ध्वनि प्रदूषण प्रस्तावना :-
मानव के आधुनिक जीवन ने एक नए प्रकार का प्रदूषण उत्पन्न किया है जिसे ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। भीड़-भाड़ वाले नगर, गाँव, परिवहन के यांत्रिक साधन, मनोरंजन के नए साधन, उनका निरंतर शोर-शराबा पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हैं। वास्तव में शोर जीवन की एक सामान्य प्रक्रिया है और यह मनुष्य के भौतिक पर्यावरण के लिए खतरे का संकेत है।
ध्वनि प्रदूषण का अर्थ :-
शोर एक अवांछित ध्वनि है। सीमा से अधिक ध्वनि कानों को अच्छी नहीं लगती और मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है, इसे ‘ध्वनि प्रदूषण’ कहते हैं। कोई भी ध्वनि मंद होने पर मधुर और तीव्र होने पर शोर लगती है। ऐसी प्रत्येक ध्वनि को शोर माना जाता है जब वह मानसिक गतिविधियों को बाधित करने लगती है।
आमतौर पर 90 डेसिबल से अधिक ध्वनि प्रदूषित ध्वनि होती है। कारखानों के बढ़ते विकास, यातायात के अनियमित साधनों, बढ़ती मानवीय गतिविधियों ने ध्वनि प्रदूषण को जन्म दिया है, जिससे मानसिक गतिविधियों में व्यवधान उत्पन्न हुआ है।
ध्वनि प्रदूषण की परिभाषा :-
‘’शोर एक वह ध्वनि है जो कि अवांछनीय है और वायुमंडलीय प्रदूषण का एक साधारण प्रकार है। ‘’
मेक्सवेल
ध्वनि प्रदूषण के कारण :-
ध्वनि प्रदूषण निम्नलिखित स्रोतों से उत्पन्न होता है:-
प्राकृतिक स्रोत –
प्राकृतिक स्रोत द्वारा उत्पन्न शोर घातक नहीं है क्योंकि इसकी प्रकृति अस्थायी है और प्रभाव क्षेत्र व्यापक है। इसमें बिजली चमकना, बादलों की तेज हवाएं, आंधी, तूफान आदि शामिल हैं।
मानव स्रोत –
मानव संसाधन में उद्योग, विमान, मोटर वाहन, ट्रेन, लाउडस्पीकर, रेडियो, टेलीविजन, चुनाव अभियान, संगीत के रंगीन कार्यक्रमों से उत्पन्न ध्वनि शामिल है। दुनिया के विकसित देशों की तरह भारत में भी महानगरों में तेजी से बढ़ती आबादी के कारण परिवहन मार्गों पर वाहनों का दबाव बढ़ गया है और कारखानों को केंद्रीकृत किया जा रहा है।
ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव :-
ध्वनि प्रदूषण के निम्नलिखित प्रभाव देखे जा सकते हैं-
- सामान्य से अधिक ध्वनि बातचीत में बाधा डालती है।
- ध्वनि प्रदूषण व्यक्ति की कार्यक्षमता और एकाग्रता को प्रभावित करता है।
- ध्वनि प्रदूषण के कारण चिड़चिड़ापन, थकान, सिर दर्द जैसी समस्या उत्पन्न हो जाती है।
- अस्पतालों और शैक्षणिक संस्थानों के पास ध्वनि प्रदूषण के कारण मरीजों और छात्रों को परेशानी होती है।
- जिन उद्योगों में मशीनें अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण करती हैं, वहाँ श्रमिकों के बधिर होने की संभावना होती है।
- ध्वनि प्रदूषण से हृदय गति का बढ़ना, रक्त वाहिकाओं का सिकुड़ना, रक्तचाप में बदलाव और मांसपेशियों में तनाव जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
ध्वनि प्रदूषण के उपाय :-
ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए जनचेतना जगाने के साथ-साथ निम्नलिखित सुझावों को अपनाना चाहिए-
- उद्योगों में मशीनों का उचित रख-रखाव किया जाना चाहिए।
- यातायात नियमों का सुचारू रूप से पालन किया जाए।
- वाहनों के इंजन को सही स्थिति में रखकर ध्वनि प्रदूषण को कम किया जाना चाहिए।
- तेज आवाज करने वाले पटाखों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- उच्च ध्वनि वाले उद्योगों में श्रमिकों को ईयरप्लग उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
- तेज ध्वनि उत्पन्न करने वाले उपकरणों के स्थान पर कम ध्वनि वाले उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए।
- शोर की सीमा तय की जानी चाहिए और रिहायशी इलाकों में इसका सख्ती से पालन किया जाना चाहिए।
- अस्पतालों और शैक्षणिक संस्थानों के आसपास शोर सीमा निर्धारित कर हॉर्न और लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
- ध्वनि प्रदूषण यंत्रों (लाउडस्पीकरों) आदि का प्रयोग सीमित एवं कम ध्वनि के साथ किया जाना चाहिए। इसके लिए आमजन में जागरूकता पैदा की जाए।
FAQ
ध्वनि प्रदूषण कितने डेसीबल से माना जाता है?
90 डेसिबल से अधिक ध्वनि प्रदूषित ध्वनि होती है।
ध्वनि प्रदूषण का दुष्परिणाम क्या है?
- अस्पतालों और शैक्षणिक संस्थानों के पास ध्वनि प्रदूषण के कारण मरीजों और छात्रों को परेशानी होती है।
- जिन उद्योगों में मशीनें अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण करती हैं, वहाँ श्रमिकों के बधिर होने की संभावना होती है।
ध्वनि प्रदूषण रोकने के उपाय लिखिए?
- तेज ध्वनि उत्पन्न करने वाले उपकरणों के स्थान पर कम ध्वनि वाले उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए।
- शोर की सीमा तय की जानी चाहिए और रिहायशी इलाकों में इसका सख्ती से पालन किया जाना चाहिए।
ध्वनि प्रदूषण किसे कहते हैं?
शोर एक अवांछित ध्वनि है। सीमा से अधिक ध्वनि कानों को अच्छी नहीं लगती और मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है, इसे ‘ध्वनि प्रदूषण’ कहते हैं।