आत्महत्या क्या है? What is suicide? आत्महत्या के प्रकार

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  • Post last modified:जुलाई 17, 2023

प्रस्तावना :-

सामान्यतः आत्महत्या व्यक्ति का सचेतन, निराशापूर्ण एवं अवसादग्रस्त कृत्य है जिसमें कर्ता को पता होता है कि इस कृत्य के बाद उसकी मृत्यु हो जायेगी। आत्महत्या सभी समाजों में पाई जाती है और इसके अपने-अपने कारण होते हैं।

दुर्खीम के अध्ययन से पहले आत्महत्या को मनोविज्ञान का विषय माना जाता था, व्यक्ति का मनोवृत्ति, उसकी सोचने की क्षमता, दबाव सहन करने की उसकी सीमाएँ, ऐसे कई मनोवैज्ञानिक पहलू थे जिनसे समाज में आत्महत्या का अध्ययन किया जाता है।

अपनी पुस्तक द सुसाइड में उन्होंने चार प्रकार की आत्महत्या का वर्णन किया है। दुर्खीम से पहले आत्महत्या को व्यक्तिगत माना जाता था, लेकिन दुर्खीम पहले समाजशास्त्री थे जिन्होंने आत्महत्या के लिए समाज को जिम्मेदार ठहराया।

आत्महत्या की अवधारणा :-

सामान्यतः स्वयं की हत्या करने के कार्य को आत्महत्या कहा जाता है। समाजशास्त्र में इस अवधारणा को स्पष्ट करने का श्रेय ईमाइल दुर्खीम को जाता है। दुर्खीम ने अपनी पुस्तक (द सुसाइड 1897) में बताया है कि आत्महत्या एक सामाजिक तथ्य है। अत: कारणों को सामाजिक तथ्यों में खोजा जाना चाहिए।

दुर्खीम के अनुसार, एक मृत्यु जो आत्म-विनाश के लिए जानबूझकर की गई कार्रवाई का परिणाम है। जिसमें इसके भयानक परिणाम का पहले से ही ज्ञान हो, वह आत्महत्या की श्रेणी में आता है।

आत्महत्या का अर्थ :-

आत्महत्या का सीधा मतलब यह है कि व्यक्ति ने समाज के दबाव को स्वीकार नहीं किया और आत्महत्या कर ली। इस प्रकार, आत्महत्या व्यक्ति और समाज के बीच संबंधों में आई दरार की अभिव्यक्ति है।

इसीलिए दुर्खीम इसे व्यक्तिगत घटना नहीं बल्कि समाज द्वारा व्यक्ति को दी गई मृत्यु मानते हैं। इस प्रकार, दुर्खीम ने स्थापित किया कि आत्महत्या एक सामाजिक तथ्य है और इसे करना व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर नहीं है। यह निश्चित रूप से समाज का दबाव है जो व्यक्ति को अपने शरीर को नष्ट करने के लिए मजबूर करता है।

आत्महत्या की परिभाषा :-

“आत्महत्या वह होती है जिसमें कोई व्यक्ति सकारात्मक या नकारात्मक रूप से ऐसा करता है जिसके परिणाम प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप सेवह जानता है, उसके शरीर के नष्ट होने में है।”

दुर्खीम

आत्महत्या के प्रकार :-

दुर्खीम ने अपने समाजशास्त्रीय अध्ययन में आत्महत्या के प्रकारों का वर्णन किया है और आंकड़ों के आधार पर उन्होंने आत्महत्या के प्रकार बताए हैं:

अहंवादी आत्महत्या (egoistic suicide) :-

जिन लोगों की व्यक्तिगत चेतना सामाजिक चेतना से मेल नहीं खाती और जो स्वयं को समाज से ऊंचा मानते हैं, वे अक्सर अहंकारवश आत्महत्या कर लेते हैं। ऐसे लोग आमतौर पर स्वार्थी स्वभाव के होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनका जीवन अपेक्षाकृत एकाकी और तिरस्कृत हो जाता है। इस बात का एहसास होते ही उन्हें समाज में रहते हुए भी तिरस्कृत किया जाता है, वे लोग आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं। दुर्खीम के अनुसार अहंवादी आत्महत्या के चार मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:

