घरेलू हिंसा से बचने के उपाय :-
घरेलू हिंसा से बचने के उपाय निम्नलिखित है –
- मानसिकता में परिवर्तन
- सामाजिक जागरूकता
- लेखन के माध्यम से
- आत्मनिर्भरता
- समुदाय आधारित रणनीति
- जिला सहायता समिति
मानसिकता में परिवर्तन –
घरेलू हिंसा से निपटने के लिए महिलाओं को अपनी मानसिकता बदलनी होगी। जब तक वह परिवार और समाज की जागरूक नागरिक बनने की कोशिश नहीं करती, अपने ऊपर होने वाली हिंसा और उत्पीड़न के खिलाफ नहीं उठती, तब तक वह घरेलू हिंसा से खुद को नहीं बचा सकती। वैसे भी महिला को यह समझना होगा कि मनुष्य के रूप में वह भी पहले समाज की एक आवश्यक इकाई है। उसे स्वयं में यह भाव भी जगाना होगा कि वह केवल महिला ही नहीं बल्कि इस देश की सम्मानित नागरिक भी है।
सामाजिक जागरूकता –
घरेलू हिंसा को रोकने के लिए सामाजिक जागरूकता जरूरी | इसके लिए जहां भी स्कूल-कॉलेज हैं, वहां घरेलू हिंसा, घर में भेदभाव आदि विषयों पर विद्यार्थियों से व्यवस्थित संवाद होना चाहिए। इस स्तर पर लड़के-लड़कियों की सोच बदलने का प्रयास होना चाहिए। स्कूलों और कॉलेजों में काउंसलिंग सेल होने चाहिए ताकि उनकी लड़कियों को जिस तरह की घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ रहा है, उसका समाधान खोजा जा सके। अभी तक लड़कों के साथ घरेलू हिंसा या बाल शोषण पर कोई बात नहीं करता, जबकि सर्वे में सामने आया है कि बच्चे भी यौन दुराचार के शिकार हुए हैं. इसलिए विद्यालयों में परामर्श प्रकोष्ठ होने चाहिए।
लेखन के माध्यम से –
महिलाओं के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए जन जागरूकता लेख प्रकाशित किए जाने चाहिए। इसके साथ ही महिलाओं के लिए बने कानूनों को समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में भी प्रकाशित किया जाना चाहिए ताकि उन्हें पढ़कर महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागृत हों और जरूरत पड़ने पर कानून का सहारा ले सकें। विशेष प्रकोष्ठ की क्षमता बढ़ाने के लिए अनुसंधान और आलेखन की आंतरिक प्रणाली स्थापित करनी होगी। ताकि महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा से निपटा जा सके और महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा को और करीब से समझा जा सके।
आत्मनिर्भरता –
लड़कियों को हर हाल में आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रशिक्षित करना जरूरी है। महिलाओं की आर्थिक क्षमताओं को विकसित करने की जरूरत है। उत्पादन के साधनों और संपत्ति पर उनका अधिकार होना चाहिए। अगर महिला आत्मनिर्भर है और अपना खर्च खुद उठाने की स्थिति में भी है तो उसे घरेलू हिंसा का शिकार होने से बचाया जा सकता है।
समुदाय आधारित रणनीति –
घरेलू हिंसा को सामुदायिक स्तर पर सुलझाया जाना चाहिए और मामला बहुत गंभीर होने पर अदालत या पुलिस के पास जाना चाहिए। जहां महिलाओं के समूह या संगठन बहुत मजबूत हैं, वहीं समुदाय की भूमिका भी उभर रही है। गांव में महिलाओं की बैठक बुलाकर ऐसी समस्याओं का समाधान निकाला जा रहा है। समुदाय को भी वैधानिक अधिकार दिए जाने चाहिए। पंचायतों को भी ऐसे अधिकार दिए जाने चाहिए।
जिला सहायता समिति –
- जिला सहायता समितियों का मूल्यांकन किया जाना चाहिए। इन समितियों में पुलिस अधिकारी और महिलाओं के लिए काम करने वाले सभी संगठन होने चाहिए। महिला आयोग को समय-समय पर इनकी समीक्षा करनी चाहिए।
