चिंता का अर्थ और परिभाषा, चिंता के लक्षण (chinta ka arth)

प्रस्तावना :-

चिंता अपने आप में एक मानसिक विकार है जो व्यक्ति को उसके विचारों में उलझाकर उसे खोखला कर देता है। चिंता आम तौर पर अज्ञात, अमूर्त और व्यक्तिगत परिस्थितियों से संबंधित होती है, जो अक्सर ऐसी स्थितियों में उत्पन्न होती है जहाँ कोई वांछित वस्तु प्राप्त नहीं होती है, या इसे प्राप्त करने के मार्ग में बाधाएँ आती हैं।

चिंता की प्रकृति नकारात्मक होती है; यह किसी घटना के घटित होने से पहले ही हानिकारक परिणामों के विचार सामने लाती है, जो पोषित होने पर और भी तीव्र हो जाती है। चिंता के मनोवैज्ञानिक उथल-पुथल में, व्यक्ति के सामने प्रेरक कारकों की कमी होती है, जिससे भय और नकारात्मक कल्पनाएँ उभरती हैं, जो प्रगति के मार्ग में बाधा डालती हैं।

चिंता का अर्थ :-

चिंता वास्तव में एक दर्दनाक भावनात्मक स्थिति है। यह व्यक्ति को एक तरह के अज्ञात भय से ग्रस्त कर देती है, बेचैन और दुखी रहती है। चिंता वास्तव में एक संकेत है जो व्यक्ति को भविष्य में उत्पन्न होने वाली किसी भयानक समस्या के बारे में चेतावनी देता है।

हममें से प्रत्येक व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में अलग-अलग तरीकों से चिंता का अनुभव करता है। कुछ लोग छोटी सी समस्या को भी बहुत तनावपूर्ण तरीके से लेते हैं और अत्यधिक चिंतित हो जाते हैं।

जबकि कुछ लोग जीवन में अत्यधिक कठिन परिस्थितियों को भी आसानी से लेते हैं और समस्याओं को शांति और समझदारी से हल करते हैं। वास्तव में, चिंतित होना व्यक्ति के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है।

चिंता से न केवल हमारी दैनिक जीवन की गतिविधियाँ प्रभावित होती हैं, बल्कि हमारी कार्यक्षमता, बुद्धिमत्ता, रचनात्मकता आदि पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह कहा जा सकता है कि अत्यधिक चिंता व्यक्ति के व्यक्तित्व को गंभीर रूप से प्रभावित करती है, जिससे वह कोई भी कार्य ठीक से करने में असमर्थ हो जाता है।

चिंता की परिभाषा :-

चिंता को कई मनोवैज्ञानिकों ने अलग-अलग तरीकों से परिभाषित किया है। यहाँ मनोवैज्ञानिकों द्वारा दी गई चिंता से संबंधित कुछ परिभाषाएँ दी गई हैं।

“चिंता उद्वेलन की वह अवस्था है जो भय से बचने की इच्छा से उत्पन्न होती है।”

स्पीलबर्ग

“चिंता असुरक्षा की भावना और दमित इच्छाओं के कारण अचेतन स्तर पर अभिव्यक्त न कर पाने के कारण उत्पन्न होती है।”

कोलमैन

“प्रसन्नता अनुभूति के लिए संभावित खतरे के कारण उत्पन्न होने वाली अति सतर्कता की स्थिति ही चिंता कहलाती है।”

आरफॅफ

“चिंता एक प्रकार की भावना है जो किसी व्यक्ति में तब उत्पन्न होती है जब उसे लगता है कि वह एक शत्रुतापूर्ण संसार में अकेला और असहाय है।”

होर्नी

“चिंता एक भावनात्मक और दुखद अवस्था है जो व्यक्ति के अहं को आवंटित खतरों के प्रति सतर्क करती है ताकि व्यक्ति उस वातावरण के साथ समायोजन कर सके।”

फ्रायड

चिंता के लक्षण :-

चिंता के लक्षणों पर निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत चर्चा की जा सकती है –

चिंता के व्यावहारिक लक्षण –

  • अंतर्मुखी होना।
  • खुद को दूसरों से छिपाने की कोशिश करना।
  • नकारात्मक सोच के कारण निर्णय लेने में कठिनाई।

चिंता के संज्ञानात्मक लक्षण –

  • नकारात्मक सोच।
  • भविष्य के बारे में परेशान करने वाली कल्पनाओं में लिप्त रहना।

चिंता के मानसिक लक्षण –

चिंता के मानसिक लक्षणों में छोटी-छोटी बातों पर परेशान होना, मानसिक अस्थिरता, विचारों में टकराव की स्थिति, निर्णय लेने की क्षमता की कमी, हीनता की भावना, मृत्यु का भय, भविष्य को अंधकारमय समझना, असुरक्षा की भावना, असहिष्णुता, जल्दी गुस्सा आना, चिड़चिड़ापन और अन्य शामिल हैं।

रात में इन लक्षणों की तीव्रता बढ़ जाती है, जिससे नींद में खलल पड़ता है और रोगी गहरी नींद नहीं ले पाता। चिंता से ग्रस्त रोगी किसी कार्य को करने के बारे में सोचते हैं, उसे पूरा करने के लिए आवश्यक संसाधन जुटाने की चिंता करते हैं।

कार्य निष्पादन के रास्ते में आने वाली बाधाओं के बारे में सोचना उनका स्वभाव बन जाता है। ऐसी स्थिति में वे रात की नींद और दिन का चैन खो देते हैं। उन्हें तरह-तरह के डर घेर लेते हैं। ऐसी अशांत मनःस्थिति में उन्हें सफलता की जगह असफलता ही मिलती है।

