वृहत् परंपरा और लघु परंपरा में अंतर स्पष्ट कीजिए?
भारत में वृहत् और लघु दोनों ही परंपराएं बहुत प्राचीन हैं और दोनों की अपनी-अपनी विशिष्ट विशेषताएं हैं। वृहत् परंपरा और लघु परंपरा में अंतर निम्नलिखित है :-
भारत में वृहत् और लघु दोनों ही परंपराएं बहुत प्राचीन हैं और दोनों की अपनी-अपनी विशिष्ट विशेषताएं हैं। वृहत् परंपरा और लघु परंपरा में अंतर निम्नलिखित है :-
वृहत् परंपरा अभिजात वर्ग के थोड़े-से दार्शनिक और विचारशील लोगों द्वारा किया जाता है और धीरे-धीरे सभी वर्गों और क्षेत्रों के लोगों द्वारा अपनाई जाती है।
छोटे गाँवों में पाई जाने वाली जीविकोपार्जन की क्रियाएँ एवं शिल्प, गाँव तथा उससे सम्बन्धित संगठन तथा प्रकृति पर आधारित धर्म लघु परंपरा कहलाती हैं।
समाज में प्रचलित विचारों, रूढ़ियों, मूल्यों, विश्वासों, धर्मों, रीति-रिवाजों आदि के संयुक्त रूप को मोटे तौर पर परंपरा कहा जा सकता है।
जजमानी व्यवस्था में सभी विषयों का कार्यक्षेत्र एक समान नहीं होता, परन्तु उनकी सेवाओं की प्रकृति के अनुसार यह क्षेत्र कमोबेश विस्तृत होता है।
भारत में पाई जाने वाली प्रजातियों की संख्या के बारे में विद्वानों में एक मत नहीं है। प्रमुख विद्वानों द्वारा भारतीय प्रजातियों का वर्गीकरण इस प्रकार है-
आधुनिक समाजशास्त्रीय अवधारणाओं में, अप्रतिमानता की अवधारणा (जिसे विसंगति, आदर्शहीनता, नियमहीनता या "एनोमी" के रूप में भी जाना जाता है) का महत्वपूर्ण स्थान है।
प्रजाति एक जैविक अवधारणा है। यह मनुष्यों के एक समूह से है जिनके पास समान शारीरिक और मानसिक गुण होते हैं और इन लक्षणों को उनकी विरासत के आधार पर प्राप्त करते हैं
जेंडर एक सामाजिक-सांस्कृतिक शब्द है। सामाजिक-सांस्कृतिक निर्माण से संबंधित, जेंडर समाज में 'पुरुषों' और 'महिलाओं' के कार्यों और व्यवहारों को परिभाषित करता है।
आर्थिक संस्था सीधे तौर पर मानवीय जरूरतों से जुड़े होते हैं। आर्थिक संस्थाएँ मनुष्य के जीवन को व्यवस्थित करती हैं।
औद्योगिक समाजों में, संपत्ति का अर्थ आमतौर पर चल संपत्ति और अचल संपत्ति होता है। संपत्ति के उत्पादन और वितरण की प्रणालियाँ आर्थिक संस्थानों का निर्माण करती हैं।
धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा में उन सिद्धांतों के लिए कोई स्थान नहीं है जो सामाजिक जड़ता जैसे भाग्यवाद और दैवीय अनुनाद को प्रतिपादित करते हैं।