अहंवादी आत्महत्या का अर्थ है कि व्यक्ति का ध्यान स्वयं पर केंद्रित हो जाता है, वह समाज से अलग-थलग हो जाता है। वह समाज से अलग कर हो जाता है, वह सामाजिक जीवन में शामिल नहीं हो जाता है। वह अपने हितों की पूर्ति तक ही समाज से सम्बन्ध स्थापित करता है।

 ऐसे में वह दूसरों की नजरों में अपना महत्व खो देता है। वह धीरे-धीरे समाज से इतना अलग-थलग हो जाता है कि अकेला हो जाता है। अवसादग्रस्त माहौल उसे आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करता है क्योंकि उसका अलगाव प्राथमिक समूहों से हो जाता है।

परार्थवादी आत्महत्या (altruistic suicide) :-

परार्थ वादी आत्महत्या को कभी-कभी सुखपरक आत्महत्या भी कहा जाता है। दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जो समुदाय की खुशी के लिए खुद को बलिदान कर देते हैं, यह परार्थवादी आत्महत्या है।

दुर्खीम का कहना है कि इन आत्महत्याओं के पीछे बहुत बड़ा मकसद अपने धर्म का पालन करना है। और अगर कोई इस धर्म का पालन नहीं करता है तो समाज उसे किसी न किसी रूप में सजा जरूर देता है। अत: ऐसी आत्महत्या समाज द्वारा थोपी गई आत्महत्या है।

अत: यह स्पष्ट है कि इस प्रकार की आत्महत्या केवल स्वार्थ के लिए नहीं, कभी-कभी परोपकार के लिए भी की जाती है। यह एक परार्थवादी आत्महत्या है। उदाहरण के लिए, युद्ध में अपने राष्ट्र का बलिदान देना या शहादत देना परमार्थवादी आत्महत्या की श्रेणी में आता है।

अस्वाभाविक या असामान्य आत्महत्या :-

असामान्य आत्महत्या वह है जो किसी व्यक्ति के जीवन में अचानक परिवर्तन के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली अप्राकृतिक परिस्थितियों के कारण होती है। इस प्रकार की आत्महत्या तब होती है जब व्यक्ति के जीवन की स्थिति में कोई अस्वाभाविक परिवर्तन होता है और व्यक्ति को उसके अनुरूप ढलना पड़ता है।

यदि व्यक्ति इसे अपनाने में विफल रहता है, तो वह अपने द्वारा अनुभव किए गए मानसिक तनाव या अशांति से मुक्त होने के लिए आत्महत्या कर लेता है। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति का अचानक दिवालिया हो जाना, भारी कर्ज़, अत्यधिक दुःख या ख़ुशी की स्थिति में आत्महत्या करना अप्राकृतिक आत्महत्या का उदाहरण है।

मानक शून्यता या प्रतिमानहीनता मूलक आत्महत्या (anomie suicide) :-

सामाजिक जीवन में अत्यधिक विभेदीकरण और विशिष्टीकरण से अपेक्षित सामाजिक चेतना और प्रकार्यात्मक निर्भरता की क्षमता का अभाव होता है। इन परिस्थितियों में व्यक्ति अलग-थलग पड़ जाता है। दुर्खीम इसे प्रतिमानहीनता या मानकशून्यता की स्थिति कहते हैं। इसलिए, सामाजिक अलगाव और समूह संबंधों की कमी के कारण की गई आत्महत्या प्रतिमानहीनता मूलक आत्महत्या है।

दुर्खीम का कहना है कि आधुनिक समाज में मानक शून्यता, आत्महत्या में जीवित रहने की स्थितियाँ बदतर होती जा रही हैं। ऐसे समाज में सामूहिक अस्तित्व रीति-रिवाजों से नियंत्रित नहीं होता, व्यक्ति दिन-रात भागदौड़ में लगा रहता है और उसकी महत्वाकांक्षाएं एवं संतुष्टि इसी दौड़ में खो जाती है। व्यक्ति बेचैन हो जाता है और अंततः आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाता है।

FAQ

आत्महत्या का अर्थ बताइए?

आत्महत्या के प्रकार लिखिए?

अहंवादी आत्महत्या क्या है?

परार्थवादी आत्महत्या क्या है?

मानक शून्यतावादी आत्महत्या क्या है?

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