चिंता के शारीरिक लक्षण –

चिंता के शारीरिक लक्षणों में शुष्क मुँह, सांस लेने में कठिनाई या रुक-रुक कर लंबी सांस लेना, हाथों का कांपना, हथेलियों और तलवों का ठंडा होना, सिरदर्द, आंखों के चारों ओर काले घेरे, भौंहें कसना, पुतलियाँ फैलना, शरीर की सभी मांसपेशियों में अकड़न, अनिद्रा, थकान, कमजोरी, चक्कर आना, नाड़ी की गति में वृद्धि, असंतुलित पेट की आग, बार-बार पेशाब या शौच जाने की इच्छा और चेहरे पर डर या घबराहट का भाव शामिल हैं।

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि चिंता न केवल हमारे शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है, बल्कि भावनाओं, विचारों और व्यवहारों पर भी अत्यधिक नकारात्मक प्रभाव डालती है।

चिंता के प्रकार :-

मनोवैज्ञानिक फ्रायड ने चिंता के तीन मुख्य प्रकारों की पहचान की –

  • वस्तुनिष्ठ चिंता – जब किसी व्यक्ति का अहं बाहरी भौतिक दुनिया या सामाजिक वातावरण के साथ समायोजन स्थापित करने में कमज़ोर हो जाता है, तो वस्तुनिष्ठ चिंताएँ पैदा होती हैं। उदाहरण के लिए, प्राकृतिक आपदाओं, करीबी रिश्तेदारों की घातक बीमारियों, प्रतिष्ठा को नुकसान आदि से उत्पन्न चिंताएँ।
  • नैतिक चिंता – नैतिक चिंताएँ किसी व्यक्ति की अनैतिक इच्छाओं की अभिव्यक्ति के संभावित नकारात्मक परिणामों या गंभीर दंड की संभावना से उत्पन्न होती हैं।
  • तंत्रिकातापी या मनस्तापी चिंता – किसी व्यक्ति के अचेतन संघर्षों के कारण होने वाली चिंता तंत्रिकातापी चिंता को जन्म देती है।

डॉ. गोविंद प्रसाद उपाध्याय ने दो प्रकार की चिंताओं का वर्णन किया है –

  • स्वाभाविक चिंता – स्वाभाविक चिंता का कारण अनिवार्य रूप से पर्यावरण में मौजूद कोई वस्तु (स्थूल) या परिस्थिति होती है जिसका मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जब कारण को हटा दिया जाता है, तो चिंता भी समाप्त हो जाती है।
  • अस्वाभाविक चिंता – अस्वाभाविक चिंता का कारण रोगी को पता नहीं होता। उनकी चिंता का कोई सीधा स्रोत नहीं होता है, और उनके दुख और संकट का कारण अस्पष्ट रहता है। अस्वाभाविक चिंता चिंता की एक असामान्य और विकृत स्थिति है जो व्यक्ति की नकारात्मक कल्पना और अवचेतना से उत्पन्न होती है।

चिंता के कारण :-

चिंता के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं –

असुरक्षा की भावना –

चिंतित व्यक्ति सामान्य परिस्थितियों में भी असुरक्षित महसूस करता है तथा थोड़ी सी भी प्रतिकूल परिस्थिति उत्पन्न होने पर घबरा जाना उसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति बन जाती है।

जीवन की जटिल समस्याएँ –

चिंता की स्थिति में व्यक्ति जीवन की जटिल समस्याओं का सामना करने से घबरा जाता है और उनसे बचने की कोशिश करता है।

अत्यधिक मादक पदार्थों का उपयोग –

कुछ लोग मानसिक परेशानी को कम करने के लिए नशीली दवाओं का सेवन करते हैं, लेकिन समय के साथ, मादक पदार्थों का अत्यधिक उपयोग भी उन्हें राहत देने में विफल हो जाता है, जिससे चिंता के स्पष्ट लक्षण दिखाई देने लगते हैं।

उत्साह विहीन जीवन –

जीवन में लगातार असफलताओं और आंतरिक संघर्षों के कारण कुछ लोग उदास हो जाते हैं और अपना उत्साह खो देते हैं।

कष्टदायक परिस्थिति –

मानव जीवन चुनौतियों से भरा हुआ है। जीवन के विभिन्न चरणों में, ऐसी परेशान करने वाली परिस्थितियाँ होती हैं जो व्यक्तियों में चिंता और मानसिक पीड़ा का कारण बनती हैं।

इन परेशान करने वाली परिस्थितियों में प्रियजनों की असामयिक और दुखद मृत्यु, विधवा होना, निराशाजनक वैवाहिक जीवन, तलाक, दीर्घकालिक शारीरिक बीमारी और प्राकृतिक आपदाओं के कारण धन और संपत्ति का नुकसान शामिल है।

इन प्रतिकूल प्रभावों के परिणामस्वरूप, जीवन अंधकारमय और निराशाजनक हो जाता है, और व्यक्ति में स्थायी चिंता जड़ जमा लेती है।

उच्च आकांक्षाएँ –

इन कष्टदायक परिस्थितियों के अलावा, उच्च आकांक्षाएँ भी व्यक्ति के लिए चिंता का कारण बनती हैं, क्योंकि उच्च आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए निरंतर सतर्कता की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया में व्यक्ति की मानसिक ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा खर्च होता है।

ऐसी स्थिति में व्यक्ति के लिए सामान्य घटनाओं से निपटना मुश्किल हो जाता है और जब उच्च आकांक्षाओं की पूर्ति असंभव लगने लगती है, तो चिंता जीवन का एक हिस्सा बन जाती है।

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इस ब्लॉग का उद्देश्य छात्रों को सरल शब्दों में और आसानी से अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराना है।

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