सभ्यता और संस्कृति के बीच के अंतर :-
क्योंकि भौतिक संस्कृति को सभ्यता कहा जाता है, सभ्यता और संस्कृति के बीच के अंतर को समझना भी आवश्यक है। सभ्यता और संस्कृति में पाये जाने वाले अन्तर को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
- सभ्यता हमेशा आगे बढ़ती है, जबकि संस्कृति नहीं।
- सभ्यता बिना प्रयास के प्रसारित होती है, जबकि संस्कृति नहीं।
- सभ्यता का रूप बाह्य है, जबकि संस्कृति का रूप आंतरिक है।
- संस्कृति का संबंध आत्मा से है और सभ्यता का संबंध शरीर से है।
- सभ्यता में फल प्राप्ति का उद्देश्य होता है, पर संस्कृति में क्रिया ही साध्य होता है।
- सभ्यता को आसानी से समझा जा सकता है, लेकिन संस्कृति को हृदयंगम करना कठिन है।
- गिलिन और गिलिन के विचार में, “सभ्यता संस्कृति का एक अधिक जटिल और विकसित रूप है।”
- यदि आप कुशलता के आधार पर सभ्यता को मापना चाहते हैं, तो इसे मापा जा सकता है, लेकिन संस्कृति को नहीं।
- सभ्यता को पूरी तरह से हस्तान्तरण किया जा सकता है, लेकिन संस्कृति को पूरी तरह हस्तान्तरण नहीं किया जा सकता।
- सभ्यता और संस्कृति के बीच के अंतर को समझाते हुए, ए. डब्ल्यू. ग्रीन लिखते हैं कि “एक संस्कृति तभी सभ्यता बन जाती है जब उसमें लिखित भाषा, विज्ञान, दर्शन, श्रम का अत्यधिक विशेषीकरण वाला श्रम- विभाजन, एक जटिल विधि और राजनीतिक पद्धति हो।”
- मैकाइवर और पेज के अनुसार, “संस्कृति केवल समान प्रवृत्ति वाले में ही संचारित रहती है।” कलाकार की योग्यता के बिना, कोई भी कला की गुणवत्ता का परीक्षण नहीं कर सकता है, न ही कोई संगीतज्ञ के गुणों के बिना संगीत का आनंद ले सकता है। सभ्यता आमतौर पर ऐसी मांग की मांग नहीं करती है। हम उसको उत्पन्न करने वाली सामर्थ्य में भाग लिए बिना इसके उत्पादों का आनंद ले सकते हैं। ”