रम को क्रियान्वित करने की जिम्मेदारी केन्द्र सरकार की होती है।
- जन सहायता के कार्यक्रमों को आवश्यकता की अवधारणा पर आधारित होना चाहिए ।
- सामुदायिक जीवन में संगठित श्रम का सक्रिय योगदान है।
- संपूर्ण समानता और आपसी सम्मान के आधार पर सभी प्रजातियों और जातीय समूहों के बीच पूर्ण सहयोग होना चाहिए।
- स्वतंत्रता और सुरक्षा में कोई पारस्परिक भिन्नता नहीं है।
समाज कार्य की प्रणालियों एवं कार्यों के संदर्भ में :-
तीसरे क्षेत्र में बिस्नो ने ६ मूल्यों की व्याख्या की है –
- समाज कार्य का द्विमुखी दृष्टिकोण है। एक ओर समाज कार्य व्यक्तियों का संस्थागत समाज के साथ समायोजन स्थापित करने में सहायता देता है तो दूसरी ओर वह इस संस्थागत समाज के आवश्यक क्षेत्रों में परिवर्तन लाने का भी प्रयास करता है।
- मानव व्यवहार के अध्ययन के लिए वैज्ञानिक पद्धति को आवश्यक उपकरण माना जाता है।
- सामान्यतया एक सक्षम व्यक्ति अपने हितों का सबसे अच्छा निर्णायक होता है। निर्णय लेने और अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं करना चाहिए।
- सामाजिक कार्यकर्ता व्यवहार में सुधार और सामाजिक विकास हेतु वातावरण के परिवर्तन एवं अन्तर्दृष्टि के विकास पर विश्वास करता है न कि आदेश निर्णय तथा प्रबोधन में ।
- सार्वजनिक और निजी दोनों ही संस्थाओं में समाज कार्य सेवाएं व्यावसायिक रूप से प्रशिक्षण प्राप्त व्यावसायिक कार्यकर्ताओं द्वारा ही प्रदान की जानी चाहिए ।
- समाज कार्य लोकतंत्र को एक प्रणाली के रूप में स्वीकार करता है।
सामाजिक कुसमायोजन और सामाजिक परिवर्तन के संदर्भ में :-
चौथे क्षेत्र ने बिस्नों ने ३ मूल्यों का उल्लेख किया है –
- हमारी संस्कृति में गम्भीर राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक कुसमायोजन है।
- क्रमिक विकास द्वारा किया गया सुधार हमारे समाज के लिए संभव और वांछनीय है।
- सामाजिक नियोजन आवश्यक है।
कोनोप्का ने प्राथमिक और द्वितीयक मूल्यों के बीच अंतर पर विचार किया है। उनके अनुसार प्राथमिक मूल्य दो हैं –
- प्रत्येक व्यक्ति को उचित सम्मान और अपनी क्षमताओं और योग्यताओं के समग्र विकास का अधिकार है।
- च्यक्तियों में परस्पर निर्भरता और एक दूसरे के प्रति उनकी योग्यतानुसार उत्तरदायित्व।
संक्षिप्त विवरण :-
समाज कार्य के मूल्य और कार्य प्रणाली है, जिसकी सहायता से यह व्यक्ति की विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्याओं को हल करने में अपनी भूमिकाओं को पूरा करता है। सामाजिक कार्यों में लोकतांत्रिक मूल्यों को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। सामाजिक कार्यकर्ता व्यक्ति की इच्छाओं को महत्व देता है और उसकी इच्छा के अनुसार उसकी समस्याओं का समाधान करता है।
FAQ
समाज कार्य के मूल्यों को स्पष्ट कीजिए?
एस० सी० कॉस ने समाज कार्य के निम्नलिखीत दस प्राथमिक मूल्यों का उल्लेख किया है –
- मनुष्य के महत्व और गरिमा को बनाए रखने के लिए,
- मानव प्रकृति में पूर्ण मानव विकास की क्षमता का विकास करना,
- मतभेदों के लिए सहनशील होना,
- मूलभूत मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि को स्वीकार करने के लिए,
- स्वाधीनता में विश्वास करना,
- आत्म निर्देशन,
- अनिर्णायक प्रवृत्ति,
- रचनात्मक सामाजिक सहयोग,
- कार्य का महत्त्व तथा रिक्त समय का रचनात्मक उपयोग, और
- मनुष्य और प्रकृति द्वारा उत्पन्न किए गए खतरों से अपने अस्तित्व की रक्षा।