- पुलिस की भूमिका को बहुत संवेदनशील बनाने की जरूरत है। उनके प्रशिक्षण में घरेलू हिंसा और महिला संवेदनशीलता को विशेष रूप से शामिल किया जाए।
- हर माह हर थाने में ‘समस्या समाधान शिविर’ लगें। इसका व्यापक प्रचार-प्रसार होना चाहिए। उसका दिन और समय निश्चित हो और समाचार पत्र/ रेडियो/टेलीविजन पर प्रचार हो।
- थाना स्तर पर काउंसलर होने चाहिए। खासकर घरेलू हिंसा के मामलों में जब पुलिस समझौता कर ले तो प्रशिक्षित काउंसलर की मदद लेनी चाहिए।
- सरकार को आयोग से संदेश प्राप्त करना चाहिए। संदेश जाना चाहिए कि वह शक्तिशाली है। वह अपने ही फैसलों को लागू नहीं कर पाए, ऐसी स्थिति बदलनी चाहिए।
(अन्य सुझाव) घरेलू हिंसा को रोकने के उपाय :-
१. ऐसी हिंसा पर जगह-जगह जन अदालतें लगानी चाहिए।
२. घरेलू हिंसा पर न्यायिक निर्णयों को सरल भाषा में व्यापक रूप से प्रचारित करने की आवश्यकता है।
३. लघु प्रवास गृहों की जगह होनी चाहिए। इसके साथ मनोवैज्ञानिक और मनोरोग संबंधी सेवाएं जुड़ी होनी चाहिए।
४. पारिवारिक हिंसा के मामलों में समय पर हस्तक्षेप, रोकथाम और मध्यस्थता करने वाली सरकारी संरचनाएँ और प्रणालियाँ बनाएँ।
५. घर का काम सबका काम होना चाहिए। लड़के और लड़की में कोई फर्क नहीं होना चाहिए ताकि बाद में यही लड़का पति बनकर गुस्सा न करने लगे।
६. महिला आंदोलन और विशेष प्रकोष्ठ को एक साथ आकर अपराधों का आसान पंजीकरण सुनिश्चित करने और इन मामलों का दीवानी समाधान खोजने के लिए दबाव बनाना चाहिए। इसका अर्थ होगा कानूनी क्षेत्र को प्रभावित करना, कानून और व्यवस्था को अधिक प्रभावी बनाना और वकीलों, न्यायाधीशों और अन्य न्यायिक कर्मचारियों को संवेदनशील बनाना।
७. महिलाओं के खिलाफ हिंसा और इसे रोकने के लिए बने कानूनों पर गहन और बहु-विषयक शोध और प्रलेखन की आवश्यकता है। सभी हितधारकों पुलिस, न्यायपालिका, महिला संगठनों और शैक्षणिक अध्ययन संस्थानों को शामिल करते हुए समन्वित अनुसंधान परियोजनाओं को बनाने के लिए संयुक्त प्रयास होने चाहिए।
८ महिलाओं के खिलाफ अपराधों की कुशल जांच के लिए क्षमता निर्माण की आवश्यकता है ताकि संवेदनशील तरीके से मामलों की जांच की जा सके। धारा-498-ए के तहत पंजीकृत मामलों के लिए, इस तथ्य को स्थापित करने के लिए एक सुनिश्चित चरणबद्ध प्रक्रिया यानी ‘प्रोटोकॉल’ या ‘ड्रिल’ होनी चाहिए कि महिला एक नागरिक के रूप में परिवार में हिंसा का सामना कर रही है।
९. आपराधिक न्याय प्रणाली को क्षमतावान बनाना आवश्यक है ताकि वह मानसिक हिंसा को भी वैध साक्ष्य के रूप में माने और मानसिक और भावनात्मक उत्पीड़न के मामलों में सार्थक सुविधाएं प्रदान करे जो वर्तमान स्थिति को संबोधित करने में मदद करे। मानसिक हिंसा को शारीरिक हिंसा के समान स्तर का अपराध माना जाना चाहिए।
१०. थाने में हर महीने एक दिन ऐसा होना चाहिए जब किसी को भी किसी भी तरह की सूचना मिल सके।
संक्षिप्त विवरण :-
घरेलू हिंसा को नियंत्रित करने के लिए हमें मानसिकता बदलनी होगी, सामाजिक जागरुकता और आत्मनिर्भरता लाने के लिए लेखन आंदोलन आदि के माध्यम से समुदाय आधारित रणनीति बनानी होगी।
FAQ
घरेलू हिंसा को नियंत्रित करने के लिए हमें मानसिकता बदलनी होगी, सामाजिक जागरुकता और आत्मनिर्भरता लाने के लिए लेखन आंदोलन आदि के माध्यम से समुदाय आधारित रणनीति बनानी होगी।